मोको कहां ढूंढे रे बंदे…

By: May 23rd, 2024 12:05 am

हम किसी भी धर्म, संप्रदाय, मत को मानते हों, हमारे इष्ट देव कोई भी हों, उसे बदलने की जरूरत नहीं है। बदलना है सिर्फ अपना नजरिया, अपना जीवन, अपना लाइफस्टाइल। इससे ही सब बदल जाएगा। सहज संन्यास मिशन के हम सब अनुयायियों का मानना है कि यदि हम जीवन का सम्मान करें, अपने मन को बुराइयों से दूर रखें, अपनी वाणी से किसी को चोट न पहुंचाएं, बुराइयों को दूर करने के लिए उचित प्रयत्न करें, अपने विचारों को अनियंत्रित न होने दें, सबकी भलाई के लिए काम करें, मन में भक्ति का भाव रखें, तो हमारे लिए अंतिम सत्य तक पहुंचना बहुत कठिन नहीं होगा और हमारा जीवन सरल हो जाएगा और फिर हमें परमात्मा की खोज के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ेगा क्योंकि फिर हम खुद ब्रह्मस्वरूप हो जाएंगे…

जैन धर्म का क्षमा-वाणी पर्व एक ऐसा नियम है जो सचमुच बहुत अच्छा है। पूरे साल भर में जाने-अनजाने हमने कभी कोई गलती की हो, किसी का अपमान हो गया हो, किसी को चोट पहुंचाई हो, किसी का नुकसान हो गया हो तो इस पर्व वाले दिन बिना शर्त माफी मांगने का प्रावधान है। कितना सुंदर, कितना बढिय़ा। सामने वाले ने चाहा या नहीं चाहा, पर हमने विनम्र होकर माफी मांग ली। गलती हुई या नहीं हुई, चाहे अनजाने में ही हो गई हो, तो भी माफी मांग ली, दोनों का दिल साफ हो गया, रिश्ते सुधर गए, दिल हल्का हो गया और प्रेम बना रहा। जैन धर्म के अनुयायी इस दिन एक-दूसरे को ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ बोलते हैं। अगर यह सिर्फ एक औपचारिकता ही न हो तो इससे रिश्तों की मजबूती का इससे बढिय़ा और कोई साधन है ही नहीं। जब हम मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार हों कि बिना किसी वजह के माफी मांग लेनी है कि शायद कोई गलती हुई हो, और हम सब इतने विनम्र हो जाएं तो सारे झगड़े ही खत्म। मिच्छामि दुक्कड़म प्राकृत भाषा का शब्द है। संस्कृत के एक वाक्यांश से यह बना है, जो है ‘मिथ्या मे दुष्कृतम्’ जिसका मतलब है कि यदि मैंने कोई दुष्कृत्य किया हो, कुछ भी बुरा किया है तो वह मिथ्या हो जाए, खत्म हो जाए, बीजरहित हो जाए, ताकि दोबारा कभी न हो। जब हम इतने विनम्र हो गए तो हम सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक हो गए। जैन धर्म अहिंसा का धर्म है, और हम सब जानते हैं कि हिंसा कई तरह से हो सकती है, मसलन कायिक हिंसा, यानी, शारीरिक हिंसा, किसी को मारना या मार डालना, शारीरिक चोट पहुंचाना।

दूसरा है वाचिक हिंसा, यानी, किसी का अपमान कर देना, किसी को ऐसा कुछ कह देना कि उसका दिल दुख जाए, वाणी से किसी को चोट पहुंचाना, किसी को गाली दे देना, लंगड़ा, लूला, अंधा, काना आदि कह देना, ये है वाचिक हिंसा, और हिंसा की तीसरी किस्म है मानसिक हिंसा। अगर हमने मन में ठान लिया है कि कोई दूसरा व्यक्ति, चाहे वह पति हो, पत्नी हो, बेटा या बेटी हो, अधीनस्थ कर्मचारी हो, नौकर-नौकरानी हो, और हम यह सोच लें कि वह हमारे हिसाब से ही जियेगा तो यह मानसिक हिंसा है। हम किसी दूसरे को बदलना चाहते हैं, यह मानसिक हिंसा है, और जब हमने हिंसा पूरी तरह से छोड़ दी तो हम आध्यात्मिक हो गए। जब हम विनम्र हो गए, अहिंसक हो गए, प्रेममय हो गए तो हम शुद्ध हो गए और हमने परमात्मा को पा लिया। फिर हमें कुछ और ढूंढने की जरूरत नहीं है, फिर हमने बड़ी से बड़ी तीर्थ यात्रा का, पूजा का फल पा लिया। फिर हम किसी पूजा स्थल के मोहताज नहीं रह गए, कोई और जप-तप इसके मुकाबले में छोटा ही है। जब हम प्रेममय हो गए, हमने प्रेम के अढ़ाई अक्षर जीवन में उतार लिए तो फिर संत कबीर की वाणी सच्ची हो गई। संत कबीर फरमाते हैं, ‘मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में। ना तीरथ में, ना मूरत में, ना एकांत निवास में। ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलास में। ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में। ना मैं क्रिया कर्म में रहता, ना ही योग संन्यास में। नहीं प्राण में, नहीं पिंड में, ना ब्रह्मांड आकाश में। ना मैं त्रिकुटी भंवर में, सब स्वासों के स्वास में। खोजी होए, तुरत मिल जाऊं, एक पल की ही तलाश में। कहे कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूं विश्वास में।’ यह सच है कि अध्यात्म की असली सीढ़ी है निश्छल प्रेम, हर किसी से प्रेम, बिना कारण, बिना आशा के हर किसी से प्रेम।

मानवों से ही नहीं, पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों से भी प्रेम, जीवित लोगों से ही नहीं, जीवन रहित मानी जाने वाली चीजों से भी प्रेम। एक बार जब हम प्रेममय हो गए तो आध्यात्मिकता की गहराइयों में, या यूं कहिए कि ऊंचाइयों में जाने के काबिल हो जाते हैं। यह अध्यात्म की सबसे ऊंची पायदान है, और इसके बाद कल्याण ही कल्याण है, निर्वाण है, मोक्ष है, मुक्ति है। आध्यात्मिकता का अर्थ है कि हम सब के प्रति दया का भाव रखें, प्रेम का भाव रखें, जहां तक संभव हो, निस्वार्थ भाव से सहायता करें। हम खुद को बदलें, हमारे अंदर के परिवर्तन से ही सब कुछ बदलेगा। हमारा नजरिया बदलेगा तो हम बदलेंगे। हम बदलेंगे तो परिवार बदलेगा, समाज बदलेगा, देश बदलेगा, दुनिया बदलेगी। जब तक हम खुद नहीं बदलेंगी, हमारी दुनिया नहीं बदलेगी। हमारे संपर्क में आने वाले लोग हमारी दुनिया हैं। हम बदल जाएंगे तो शायद हम उन लोगों में बदलाव ला सकेंगे जो हमारे संपर्क में आते हैं। हम ही नहीं बदले तो बाकी सब बदल भी जाए तो भी हमारे लिए वह बदलाव अर्थहीन ही रहेगा। आध्यात्मिक हो जाएं तो पूरा ब्रह्मांड हमें परमात्मा की स्तुति करता हुआ नजर आता है। ‘सहज संन्यास मिशन’ की धारणा है कि हमारा शरीर ही मंदिर है, हमारा कत्र्तव्य ही पूजा है और चढ़ावा चढ़ाने के लिए किसी पूजा स्थल पर जाने की आवश्यकता नहीं है। मैं जो कुछ करूं, वह परमात्मा को अर्पण करके करूं। ‘कर करनी, कर जोड़ कर’ को इसी भाव में समझना चाहिए। कर करनी, यानी जो भी करें, कर जोड़ कर करें, हाथ जोड़ कर करें, परमात्मा को नमस्कार करके करें। संत रविदास जी ने क्या खूब ही कहा है कि ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’, मन शुद्ध हो आपके बर्तन में पड़ा पानी भी साधारण नहीं रह जाता, वह गंगाजल जितना निर्मल और पवित्र हो जाता है। दिन भर काम करते हुए हम इधर-उधर जाते हैं, वही परमात्मा की परिक्रमा है, मेरा हर काम परमात्मा की पूजा है। मैं ही परमात्मा हूं, और इस जगत का हर जीव-जंतु परमात्मा का ही अंश है।

अब जब हर कोई परमात्मा का अंश है और मेरा हर काम परमात्मा की पूजा है तो मैं झूठ कैसे बोल सकता हूं, किसी को धोखा कैसे दे सकता हूं, फरेब कैसे कर सकता हूं? यही निष्काम कर्म है, यही सहज संन्यास है। वस्तुत: निष्काम कर्म ही सहज संन्यास है। सहज संन्यास की खासियत ही यही है कि इसके लिए हमें अपना धर्म बदलने की आवश्यकता नहीं है। हम किसी भी धर्म, संप्रदाय, मत को मानते हों, हमारे इष्ट देव कोई भी हों, उसे बदलने की जरूरत नहीं है। बदलना है सिर्फ अपना नजरिया, अपना जीवन, अपना लाइफस्टाइल। इससे ही सब बदल जाएगा। सहज संन्यास मिशन के हम सब अनुयायियों का मानना है कि यदि हम जीवन का सम्मान करें, अपने मन को बुराइयों से दूर रखें, अपनी वाणी से किसी को चोट न पहुंचाएं, बुराइयों को दूर करने के लिए उचित प्रयत्न करें, अपने विचारों को अनियंत्रित न होने दें, सबकी भलाई के लिए काम करें, मन में भक्ति का भाव रखें, तो हमारे लिए अंतिम सत्य तक पहुंचना बहुत कठिन नहीं होगा और हमारा जीवन सरल हो जाएगा और फिर हमें परमात्मा की खोज के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ेगा क्योंकि फिर हम खुद ब्रह्मस्वरूप हो जाएंगे।

स्पिरिचुअल हीलर

सिद्धगुरु प्रमोद जी

गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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