जब कारगिल जंग में बेनकाब हुआ पाकिस्तान…

पाक हुकूमत के कई वजीरों ने भी ‘मजलिस-ए-शूरा’ में खड़े होकर कारगिल जंग की मुखाल्फत की थी। कारगिल में पाक फौज को मफलूज करने वाले हथियारों का खौफनाक शोर 26 जुलाई 1999 तक थम चुका था। शहीद सैनिकों के बलिदान का सम्मान होना चाहिए…
कारगिल के महाज पर आग उगलने में कुख्यात बोफोर्स तोपों की शदीद बमबारी तथा भारतीय सेना द्वारा पाक सेना की बेरहमी से हलाकत से पाकिस्तान की ‘नार्दर्न लाइट इन्फैंट्री’ का वजूद लगभग खल्लास होने वाला था। उस वक्त पाक जरनैलों ने अपनी आबरू बचाने के लिए वजीरे आजम नवाज शरीफ को अमन का पैरोकार बनाकर अमरीका, ब्रिटेन, चीन व तुर्की जैसे मुल्कों की कदमबोसी करने पर मजबूर कर दिया था। परंतु कारगिल घुसपैठ में किसी भी मुल्क ने पाकिस्तान की हिमायत नहीं की थी। बैरूने मुल्कों से बेआबरू होकर लौटे नवाज शरीफ ने 12 जुलाई 1999 को पाकिस्तान की आवाम से खिताब किया और फरमाया कि ‘हम कब तक अपने बच्चों का मुस्तकबिल बेचकर तोपों के गोले बनाते रहेंगे’। मगर दौरान-ए-तकरीर में नवाज शरीफ ने अपनी आवाम को कारगिल मंसूबे की हकीकत से महरूम रखा। कारगिल की जंग में जांवाहक हो रहे पाक सैनिकों को मुजाहीद्दीन करार दे दिया था। कारगिल जंग की हकीकत तथा अपनी नाकामी को छुपाने के लिए परवेज मुशर्रफ ने 12 अक्तूबर 1999 को तख्तापलट को अंजाम देकर पाकिस्तान में फौजी हुकूमत नाफिज कर दी। सेना के आगे नवाज शरीफ ने इक्तदार से अलग होने में ही आफियत समझी। कारगिल में पाक सेना की घुसपैठ करवाकर भारत को दहलाने के मंसूबे के सूत्रधार परवेज मुशर्रफ फरवरी 2023 को कश्मीर हथियाने की अधूरी ख्वाहिश के साथ इस दुनिया से रुखसत हो गए।
मरहूम सिपाहसालार के लिए सुखद एहसास यह रहा कि इंतकाल के बाद उनकी मय्यत को पाकिस्तान का कब्रिस्तान नसीब हो गया, मगर जरनैल रहते जिन पाक सैनिकों को कारगिल जंग की आग में झोंक दिया था, वो बदनसीब थे, जिनकी मय्यत को न उनके वतन की मिट्टी नसीब हुई और न ही ताबूतों पर पाकिस्तान का परचम चस्पां हुआ। परवेज मुशर्रफ, अजीज खान, महमूद अहमद व जावेद हसन चारों पाक जरनैल कारगिल के मंसूबे को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम देने वाले प्रमुख चेहरे थे। एलओसी पर घुसपैठ की जिम्मेदारी ‘स्पेशल आपरेशन डिवीजन’ के सरवराह मेजर जनरल ‘अशरफ रशीद’ को दी गई थी। कारगिल जंग में पाक सैनिकों की दर्दनाक हलाकत व शर्मनाक शिकस्त से जलील होकर घुसपैठ के अहम किरदार अशरफ रशीद ने सितंबर 1999 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। कारगिल जंग में हलाक हुए पाक सैनिकों की लाशें उठाने का जिम्मा ‘12 एनएलआई’ के कर्नल ‘खालिद नजीर’ व फ्रंटियर फोर्स के कर्नल ‘मुस्तफा’ को सौंपा गया था। परंतु जंग में पाक फौज के किरदार पर पर्दा डालने के लिए हलाक हुए पाक सैनिकों की लाशें बरामद करने में पाकिस्तान ने शिद्दत नहीं दिखाई। उन मरहूम पाक सैनिकों के परिवारजन आज भी इंतजार में हैं, लेकिन अपनी जान का नजराना पेश करने वाले दुश्मन सैनिकों को भारतीय सेना ने मैदाने जंग में खिराज-ए-अकीदत पेश करके आदमियत की मिसाल कायम की थी। 29 मई 1999 को कारगिल क्षेत्र में भारतीय सेना के जोरदार हमले में अपने पूरे सैन्य दल के साथ हलाक हुए ‘तीन एनएलआई’ के कैप्टन ‘इनाम उल्लाह’ ‘तगमा-ए-बसालत’ को पाक सेना ने कारगिल जंग में अपना प्रथम शहीद सैन्य अफसर माना था।
भारतीय सेना ने इनाम उल्लाह की लाश के अवशेष पाकिस्तान को लौटाए थे। नौ जून 1999 को भारतीय सेना ने कैप्टन ‘फरहत हसीब’ ‘सितारा-ए-जुर्रत’ को उसके सैन्य दस्ते के साथ हलाक करके कारगिल के मोर्चे पर ही दफन कर दिया था। 27 जून 1999 को सेना की ‘राजपूत रेजिमेंट’ ने ‘तुर्तुक सेक्टर’ में बिलाल पोस्ट पर हमला करके कैप्टन ‘तैमूर मलिक’ सहित ग्यारह पाक सैनिकों को हलाक कर दिया था। तैमूर का शव प्राप्त करने के लिए उसके परिजनों ने ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग के माध्यम से सिफारिश की थी। शहादत के कई दिनों बाद भारतीय सेना ने तैमूर मलिक ‘तगमा-ए-बसालत’ का शव पाकिस्तान को सौंपा, तो पाक सेना के तर्जुमान तौकिर जिया ने भारतीय सेना का शुक्रिया अदा किया था। चार जुलाई 1999 को टाइगर हिल के मोर्चे पर कैप्टन अम्मार हुसैन, मेजर अरशद हाशिम व दर्जनों पाक सैनिकों को हलाक करके भारतीय सेना ने वहीं सपुर्दे-खाक करके तहज्जुद की नमाज अदा कर दी थी। अम्मार हुसैन के परिवार को सांत्वना देने के लिए पाक सेना ने ‘सितारा-ए-जुर्रत’ से सरफराज करके रावलपिंडी के चकलाला चौक का नाम ‘अम्मार हुसैन चौक’ रख दिया है। टाइगर हिल पर ही मारे गए कैप्टन ‘करनल शेर खान’ का शव भारतीय सेना ने पूरी अकीदत से पाकिस्तान को सौंपा था। 18 जुलाई 1999 को शेर खान की मय्यत जब कराची एयरपोर्ट पर पहुंची तो कराची के कोर कमांडर ‘मुजफ्फर उस्मानी’ ने शेर खान के ताबूत को खुद कंधा दिया। भारतीय सेना के ब्रिगेडियर ‘मोहिंद्र प्रताप सिंह बाजवा’ की सिफारिश पर पाक ने शहीद करनल शेर खान को अपने आलातरीन सैन्य एजाज ‘निशान-ए-हैदर’ से नवाजा था।
सैकड़ों पाक सैनिकों को मौत के मुंह में धकेलने के बावजूद पाक सेना कारगिल घुसपैठ में अपने किरदार को नकारती रही है। लेकिन नसीम जेहरा जैसे पाकिस्तान के कई सहाफियों व शाहिद अजीज जैसे पाक जरनैलों ने कारगिल साजिश में मुल्लविश पाक फौज को अपनी किताबों में तफसील से बेनकाब किया है। पाक हुकूमत के कई वजीरों ने भी ‘मजलिस-ए-शूरा’ में खड़े होकर कारगिल जंग की मुखाल्फत की थी। कारगिल में पाक फौज को मफलूज करने वाले हथियारों का खौफनाक शोर 26 जुलाई 1999 तक थम चुका था। 18 हजार फीट के फराज पर भारतीय सेना के 527 शूरवीरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर पाक मंसूबाबंदी को ध्वस्त कर दिया था, मगर अफसोस कि कारगिल जंग के सूत्रधार परवेज मुशर्रफ को हमारे देश के हुक्मरानों ने भारत में मुजाकरात की दावत दे डाली थी, जो कि विक्रम बत्रा, अमोल कलिया व सौरभ कालिया जैसे कारगिल में फिदा-ए-वतन हो चुके सैकड़ों शूरवीरों के बलिदान का अपमान था। राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए शहीद हुए सैनिकों के बलिदान का सम्मान होना चाहिए। यह स्वागतयोग्य होगा कि 26 जुलाई को देश फिर इन योद्धाओं को नमन करेगा।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
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