कारगिल के योद्धाओं को याद करे राष्ट्र

भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय के आगे पाक मिशन कोह-ए-पैमा पाक सेना के लिए इस कदर आत्मघाती साबित हुआ कि दुश्मन अपनी कयामत की दुआ मांगने पर मजबूर हो चुका था। कारगिल जंग में भारतीय शूरवीरों ने पाक सेना की तजवीज को नेस्तनाबूद किया…

भारतीय सेना 26 जुलाई को कारगिल युद्ध की पच्चीसवीं वर्षगांठ मनाएगी। यह दिन पाकिस्तान के लिए शर्मिंदा करने वाली तारीख है। पाकिस्तान हमेशा कश्मीर को हथियाने के मंसूबे तैयार करता रहा है। मगर भारतीय सेना ने पाक हुक्मरानों की ख्वाहिशों का काफिला सरहद से आगे कभी नहीं बढऩे दिया। सन् 1980 के दशक में पाक सेना के कर्नल ‘जावेद अब्बास’ ‘आफिसर कमांड एंड स्टाफ कालेज’ ‘क्वेटा’ में सेवारत थे। जावेद अब्बास को पाक सेना ने भारत पर एक रिसर्च प्रोजेक्ट ‘इंडिया ए स्टडी इन प्रोफाइल’ का काम सौंपा था। जावेद अब्बास ने अपने शोध में खुलासा किया था कि ‘भारत के कुछ निजी मसलों का लाभ उठाकर हिंदोस्तान की ताकतवर सेना को कंट्रोल किया जा सकता है। सन् 1990 के दशक में पाक सेना के ‘सैन्य अभियान महानिदेशक’ के पद पर आसीन परवेज मुशर्रफ जावेद अब्बास के उस शोध से इस कदर प्रभावित हुए कि कश्मीर को हथियाने का जहालत भरा मंसूबा तैयार करने लगे तथा ‘डीजीएमओ’ रहते कश्मीर मंसूबे का मश्विरा पाकिस्तान की तत्कालीन वजीरे आजम बेनजीर भुट्टो के समक्ष पेश कर डाला। हालांकि परवेज मुशर्रफ के उस प्रस्ताव को मोहतरमा ने नाकाबिले अमल करार देकर खारिज कर दिया था, लेकिन वक्त ने करवट ली।

सन् 1998 में पाक वजीरे आजम नवाज शरीफ ने पाक सेना के दो सीनियर जरनैलों को दरकिनार करके परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान का चार सितारा जरनैल नियुक्त कर दिया। नवाज शरीफ की जिंदगी की यह सबसे बड़ी भूल साबित हुई। 17 मई 1999 को जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाक सेना के ‘ओजड़ी कैंप’ में वजीरे आजम नवाज शरीफ को कारगिल मंसूबे की ब्रीफिंग पेश करके कश्मीर का फातिम बनने का ख्वाब दिखाकर नियंत्रण रेखा के पार भारतीय हदूद में जाने की इजाजत लेने का ढोंग रचा था। जबकि हकीकत यह थी कि 18 हजार फीट की बुलंदी पर मौजूद कारगिल के दुर्गम क्षेत्रों में शीतकालीन स्थिति में भारतीय सेना जिन चौकियों को खाली कर देती थी, पाक सेना सन् 1999 के शुरुआती दौर में ही एलओसी पार करके उन चौकियों पर रक्षात्मक किलेबंदी कर चुकी थी। यानी पाकिस्तान 21 फरवरी 1999 के लाहौर समझौते को नजरअंदाज करके एलओसी पर मंसूंबाबंदी को अंजाम दे चुका था। उस पेशकदमी के दौरान एवलांच की चपेट में आने से कई पाकिस्तानी सैनिकों की मौत भी हो गई थी। एलओसी पर सिविल लिबास में घुसपैठ कर चुके हजारों सैनिक पाकिस्तान की ‘नार्दर्न लाइट इन्फंैट्री’ तथा ‘स्पेशल सर्विस ग्रुप’ के थे। कारगिल के मंसूबे को पाक सेना ने आपरेशन ‘कोह-ए-पैमा’ का नाम दिया था जिसका मकसद कारगिल क्षेत्र पर कब्जा करके सियाचिन ग्लेशियर को भारतीय सेना की पहुंच से अलग करके कश्मीर मसले को आलमी सतह पर दुनिया की निगाहों का मरकज बनाकर भारत पर रणनीतिक दबाव बनाना था। तीन मई 1999 को स्थानीय चरवाहों ने कारगिल क्षेत्र में पाक घुसपैठ की खबर भारतीय सेना को दी। छह मई 1999 को तुर्तुक क्षेत्र में ‘जाट रेजिमेंट’ की गश्त पार्टी पर पाक सेना की एनएलआई ने घात लगाकर हमला कर दिया। भीषण गोलीबारी में लांस नायक ‘खडग़ सिंह गुर्जर’ वीरगति को प्राप्त हो गए। खडग़ सिंह कारगिल युद्ध के प्रथम बलिदानी थे।

आठ मई 1999 को द्रास सेक्टर में भारतीय सेना की ‘ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट’ के चार जवान तथा 13 मई 1999 को ‘गढ़वाल राइफल्स’ की पैट्रोलिंग पार्टी के भी चार जवान पाक सेना से मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। 14 मई 1999 को पाक घुसपैठ का पता लगाने के लिए कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में निकले गश्ती दल का कॉकसर क्षेत्र में पाक सेना से मुकाबला हुआ। सौरभ कालिया का गश्ती दल दुश्मन से आखिरी गोली तक लड़ा, मगर गोला बारूद खत्म होने के बाद उस गश्ती दल को हिरासत में लेकर पाक सेना ने उन सैनिकों की नृशंस हत्या कर दी थी। सौरभ कालिया के गश्ती दल को खोजने के लिए उनकी यूनिट ‘चार जाट’ का एक अन्य गश्ती दल 17 मई 1999 को कैप्टन अमित भारद्वाज के नेतृत्व में निकला। मगर पाक सेना से मुठभेड़ के दौरान कैप्टन अमित भारद्वाज सहित तीन अन्य जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उन शहीद सैनिकों के पार्थिव शव सीजफायर के बाद 56 दिनों के बाद उठाए गए थे। कारगिल के पहाड़ों पर पाकिस्तानी घुसपैठ का पर्दाफाश होने के बाद 19 मई तक कारगिल सेक्टर युद्ध क्षेत्र घोषित हो चुका था। भारतीय सेना ने ‘आपरेशन विजय’ लांच करके जब पूरी तजवीज से पलटवार किया तो कारगिल का महाज पाक सेना के लिए कयामत का मंजर पेश करने लगा। बटालिक सेक्टर में 17 हजार फीट की बुलंदी पर प्वांइट 5203 पर कब्जा जमा चुकी पाक फौज पर ‘12 जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फैंट्री’ के कैप्टन अमोल कालिया ने अपने सैन्य दल के साथ आठ जून 1999 को जोरदार हमला करके उस क्षेत्र को मुक्त कराने में अहम किरदार निभाया था, मगर आक्रामक कार्रवाई के दौरान अमोल कालिया अपने कई सैनिकों के साथ वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

दुश्मन की भीषण गोलीबारी के कारण अमोल कालिया का पार्थिव शव भी बारह दिनों बाद 20 जून 1999 को बरामद किया गया था। युद्ध में उत्कृष्ट बहादुरी के लिए सेना ने हिमाचली शूरवीर कै. अमोल कालिया को ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से नवाजा था। ‘खालूबार’ पर्वतीय श्रेणी पर स्थित प्वांइट 4812 पर भी ‘12 जैकलाई’ के सात जवानों ने शहादत को गले लगाकर तीन जुलाई 1999 को कब्जा जमाया था तथा कारगिल जंग के जिंदा सबूत पाकिस्तानी सैनिक ‘इनायत अली’ को हिरासत में लिया था। भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय के आगे पाक मिशन कोह-ए-पैमा पाक सेना के लिए इस कदर आत्मघाती साबित हुआ कि दुश्मन अपनी कयामत की दुआ मांगने पर मजबूर हो चुका था। बहरहाल कारगिल जंग में भारतीय शूरवीरों ने पाक सेना की तजवीज को नेस्तनाबूद करके पाकिस्तान के नामुराद जरनैलों की कश्मीर फतह करने की जंगी सनक को ध्वस्त कर दिया था। लाजिमी है विजय दिवस के अवसर पर राष्ट्र कारगिल के योद्धाओं की दास्तान-ए-सुजात को नमन करे। देश अपने रणबांकुरों के शौर्य का हमेशा ऋणी रहेगा।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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