शिलानाथ मंदिर

By: May 25th, 2024 12:20 am

शिव के 9 धामों में से एक शिलानाथ की कहानी बहुत अद्भुत है। कहा जाता है कि कमला नदी के छोर से इस स्थल पर शिव और पार्वती (अद्र्धनारीश्वर) की उत्पत्ति हुई थी। फिर आई भीषण बाढ़ में शिव इस स्थल से कहीं और चले गए। लेकिन उनके साथ आए भैरव इसी स्थान पर रहे। यूं तो संपूर्ण मिथिलांचल में अनेकों कथाएं ऐसी है जो मन मोहती है, लेकिन आज जो हम आपको बताने वाले हैं वो अपने आप में अद्भुत है। स्थानीय पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास बड़ा ही अलौकिक है।

कलियुग के प्रवेश करने से पहले इस स्थल पर शिव का अद्र्धनारीश्वर स्वरूप नदी की धारा से प्रकट हुआ था। उस समय के महान संतों को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने शिव को इसी स्थल पर बस जाने को कहा। शिव ने जवाब में कहा कि कलियुग की शुरुआत होते ही मैं इस स्थल से निकल जाऊंगा, लेकिन ऋषि मुनियों ने शिव से आग्रह किया कि वो यहीं रहें। कुछ समय गुजर जाने के बाद शिव ने पुजारी को स्वप्न दिया कि वो इस स्थल को छोडक़र जा रहे हैं, क्योंकि कलियुग का समय बहुत नजदीक आ गया है। ऐसे में पुजारी ने उनसे पुन: रुकने की याचना की और शिव ने अस्वीकार करते हुए भैरव को इसी स्थल पर रहने का आदेश दिया और पुजारी से कहा कि आज से इसके (भैरव) के रूप की पूजा मेरे रूप में की जाएगी। तब से इस स्थल को शिलानाथ महादेव के नाम से बुलाया जाने लगा।

दरभंगा महाराजा ने पंडितों को दिया था 36 एकड़ दान बाद में दरभंगा महाराजा सह महाज्योतिष पंडित विश्वेश्वर सिंह ने इस स्थल के जीर्णोद्धार का जिम्मा उठाया और पुजारियों को भी स्थापित किया। भवन निर्माण के साथ ही पुजारियों के पारिवारिक भरण पोषण के लिए कुल 36 एकड़ संपत्ति दान की। फिलहाल इस स्थल पर अलग-अलग पुजारियों के पांच परिवार रहते हैं। ऐसे तो हर दिन भक्त यहां आते हैं और शिव की उपासना करते हैं, लेकिन सोमवार का नजारा यहां बहुत भव्य दिखता है। मेले के साथ-साथ श्रद्धालुओं की टोली पास में स्थित कमला नदी की धारा से शिलानाथ महादेव पर जल अर्पित करती है।

कई देवी-देवताओं की होती है पूजा- शिव के अलावा यहां माता पार्वती, जानकी सहित राधा-कृष्ण और अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। यहां एक यज्ञ कुंड भी है, जहां यज्ञ अनुष्ठान किए जाते हैं। इस मनोरम जगह के दर्शन करने के लिए सबसे पहले मधुबनी आएं, उसके बाद ट्रेन या पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आप जा सकते हैं। मधुबनी शहर से इसकी दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। ध्यान रहे यह बिहार का आखिरी छोर है, यहां से नेपाल की सीमा लगती है, जहां से विश्व प्रसिद्ध माता सीता की नगरी जनकपुर आसानी से जाया जा सकता है। इस मंदिर में भक्तों की बहुत श्रद्धा है।


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