महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से लें प्रेरणा

By: May 23rd, 2024 12:06 am

यही वजह भी है कि इनकी शिक्षाओं को विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के दृष्टिगत स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया गया है। बुद्ध का शाब्दिक अर्थ है जागा हुआ, एनलाइटेन्ड अर्थात जिसे सत्य और आत्मज्ञान की प्राप्ति हो चुकी हो। यहां इसका तुच्छ अर्थ केवल राजा शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ से नहीं है, बल्कि उनके पहले भी अनेक समाधिस्थ व्यक्तियों को चैतन्यता, सत्य और जीवन के रहस्यों से साक्षात्कार होने के कारण बुद्ध की श्रेणी में रखा गया है। इस प्रकार देखें तो अपने को जानने की यह तपस्या और क्रिया बाद में भी तथा भविष्य में भी निरंतर चलती रहेगी…

भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आज भारतवर्ष में बुद्ध पूर्णिमा का पर्व हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जा रहा है। इतिहासकारों के अनुसार बुद्ध के जीवनकाल को 563-483 ई. पू. के मध्य माना गया है। अधिकांश लोग नेपाल के लुम्बिनी नामक स्थान को बुद्ध का जन्म स्थान मानते हैं। गौतम बुद्ध की मृत्यु उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में हुई थी। बुद्ध पूर्णिमा का संबंध बुद्ध के जन्म से ही नहीं है, बल्कि इसी पूर्णिमा तिथि को वर्षों वनों में भटकने व कठोर तपस्या करने के पश्चात बोधगया में बोधिवृक्ष नीचे बुद्ध को सत्य का ज्ञान हुआ था। इसके पश्चात महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान के प्रकाश से पूरी दुनिया में एक नई रोशनी पैदा की और वैशाख पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ भी था। इस प्रकार देखें तो उनका जन्म, सत्य तथा ज्ञान की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण एक ही दिन यानी वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। आज भौतिकतावाद और जीवन की आपाधापी के बीच बौद्ध जीवन मार्ग और महात्मा बुद्ध के संदेशों का महत्व और बढ़ गया है। बुद्ध की शिक्षाएं प्रत्येक काल एवं परिस्थितियों में मानवमात्र का मार्गदर्शन करती आई हैं।

यही वजह भी है कि इनकी शिक्षाओं को विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के दृष्टिगत स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया गया है। बुद्ध का शाब्दिक अर्थ है जागा हुआ, एनलाइटेन्ड अर्थात जिसे सत्य और आत्मज्ञान की प्राप्ति हो चुकी हो। यहां इसका तुच्छ अर्थ केवल राजा शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ से नहीं है, बल्कि उनके पहले भी अनेक समाधिस्थ व्यक्तियों को चैतन्यता, सत्य और जीवन के रहस्यों से साक्षात्कार होने के कारण बुद्ध की श्रेणी में रखा गया है। इस प्रकार देखें तो अपने को जानने की यह तपस्या और क्रिया बाद में भी तथा भविष्य में भी निरंतर चलती रहेगी। यदि बुद्ध की शिक्षाओं को पढ़ें तो उनके अनुसार मनुष्य को सदैव शुभ कर्म करते हुए अशुभ तथा पाप कर्मों से विरक्त रहना चाहिए। यदि आदमी शुभ कर्म करे तो उसे उन्हें बार-बार करना चाहिए, उसी में चित्त लगाना चाहिए क्योंकि शुभ कर्मों का संचय सुखकर होता है। जिस काम को करके आदमी को पछताना न पड़े और जिसके फल को वह आनंदित मन से भोग सके, उसी काम को करना श्रेयस्कर है। महात्मा बुद्ध का मानना था कि उच्च चरित्र, शील एवं सदाचार की सुगंध चन्दन, तगर तथा मल्लिका जैसे फूलों की सुगंध से भी बढक़र होती है। मनुष्यों को चाहिए कि वे पाप कर्म न करें, प्रमाद से बचें और किसी भी मनुष्य की धन-संपत्ति पर कुदृष्टि न रखें। धन की वर्षा होने भी आदमी की कामना की पूर्ति नहीं होती है। बुद्धिमान आदमी जानता है कि कामनाओं की पूर्ति में अल्प स्वाद है और दुख है। इसी प्रकार लोभ से दु:ख पैदा होता है, लोभ से भय पैदा होता है।

जो व्यक्ति लोभ से मुक्त है उसके लिए न दु:ख है न भय है। जो शीलवान है, जो प्रज्ञावान है, जो न्यायवादी है, जो सत्यवादी है तथा जो अपने कत्र्तव्य को पूरा करता है उससे लोग प्यार करते हैं। वाणी से बुरा वचन न बोलना, किसी को कोई कष्ट न देना, विनयपूर्वक नियमानुसार संयत रहना यही बुद्ध की देशना है। बुद्ध अहिंसा में विश्वास रखते थे, इसलिए वे न जीव हिंसा करो न कराओ के सिद्धांत में विश्वास रखते थे। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं में वर्णित है कि आदमी को चाहिए कि क्रोध को अक्रोध से जीतें, बुराई को भलाई से जीतें, लोभ को उदारता से जीतें और झूठ को सच्चाई से जीतें। सत्य बोलें, क्रोध न करें एवं कम होने पर भी दान करें। आदमी को चाहिए कि क्रोध का त्याग कर दे, अभिमान को छोड़ दे और सब बंधनों को तोडक़र ईश्वर की शरणागति हो ले। शांत आदमी जय-पराजय की चिंता छोडक़र सुखपूर्वक सोता है। इसलिए प्रत्येक प्राणी को अपने मन, वचन और कर्म से यह संकल्प लेना श्रेयस्कर रहेगा कि हे ईश्वर! अगर तू कहीं है तो मुझे इतनी शक्ति जरूर देना कि मैं, महात्मा बुद्ध के बताए गए आदर्शों का पालन दृढ़ता से कर पाऊं। बौद्ध धर्म दुनिया का पहला ऐसा विश्व धर्म है जो अपने जन्मस्थान से निकलकर विश्व में दूर दूर तक फैला। आज विश्व के 20 से अधिक देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक या प्रमुख धर्म के रूप में है। विश्व में लाओस, कम्बोडिया, भूटान, थाईलैण्ड, म्यांमार और श्रीलंका ये छह देश ‘अधिकृत’ बौद्ध देश हैं, क्योंकि इन देशों के संविधानों में बौद्ध धर्म को राजधर्म या राष्ट्रधर्म का दर्जा प्राप्त है। आज भौतिकतावाद के जमाने में प्राय: हमारा मन और चित्त अशांत रहता है, ऐसे समय में महात्मा बुद्ध के उपदेश हमें मानसिक शांति और अभय प्रदान करते हैं। वस्तुत: मनुष्य को सभी शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति दिलाना ही सभी धर्मों का मूल है।

हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि, ‘धार्यते इति धर्म:’।

इस प्रकार से धर्म की व्युत्पत्ति संस्कृत के ‘धृ’ धातु से हुई है जिससे धर्म शब्द बना है। जिसका अर्थ धारण करना होता है, जो सबको धारण करे, जो सबका आधार हो वह धर्म है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ हैं : कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्गुण, प्रेम, दयालुता और त्याग। आज मानव मात्र को इन्हीं सद्गुणों को अपने चरित्र में उतारने की महती आवश्यकता है, तभी यह पृथ्वी और सुंदर बनेगी और लोग सौहार्दपूर्ण वातावरण में प्रेमपूर्वक सुंदर जीवन जी सकेंगे। बुद्ध की शिक्षाएं अतीत में प्रासंगिक थीं, वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं और भविष्य में भी प्रासंगिक रहेंगी।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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