खिलाडिय़ों को नौकरी नहीं तो वजीफा तो दो

By: Jul 5th, 2024 12:06 am

जो नौकरी में हैं, वो तो बहुत कठिनाई से अपने वेतन से कुछ न कुछ जुगाड़ कर लेते हैं, मगर जो विद्यार्थी व बेरोजगार हैं, वे कैसे अपना अभ्यास जारी रखें, यह हिमाचल सरकार को सोचना होगा। क्या प्रदेश सरकार कुछ उपकार इन प्रतिभाशाली एथलीटों पर करेगी…

ओलंपिक 2024 के लिए हुए अंतिम क्वालीफाई चैंपियनशिप में हरियाणा की किरण ने चार सौ मीटर की दौड़ को 50.92 सेकंडों में पूरा कर पेरिस का टिकट कटवा लिया है, मगर जो इंटरव्यू में उसने कहा, वो देश में खेलों के ठेकेदारों यानी साई व खेल संघों के लिए शर्मनाक है। एक तरफ करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा कर कोई भी कैम्पर 400 मीटर की व्यक्तिगत स्पर्धा में क्वालीफाई नहीं कर पाया है और दूसरी तरफ किसी सरकारी सहायता के बगैर मुश्किलों में किरण का यह प्रदर्शन सोचने पर मजबूर कर रहा है कि सरकारें प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को सीधा वजीफा क्यों नहीं दे सकती हैं। हिमाचल प्रदेश के कुछ एथलीट हैं जो 2026 की एशियाई खेलों में देश के लिए खेल कर पदक दे सकते हैं। उनमें सावन, अंकेश और दिनेश सेना व सीमा भी राष्ट्रीय कैंप में रह कर राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरी तरफ कुछ उभरते हुए जूनियर एथलीट हैं जो अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। माता कामाख्या के आंचल में असम की राजधानी गोहाटी में आयोजित खेलो इंडिया अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स में राजकीय महाविद्यालय मंडी की धाविका कुसुम ठाकुर ने सौ मीटर की फर्राटा दौड़ में रजत व दो सौ मीटर में स्वर्ण पदक जीत कर हिमाचल का नाम रोशन किया है। हमीरपुर के सरकारी महाविद्यालय की धाविका प्रिय ठाकुर ने चार सौ मीटर की दौड़ में कांस्य पदक जीता है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की चार गुणा चार सौ मीटर दौड़ में भी लड़कियों ने कांस्य पदक जीता है।

तेज गति की दौड़ों में हिमाचल के खिलाडिय़ों का प्रदर्शन पहले कमजोर ही रहा है। यह अलग बात है कि पुष्पा ठाकुर ने जरूर इस मिथक को तोड़ कर भविष्य के एथलीटों को राह दिखाई है। मानव शरीर ईश्वर द्वारा बनाई गई बहुत ही अद्भुत मशीन है। इसे चलाने के लिए भी ईंधन की जरूरत होती है। मानव शरीर के ऊर्जा चक्र को समझने के लिए हमें एटीपी से लेकर सीपीए लैक्टिक एसिड, शरीर से ऑक्सीजन की उधारी व सांस द्वारा ऑक्सीजन का फेफड़ों में पहुंच कर खून के साथ मिलकर फिर सैल तक पहुंच कर शरीर को गतिशील बनाए रखने का गहन अध्ययन जरूरी है। सौ से लेकर चार सौ मीटर की दौड़ों को तेज गति में गिना जाता है। गति ही सभी स्पर्धाओं व खेलों की जीत का मूल मंत्र है। यह खिलाड़ी में जन्मजात होती है। प्रशिक्षण द्वारा भी इसमें बहुत ही कम एक उम्र तक विकास होता है। ओलंपिक खेलों में विभिन्न खेलों की कई स्पर्धाएं आयोजित होती हैं, मगर एथलेटिक्स का आकर्षण सबसे अधिक होता है। ओलंपिक में जो धावक सौ मीटर की दौड़ में विजेता बनता है, वह पृथ्वी का तीव्रतम इनसान बनता है। सौ मीटर की दौड़ का अद्भुत रोमांच होता है। हिमाचल प्रदेश में तेज गति के बहुत कम धावक व धाविकाएं आज तक सामने आए हैं। सौ मीटर से लेकर चार सौ मीटर की स्पर्धाओं को स्परिंट यानी तेज गति की दौड़ों में रखा गया है। इन स्पर्धाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए जहां जन्मजात स्पीड चाहिए होती है, वहीं बहुत अधिक स्पीड इंडोरैंस व स्ट्रैंथ ट्रेनिंग की जरूरत होती है। जहां उच्च कोटि का प्रोटीन आम आदमी को आसानी से उपलब्ध होता है, वहीं के लोगों में अच्छी स्पीड जन्म से ही होती है। स्पीड को बहुत छोटी उम्र से ही विकसित करना पड़ता है। इसलिए स्पीड पर प्रशिक्षण दस वर्ष से भी कम आयु में शुरू करना पड़ता है। अगले पांच सालों में स्पीड अपने उच्च स्तर तक विकसित हो जाती है। यह भी कहा जाता है कि स्परिंटर पैदा होते हैं, बनाए नहीं जाते। भारत के अधिकतर स्परिंटर समुद्र तट से संबंध रखते हैं।

मछली इन लोगों का मुख्य आहार है। मछली में अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन मिलता है। उत्तर भारत में शाकाहारी अधिक हैं, मगर गेहूं, दूध व उससे बने पदार्थों में भी अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन मिलता है। यह भी कारण है कि पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी समय-समय पर अच्छे स्परिंटर मिलते रहते हैं। हिमाचल प्रदेश से वरिष्ठ राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पुष्पा ठाकुर ही एकमात्र धाविका है जो हिमाचल प्रदेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 400 मीटर में पदक विजेता है। एशिया व ओलंपिक खेलों के राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविरों तक पहुंचने वाली इस धाविका के बाद अभी तक कोई भी पुरुष या महिला हिमाचल प्रदेश के लिए वरिष्ठ राष्ट्रीय स्तर पदक जीत नहीं पाया है। भविष्य में उभरते हुए कुसुम, प्रिय व मनीषा आदि तेज गति के एथलीट हैं जिनको वजीफे की बहुत जरूरत है। इनके पास नौकरी नहीं है। सामान्य परिवारों से इनका संबंध है, जो इतना खर्च नहीं कर सकते हैं। लंबी दूरी की दौड़ों में हिमाचल का इतिहास अच्छा रहा है। सुमन रावत 1982 एशियाड में तीन हजार मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीतकर अर्जुन अवार्डी है। स्वर्गीय कमलेश व अमन सैनी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। हाल ही में आयोजित अखिल भारतीय अंतर राज्य एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सीमा ने पांच व दस सौ मीटर की दौड़ों में रजत पदक जीते हैं। इस चैंपियनशिप में ही सेना में नौकरी कर रहे कांगड़ा के अंकेश ने आठ सौ मीटर की दौड़ में रजत पदक जीता है।

सीमा, सावन, दिनेश व अंकेश आज राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इन सब एथलीटों को, जो हिमाचल से पलायन कर गए हैं, हिमाचल सरकार सम्मानजनक नौकरी तथा 2026 खेलों तक वजीफा भी दे। इस स्तर पर अपना अभ्यास जारी रखने के लिए महीने में पचास हजार रुपए चाहिए होते हैं। जो नौकरी में हैं, वो तो बहुत कठिनाई से अपने वेतन से कुछ न कुछ जुगाड़ कर लेते हैं, मगर जो विद्यार्थी व बेरोजगार हैं, वे कैसे अपना अभ्यास जारी रखें, यह हिमाचल सरकार को सोचना होगा। क्या प्रदेश सरकार कुछ उपकार इन प्रतिभाशाली एथलीटों पर करेगी, ताकि वे फ्री माइंड होकर अपना प्रशिक्षण जारी रख सकें। खिलाड़ी बनाए नहीं जाते हैं, वे जन्म से ही अलग होते हैं। लाखों बच्चों में कोई एक प्रतिभाशाली एथलीट मिलता है। समाज व सरकार का दायित्व है कि वे भविष्य में देश को गौरव दिलाने वाले अति प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को गोद लें।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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