विविधता में ‘नस्लवाद’ नहीं

By: May 10th, 2024 12:05 am

बेशक सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा को ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को उसे स्वीकार करना पड़ा, लेकिन तब तक सैम सलाहकार नस्लवाद, रंगभेद का जहर उगल चुके थे। सैम पित्रोदा अमरीका में रहते हैं। बेशक वह मूलत: ओडिशा के हैं। क्या उन्होंने कभी अपना चेहरा आईने में देखा है और खुद को ‘चीनी’ माना है? सैम बहुराष्ट्रीय हो सकते हैं, लेकिन बार-बार भारत की चिंता क्यों करते हैं? भारत पर बार-बार अनाप-शनाप क्यों बकते रहते हैं? कभी पुलवामा आतंकी हमले पर, कभी बालाकोट हवाई आक्रमण पर, कभी विरासत कर को लेकर वह बिन मांगे ही सुझाव देते रहे हैं। उनकी टिप्पणियां भी अस्वीकार्य रही हैं, लिहाजा माफी भी मांगनी पड़ी है। दरअसल हमारा सरोकार तो यह है कि भारत और भारतीय उनके कथनों की परवाह ही क्यों करते हैं? उन्हें ‘ब्लैंक’ क्यों न कर दिया जाए? उनके बयान और उपमाओं पर भारत के प्रधानमंत्री पलटवार हमला करेंगे या गुस्सा जताएंगे, तो निश्चित है कि वह कथन मीडिया की सुर्खियों में होगा, नतीजतन असंख्य नागरिक भी टिप्पणियां करने लगेंगे। सैम पित्रोदा का हमारे लिए कोई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और पेशेवर अर्थ नहीं है। कांग्रेस की सरकार बनेगी, तो वह उन्हें फिर से रणनीतिकार और सलाहकार बना सकती है। राजीव गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकालों में सैम को कैबिनेट मंत्री का ओहदा मिलता रहा। दरअसल वह गांधी परिवार के लिए ‘मार्गदर्शक’ की भूमिका में रहे हैं।

वही रिश्ता सोनिया-राहुल गांधी के दौर में निभाया जा रहा है, लिहाजा सैम कुछ न कुछ बकते रहे हैं। सैम पित्रोदा ने एक विदेशी, अंग्रेजी अखबार के साथ साक्षात्कार में भारत की विविधता की व्याख्या की है। हमें भारत की ‘विविधता में एकता’ पर उनका लाइसेंस नहीं चाहिए था, लेकिन कांग्रेस की अपनी राजनीति थी। भारत ऐसा देश है, जिसमें संप्रदाय, धर्म, मत, जातियां, चेहरों की पहचान, भाषा-बोलियां, इलाके, नस्लें आदि विविध हैं, लेकिन 144 करोड़ से अधिक लोग खुद को ‘भारतीय’ ही मानते हैं। आज तक एक भी विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक इतिहासकार ने ऐसी उपमाएं नहीं दीं, जैसी सैम ने देने का दुस्साहस किया है। उन्होंने साक्षात्कार में कहा- ‘भारत में उत्तर के लोग गोरे, पूर्व के लोग चीनियों की तरह, पश्चिम के लोग अरबी और दक्षिण के लोग अफ्रीकी लगते हैं। यहां हर कोई एक-दूसरे के लिए थोड़ा-बहुत समझौता करता है। हम 70-75 साल से इक_े रह रहे हैं। हम सभी भाई-बहन हैं।’ सैम ने विविधता और पहचान का आधार चमड़ी के रंग को बना दिया। भारतीयों के डीएनए पर भी सवाल किए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की तल्ख प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी। उन्होंने चमड़ी के रंग को देश के लिए ‘गाली’ समझा। प्रधानमंत्री ने कहा- ‘मैं बेहद गुस्से में हूं। आप मुझे गाली दे लो, मैं सहन कर लूंगा, लेकिन देश का ऐसा अपमान बर्दाश्त नहीं करूंगा।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि अब उन्हें समझ आया है कि राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस ने द्रौपदी मुर्मू का विरोध क्यों किया था? यह विषय भारत के अस्तित्व का है, लिहाजा राहुल गांधी खामोश क्यों हैं?

अलबत्ता पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने सैम की उपमाओं को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया और कांग्रेस ने पल्ला झाड़ लिया। सिर्फ यही नहीं, सैम पित्रोदा ने अयोध्या के प्रभु श्रीराम के मंदिर, रामनवमी, हनुमान चालीसा आदि को भारत की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा करार दिया है। उन्होंने इन्हें ‘भारत के विचार’ के लिए भी खतरा माना है। यह समग्र सनातन आस्था और संस्कृति पर प्रहार है। राम, कृष्ण, शिव सरीखे हमारे इष्टदेवों ने पूरे भारत को एकसूत्र में जोड़ कर रखा है। हर क्षेत्र में इन भगवानों के आराधक हैं। हमारे सबसे अधिक पूजनीय इष्टदेव कमोबेश गोरे नहीं थे, श्यामल रंग के थे। उनकी उपासना चमड़ी के रंग के आधार पर नहीं की गई और न कभी ऐसी परंपरा रहेगी। हमें लगता है कि सैम पित्रोदा का कोई मानसिक पेंच ढीला है कि वह ऐसी विक्षिप्त मानसिकता के हैं। चमड़ी के रंग के आधार पर भारत की योग्यता, राजनीति, विलक्षणता और विविधता तय नहीं की गई। यह सवाल परेशान करने वाला है कि क्या भारत की राष्ट्रपति ‘अफ्रीकी’ हैं?


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