सोना क्यों बन रहा है पहली पसंद

गौरतलब है कि गहनों के रूप में सोने की मांग पहले के मुकाबले में लगातार घटती जा रही है, जबकि निवेश के रूप में सोने की मांग लगातार बढ़ रही है। इस बीच पिछले सालों में केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की खरीद में अभूतपूर्व वृद्धि ने दुनिया में सोने की मांग बढ़ा दी है। यदि सोने के भाव की बात करें तो पिछले दो-तीन वर्षों में सोने की कीमत में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है…

पहले विश्व युद्ध के बाद से अब तक दुनिया में डॉलर का महत्त्व लगातार बढ़ता रहा है। जब अमरीका के सहयोगी देश सामान के बदले सोना देने लगे, तो ऐसे में संयुक्त राज्य अमरीका आधिकारिक तौर पर दुनिया का सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार बन गया। युद्ध के बाद अनेकों देशों ने अपनी करंसियों को डॉलर के साथ जोड़ा और इसके साथ ही दुनिया में गोल्ड स्टैंडर्ड समाप्त हो गया और डॉलर दुनिया की सबसे पसंदीदा करंसी बन गई। सभी देशों ने अपनी विदेशी मुद्रा भंडारों को डॉलर के रूप में रखना शुरू कर दिया, और ऐसे में वर्ष 1999 तक दुनिया के कुल विदेशी मुद्रा भंडारों में डॉलर का हिस्सा 71 प्रतिशत तक बढ़ गया। 1999 में यूरोप साझा करंसी यूरो का प्रादुर्भाव हुआ और अब अधिकांश यूरोपीय देशों ने डॉलर के बदले यूरो रखना शुरू कर दिया। इसके चलते रिजर्व करंसी के नाते डॉलर का हिस्सा घटने लगा और वर्ष 2021 तक यह घटकर 59 प्रतिशत रह गया था। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार डॉलर का वैश्विक रिजर्व करंसी के रूप में हिस्सा 2010 में 62 प्रतिशत, 2015 में 65.73 प्रतिशत, 2020 में 59 प्रतिशत और 2023 में 58.41 प्रतिशत रह गया। समझना होगा कि उतार-चढ़ाव के साथ वर्ष 1999 से डॉलर का महत्त्व अंतरराष्ट्रीय रिजर्व करंसी के नाते लगातार घटता रहा है। लेकिन महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चाहे डॉलर का महत्त्व घटता गया हो, लेकिन डॉलर अभी भी दुनिया की सबसे अधिक पसंदीदा करंसी बना हुआ है। उसके मुकाबले दूसरे स्थान पर यूरो का हिस्सा अभी भी 20 प्रतिशत के आसपास ही है और बाकी कोई भी करंसी उसके नजदीक भी नहीं है। आज भी दुनिया के अधिकांश अंतरराष्ट्रीय लेन-देन डॉलर में होते हैं।

इस कारण से डॉलर लंबे समय से कभी भी खास कमजोर नहीं हुआ। भारतीय रुपए के संदर्भ में देखें तो 1964 में जहां एक डॉलर 4.66 रुपए के बराबर था, वो अब बढक़र 83.4 रुपए तक पहुंच चुका है। अन्य करंसियों की तुलना में भी यह काफी मजबूत रहा है। लेकिन कुछ समय से दुनिया के देशों में वि.डॉलरीकरण के संकेत मिल रहे हैं। डॉलर के लगातार मजबूत होने के कारण लगभग सभी देशों, खासतौर पर विकासशील देशों को खासा नुकसान होता रहा है। भारत की यदि बात करें तो पिछले कुछ समय से भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक अंतरराष्ट्रीय भुगतानों में रुपए की भूमिका को बढ़ाने का प्रयास लगातार कर रहा है। लगभग 20 देशों के साथ इस बाबत सहमति भी बनी है। उधर अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल और खासतौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अमरीका और यूरोपीय देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में कठिनाई के कारण, दूसरे देशों में भी स्थानीय करंसियों में भुगतान के प्रयास तेज हो गए हैं। दुनिया में डॉलर के प्रति विमुखता इस कारण से भी बढ़ी है, क्योंकि अमरीका ने रूस को आक्रमणकारी बताते हुए उसके तमाम डॉलर रिजर्व को जब्त कर लिया है। ऐसे में दूसरे मुल्कों में यह भय व्याप्त हो गया है कि देर-सवेर अमरीका ऐसी कार्रवाई उन पर भी कर सकता है। ऐसे में उन मुल्कों पर रूस जैसी भुगतान की समस्या आ सकती है। ऐसे में दुनिया के मुल्क दो तरफा प्रयास कर रहे हैं। एक, स्थानीय करंसियों में भुगतान तो दूसरा डॉलर के स्थान पर सोने के भंडार में वृद्धि। भारत की यदि बात करें तो देखते हैं कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ते-बढ़ते अप्रैल के पहले सप्ताह तक 648.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।

लेकिन इस बीच में एक और महत्त्वपूर्ण बात जो दिखाई दी कि विदेशी मुद्रा भंडारों में सोने का भंडार 55.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें एक ही सप्ताह में 1.24 अरब डॉलर की वृद्धि हुई। बताया जा रहा है कि एक ही सप्ताह में सोने के भंडार में 6 टन वृद्धि हुई। पिछले साल की तुलना में भारत का स्वर्ण भंडार 13 टन ज्यादा है। दुनिया में आधिकारिक स्वर्ण भंडार की दृष्टि से भारत का स्थान 9वां है। भारतीय रिजर्व बैंक ने स्वर्ण भंडार की प्राथमिकता के बारे में आधिकारिक पुष्टि भी की है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में जहां विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों और अन्य संस्थाओं द्वारा 450.1 टन सोने की खरीद की गई, वो बढक़र 2022 में 1135.7 टन हो गई। वर्ष 2023 में केंद्रीय बैंकों ने 1037 टन सोने की खरीद की। गौरतलब है कि गहनों के रूप में सोने की मांग पहले के मुकाबले में लगातार घटती जा रही है, जबकि निवेश के रूप में सोने की मांग लगातार बढ़ रही है। इस बीच पिछले सालों में केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की खरीद में अभूतपूर्व वृद्धि ने दुनिया में सोने की मांग बढ़ा दी है। यदि सोने के भाव की बात करें तो पिछले दो-तीन वर्षों में सोने की कीमत में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में सोने की औसत कीमत 1268.93 डॉलर प्रति ओंस थी, जो वर्ष 2024 में अभी तक 2126.82 डॉलर प्रति ओंस तक पहुंच चुकी है। यानी मात्र 6 वर्षों से भी कम समय में सोने की कीमत में 67.6 प्रतिशत की वृद्धि यानी लगभग 9.5 प्रतिशत वार्षिक की वृद्धि।

क्यों बढ़ रही है सोने की पसंद

यह बात सर्वथा सिद्ध हो रही है कि दुनिया में सोने की मांग बढ़ रही है, जिसके कारण उसकी कीमत भी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 1988 में सोने की कीमत 437 डॉलर प्रति आउंस थी, जो 2018 तक बढक़र 1268.93 तक पहुंची थी, यानी 30 सालों में 3.61 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि। लेकिन पिछले 6 सालों में सोने की कीमतें 9.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं। ऐसे में दुनिया के आर्थिक विश्लेषक वैश्विक मौद्रिक एवं वित्तीय परिस्थितियों में महत्वपूर्ण बदलावों की ओर इंगित कर रहे हैं। पहला कारण यह है कि संयुक्त राज्य अमरीका के केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दर, जिसे फेड रेट भी कहते हैं, उसके घटने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। ऐसे में चूंकि ब्याज दरें कम होने पर लोग वित्तीय परिसंपत्तियों के बजाय सोना खरीदने की ओर आकर्षित होंगे। ऐसे में यदि ब्याज दर गिरती है तो सोने की मांग बढ़ेगी।

दूसरा कारण यह बताया जा रहा है कि चीन समेत दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अब ज्यादा से ज्यादा सोना खरीद रहे हैं। इस प्रवृत्ति के थमने की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही। तीसरा दुनिया भर में सोने की कीमतों में वृद्धि की अपेक्षा की जा रही है। ऐसे में केंद्रीय बैंकों द्वारा ज्यादा सोना खरीदने की संभावनाएं और भी बढ़ रही हैं, क्योंकि यदि केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडारों में सोने की मात्रा बढ़ाते है, तो बढ़ती सोने की कीमतों के साथ उनके विदेशी मुद्रा भंडार स्वयंमेव बढ़ जाएंगे। सोने की बढ़ती यह मांग, कई सवाल खड़े करती है, उसमें से सबसे अहम सवाल यह है कि क्या अब डॉलर का वर्चस्व समाप्त हो रहा है। एक दूसरा सवाल यह है कि क्या सोने का महत्व अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में भी बढऩे वाला है। क्या ऐसा होगा या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है, लेकिन यह स्पष्ट है कि विश्व वि.डॉलरीकरण की ओर बढ़ रहा है तथा उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के साथ देश अपने विदेशी व्यापार को अपनी घरेलू मुद्राओं में निपटाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में डॉलर के विकल्प में सर्वाधिक प्राथमिकता सोने को दी जा सकती है। दुनिया के कई देश अमरीका द्वारा उनके विदेशी भंडारों के जब्त होने के अंदेशे से भी आशंकित हैं, क्योंकि रुस के साथ अमरीका ऐसा कर चुका है। भारत और चीन सहित दुनिया में सोने की मांग बढऩे का यह भी एक मुख्य कारण बन रहा है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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