दुनिया गोल है…

By: May 2nd, 2024 12:05 am

हमारी सोच बदली कि नहीं, हमारी नीयत बदली कि नहीं, हमारा व्यवहार बदला कि नहीं, यह पैमाना है आध्यात्मिकता का। आध्यात्मिक हो गए तो संत हो गए। संत हो गए तो दुनिया की सेवा में लग गए। दुनिया की सेवा में लग गए तो सूर्य के चारों ओर के चक्कर वाला चरण पूरा होने लग गया। हम परिवार को समय दें, परिवार के लिए कुछ करें, और लगातार करते रहें, यह हमारी धुरी पर हमारा चक्कर है। हम समाज को समय दें, समाज के लिए कुछ करें, और लगातार करते रहें, यह समाज रूपी सूर्य के चारों ओर हमारा चक्कर है…

भूगोल हमें बताता है कि हमारी पृथ्वी चपटी और गोलाकार आकार की है, जिसका मतलब है कि यह ज्यादातर गोलाकार है, लेकिन अपने धु्रुवों पर थोड़ी चपटी है और भूमध्य रेखा पर थोड़ी उभरी हुई है। यह लगभग एक अनियमित आकार के दीर्घ वृत्त की तरह की है। इसके अलावा, अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है और यह अपनी धुरी पर भी घूमती है। पृथ्वी अपने अक्ष पर दाहिनी ओर यानी पूर्व दिशा में 23.5 डिग्री झुकी हुई भी है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है जिसके कारण दिन और रात होते हैं क्योंकि पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने होता है वहां सूर्य की रोशनी पहुंचने के कारण दिन होता है और जो भाग पीछे छुप जाता है वहां रात हो जाती है। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है उसके कारण हम विभिन्न मौसम देख पाते हैं। पृथ्वी लगभग गोलाकार है और समय, स्थान और स्थिति के अनुसार दुनिया के लोगों का व्यवहार बदलते मौसम की तरह हमेशा बदलने वाला होने के कारण दुनिया के बारे में भी यह जुमला बन गया कि दुनिया गोल है। आज हम अपने आसपास की दुनिया में जो भी गड़बडिय़ां देखते हैं उसका कारण यही है कि ‘दुनिया गोल है’, यानी, लोगों के व्यवहार के बारे में कोई सटीक भविष्यवाणी कर पाना हमेशा संभव नहीं है। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि एक ही स्थिति पर अलग-अलग व्यक्तियों की राय, नजरिया और व्यवहार अलग-अलग होंगे। यह तो रही दुनियावी स्थिति, लेकिन अगर हमें एक सीधे-सच्चे इनसान की तरह इसी दुनिया में जीवन बिताना हो तो हमें क्या करना होगा? हम पहले ही कह चुके हैं कि पृथ्वी गोल है, दायीं ओर झुकी हुई है, अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के भी चारों ओर चक्कर लगाती है। सवाल यह है कि पृथ्वी के गोल होने का, अपनी धुरी पर घूमने का, दायीं ओर झुके हुए होने का, सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाने का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव है, या हम इससे क्या सीख सकते हैं?

पृथ्वी गोल है, यानी इसका कोई आरंभ और कोई अंत नहीं है। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि पृथ्वी का गोला बनाने के लिए हम जहां से शुरू करते हैं, उसका अंत भी वहीं होगा। हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए। हम पैदा होते हैं, बड़े होते हैं, पढ़ते-लिखते हैं, पढ़ाई पूरी होने पर काम पर जाना शुरू करते हैं, शादी होती है, बच्चे होते हैं, और हमारी उम्र बढऩे के साथ-साथ हमारे बच्चों के साथ भी यही क्रम चलता है, बड़े होना, पढऩा-लिखना, काम पर लगना और फिर शादी हो जाना। बच्चे एक बार सैटल हो जाएं तो हमारा एक सर्कल पूरा हो जाता है। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करते हुए हम एक तरह से गोल-गोल घूमते हैं, यह है अपनी ही धुरी पर घूमना। जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, वैसे ही हम भी जब अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करते हैं तो हम अपनी धुरी पर घूम रहे होते हैं। लेकिन जब हमारे बच्चे सैटल हो जाते हैं और उनकी शादी भी हो जाती है तो हमारा वह चक्कर भी पूरा हो जाता है जिसकी तुलना हम पृथ्वी के सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाने से कर सकते हैं। वह जीवन का एक चक्र है, जो पूरा हो गया। अपनी धुरी पर घूमते रहना तो तब भी जारी रहता ही है, क्योंकि हम परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो पाते। बच्चों के बाद नाती-पोते हमारे नए खिलौने बन जाते हैं और हम उन्हें सहेजने-संवारने में जुट जाते हैं। लेकिन सूर्य के चारों तरफ के पृथ्वी के चक्कर की तुलना वाले अपने चक्कर के बाद हम मानो ठहर जाते हैं और सूर्य के चारों ओर का हमारा अगला चक्कर लगता ही नहीं। यहां फिर सवाल यह है कि हमारे अपने जीवन में हमारे लिए सूर्य के चक्कर का क्या मतलब है और इसका महत्व क्या है?

जब एक बार हमारे अपने बच्चे सैटल हो गए और शादी करके अपने-अपने परिवार में रम गए, तो हमारी पारिवारिक जिम्मेदारियों का एक चरण पूरा हो गया। इस दौरान हमारी उम्र बढ़ी, हमारा अनुभव बढ़ा, हमने कई नए पाठ सीखे, अब दौर है कि हम अपना ज्ञान दुनिया में बांटें। जब हम परिवार के लिए कुछ करते हैं तो हम अपनी धुरी पर घूम रहे हैं और जब हम समाज के लिए कुछ करते हैं तो हम मानो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाला काम कर रहे हैं। पृथ्वी गोल है, यानी हमें इसी गोले में घूमते रहना है, परिवार का भी ध्यान रखना है और समाज को भी कुछ देना है। पृथ्वी एक तरफ 23.5 डिग्री झुकी हुई है, यानी, हमें भी झुक कर चलना है, विनम्र होकर चलना है, सेवा करते हुए चलना है। जब हम ऐसा करते हैं तो हम सच्चे इनसान बन जाते हैं। यही आध्यात्मिकता है। पूजा-पाठ हम करते हों, अच्छा है। भजन-कीर्तन करते हों, अच्छा है। दान-पुण्य करते हों, अच्छा है। लेकिन किसी जरूरतमंद की सहायता कर देना किसी भी पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन और साधारण दान-पुण्य से कहीं ज्यादा अच्छा है। हमारे पास दान के लिए धन न हो तो भी कोई बात नहीं, किसी का हौसला बढ़ा देना, किसी की उदासी को खुशी में बदल देना, किसी का मार्गदर्शन कर देना भी सच्ची पूजा है, सच्ची अर्चना है, सच्ची वंदना है। ‘सहज संन्यास मिशन’ हमें यही सिखाता है कि आध्यात्मिक होने के लिए हमें करुणामयी होना होगा, अपने आसपास के लोगों के प्रति सहृदय होना होगा, उनकी भावनाओं को समझना और उनका आदर करना होगा। अध्यात्म की यह पहली सीढ़ी है। विनम्र हुए बिना, करुणामयी हुए बिना, संवेदनशील हुए बिना हम आध्यात्मिक हो ही नहीं सकते। आध्यात्मिक होने के लिए परिवार छोडऩे की आवश्यकता नहीं है, काम-धंधा छोडऩे की आवश्यकता नहीं है, दुनिया छोडऩे की आवश्यकता नहीं है, बस सच्चा, ईमानदार, विनम्र और दयालु इनसान बनने की जरूरत है।

इनसानियत आ गई तो आध्यात्मिकता आ गई। हम इनसान बन गए तो मानो संत बन गए। कपड़े रंगें या न रंगें, जटा-जूट बढ़ाएं या न बढ़ाएं, सिर मुंडाएं या न मुंडाएं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारी सोच बदली कि नहीं, हमारी नीयत बदली कि नहीं, हमारा व्यवहार बदला कि नहीं, यह पैमाना है आध्यात्मिकता का। आध्यात्मिक हो गए तो संत हो गए। संत हो गए तो दुनिया की सेवा में लग गए। दुनिया की सेवा में लग गए तो सूर्य के चारों ओर के चक्कर वाला चरण पूरा होने लग गया। हम परिवार को समय दें, परिवार के लिए कुछ करें, और लगातार करते रहें, यह हमारी धुरी पर हमारा चक्कर है। हम समाज को समय दें, समाज के लिए कुछ करें, और लगातार करते रहें, यह समाज रूपी सूर्य के चारों ओर हमारा चक्कर है। पृथ्वी गोल है, यानी, न आदि है न अंत। दुनिया गोल है, यानी, यहां भी न आदि है न अंत। हम जब तक हैं, तब तक चक्कर काटते रहें, परिवार के चारों ओर भी और समाज के चारों ओर भी। अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहें, अपना योगदान देते रहें तो हम संत हो गए और परमात्मा से जुड़ गए। आध्यात्मिकता का सार बस इतना सा ही है।

स्पिरिचुअल हीलर, सिद्धगुरु प्रमोद जी

गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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