कातिलाना शौक की आगोश में युवावेग
बहरहाल आगाज-ए-जवानी में गन कल्चर की उल्फत में डूब रहे युवाओं से अपील है कि यदि हथियारों से खेलने का शौक है, तो दुनिया की सर्वोत्तम भारतीय थल सेना का हिस्सा बनें। सेना में प्रशिक्षण के साथ कई किस्म के आधुनिक हथियारों से मुखातिब होने का मौका मिलेगा…
किसी भी राष्ट्र का बेहतर मुस्तकबिल उस मुल्क की युवाशक्ति से तय होता है। तवानाई से मुराद युवा ताकत मुल्क के किसी भी हिस्से में इंकलाब लाने की सलाहियत रखती है। सशस्त्र सेनाओं से लेकर देश के हर क्षेत्र में युवाओं की जरूरत रहती है। लेकिन यदि मुल्क का सबसे बड़ा सरमाया युवावेग बुनियादी अखलाक तथा अच्छी तालीम व तरबियत से महरूम रहकर नाफरमान होकर जुर्म की दुनिया में मुकाम तलाशने पर आमादा हो जाए तो अभिभावकों के अरमान अश्क बनकर बह जाते हैं। चूंकि इनसान की परवरिश में पारंपरिक संस्कार बहुत मायने रखते हैं। यदि तालीम व तरबियत की बुनियाद मजबूत हो तो इनसान का जमीर खुद उसके किरदार को महफूज रखता है। आधुनिक दौर में कुछ जानलेवा शौक युवावर्ग को अपनी गिरफ्त में ले चुके हैं, मसलन तीव्रता से बजकर दिल की धडक़न को तेज करने वाला म्यूजिक, नशे की तलब व गन कल्चर की ख्वाहिश तथा सडक़ों पर मौत का मंजर पेश करने वाली वाहनों की तेज रफ्तार जैसे कातिलाना शौक युवाओं के अहबाब बन रहे हैं। देश रक्षा के महाज पर दास्तान-ए-सुजात के मजमून लिखने वाली भारतीय सेना युवाओं के लिए सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत है। खेल मैदानों पर जोर आजमाईश करके हमारे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर तिरंगा लहराकर हिंदोस्तान को गौरवान्वित कर रहे हैं। डॉक्टर, इंजीनियर व वैज्ञानिक आलमी सतह पर भारत का मान-सम्मान बढ़ा रहे हैं। मगर विडंबना है कि ज्यादातर युवा सियासी रहनुमाओं व मायानगरी के अदाकारों को अपना आदर्श मानते हैं। सियासतदानों व सिल्वर स्क्रीन के अदाकारों के साथ फोटो खिंचवाना भी प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
यदि युवापीढ़ी में नशाखोरी, गैंगस्टर व गन कल्चर जैसे नदामत का सबब बन चुके शौक पनप रहे हैं, तो सियासत व बॉलीवुड के नुमाया किरदार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। देश के कई सियासी रहनुमां तथा मायानगरी के कई अदाकार ‘आम्र्स एक्ट’ व ‘गैंगस्टर एक्ट’ के तहत सलाखों के पीछे जा चुके हैं। आधुनिक म्यूजिक में अश्लील लफ्फाजी तथा फिल्मों में नशीली बज्म व गन कल्चर की झलक साफ दिखती है। लोकप्रियता की बुलंदी पर पहुंचने के लिए कई फनकार अपने नगमों में मादक पदार्थों व हथियारों का महिमामंडन बखूबी करते हैं। गन कल्चर, नशीली बज्म, हुक्का बार व गैंगस्टर संस्कृति की प्रमोशन करने वाले सिनेमा व संगीत जगत ने युवाओं के जहन में काफी हद तक अपना प्रभाव छोड़ दिया है। शादी समारोह व कई अन्य कार्यक्रमों में फायरिंग करके अपनी हैसियत व रुतबे की नुमाईश की जाती है। देश के कई राज्य हथियारों की कालाबाजारी के लिए मशहूर हो चुके हैं। चुनावों के दौरान कई राज्यों में लाइसेंसी हथियार जमा करने में सुरक्षा एजेंसियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। स्मरण रहे कोई भी इनसान पैदाइशी गैंगस्टर या तस्कर नहीं होता और न ही कोई माफिया या बाहुबली फलक से टपकता है। गैंगस्टर, डॉन, मफिया, बाहुबली, अलगाववादी व चरमपंथी बनने की दास्तान के पीछे कहीं न कहीं जम्हूरी निजाम की हिमायत व सरपरस्ती जरूर हासिल होती है। आम लोगों व सुरक्षा एजेंसियों के लिए गर्दिश पैदा करने वाले इन मसलों को रुखसत करने में वोट बैंक के चलते सियासत भी खामोश रहती है। जबकि सुशासन की कसौटी का मतलब कानून की हुक्मरानी होता है। देश में गैंगस्टर व हथियार संस्कृति के पनपने से कारोबारियों व कई अन्य लोगों से रंगदारी, अवैध वसूली व अपहरण की धमकी देकर फिरौती मांगना भी एक धंधा बन चुका है। जेलों में गैंगवार तथा गैंगस्टरों के भागने की खबरें अक्सर न्यूज चैनलों की सुर्खियां बनती हैं। विदेशी में बैठकर गैंगस्टर नेटवर्क का संचालन हो रहा है। भारत को अस्थिर करने वाले तत्त्वों को बैरूने मुल्कों की खुलेआम हिमायत हासिल है।
अपनी तहजीब व खूबसूरती के लिए विश्वविख्यात कश्मीर घाटी को जहन्नुम में तब्दील करने का असबाब गन कल्चर की हिमायत ही बना था। सन् 1990 के दशक में आतंक के तर्जुमान पाकिस्तान तथा मजहब के रहनुमाओं ने युवाओं को जन्नत में बहत्तर हूरों का जहालत भरा ख्वाब दिखाकर बंदूक उठाने के लिए ही प्रेरित किया था। नतीजतन ‘कश्यप ऋषि’ की तपोस्थली कश्मीर ‘कलाश्निकोव राइफलों’ के खौफनाक शौर से आज तक थरथर्रा रहा है। मादक पदार्थ व डंग्स के अवैध बाजार पर कब्जा जमा चुकी पाक खूफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ सरहदी राज्यों में गैंगस्टर नेटवर्क को हवा देकर आतंकवाद को जीवित रखना चाहती है। बाहरी मदद से भारतीय हदूद में हथियार व असलाह गिराने के मंसूबों को अंजाम दिया जाता है। हैरत की बात है कि देवभूमि जैसे मुकद्दस नाम की शिनाख्त वाले राज्य हिमाचल प्रदेश के धरातल पर गोलीकांड जैसी कातिलाना वारदातें सरेआम हो रही हैं। बड़े महानगरों व विदेशों में फैलने वाली नशे की महामारी के जहरीले शजर पहाड़ की शांत शबनम पर बहुत पहले उग चुके हैं, मगर लूटमार, डकैती व कत्ल जैसी कई क्रूरता भरी हिंसक वारदातों का ग्राफ भी लगातार बढ़ रहा है।
देश में कोई भी आपराधिक घटना हो तो सियासत की दर्जा-ए-हरारत बढ़ जाती है। मगर अपराध आखिर अपराध है। गुनाह का सबब बनने वाली हर बुराई की मुखाल्फत सख्त लहजे में होनी चाहिए। अराजकता का माहौल पैदा करने वाले तत्त्वों के खिलाफ सरकारों को सख्त एक्शन लेना होगा। हथियारों की नुमाइश युवाओं की शानो-शौकत है या वक्त की नजाकत, यह एक बड़ा प्रश्न है, लेकिन जुर्म की दुनिया का एक बड़ा चेहरा बनने की ख्वाहिश तथा हथियार संस्कृति के बढ़ते क्रेज से समाज में खून के रिश्ते बेरहम हो चुके हैं। बहरहाल आगाज-ए-जवानी में गन कल्चर की उल्फत में डूब रहे युवाओं से अपील है कि यदि हथियारों से खेलने का शौक है तो दुनिया की सर्वोत्तम भारतीय थल सेना का हिस्सा बनें। सेना में प्रशिक्षण के साथ कई किस्म के आधुनिक हथियारों से मुखातिब होने का मौका मिलेगा। सभ्य समाज व सशक्त राष्ट्र के निर्माण के मद्देनजर युवावर्ग के भविष्य से जुड़े मुद्दों पर सियासी नजर-ए-करम की निहायत जरूरत है।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
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