बांग्लादेश को ताकत का एहसास कराए भारत

भारत के पड़ोसी मुल्कों तथा कई अन्य देशों में विदेशी खूफिया एजेंसियां भारत विरोधी ताकतों की हिमायत कर रही हैं। अत: विश्व की चौथी ताकतवर सैन्यशक्ति की हैसियत रखने वाले भारत को अपनी ताकत का एहसास कराना होगा। देश के सियासी नेतृत्व को आगामी नीति पर विचार करना चाहिए…
सन् 1971 की जंग में पाकिस्तान की मदद के लिए एडमिरल ‘जॉन मेकेन’ के नेतृत्व में आया अमरीका का सातवां एटमी जंगी बेड़ा ‘यूएसएस एंटरप्राइज’ बंगाल की खाड़ी में तथा ब्रिटेन का एयरक्राफ्ट कैरियर ‘एचएमएस ईग्ल’ अरब सागर में ही खड़े रह गए, लेकिन विश्व की सर्वोत्तम भारतीय थलसेना ने 16 दिसंबर 1971 को ढाका के ‘रामना रेसकोर्स गार्डन’ में पाक सेना को घुटनों के बल बिठाकर पाकिस्तान को पूरी दुनिया में बेआबरू कर दिया था। हिमाचल प्रदेश के कैप्टन ‘जतिंदर नाथ सूद’ के नेतृत्व में ‘पांचवीं गोरखा’ रेजिमेंट के जवानों ने बांग्लादेश के महाज पर आठ दिसंबर 1971 को ‘पीरगंज’ में हमला करके पाक सेना की किलेबंदी को ध्वस्त करके भारत की जीत का एक सुनहरा शिलालेख लिख दिया था। पीरगंज के युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वाले कैप्टन जतिदंर नाथ सूद को सेना ने ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से नवाजा था। बेशक बांग्लादेश भारतीय सैन्य पराक्रम के रहमो करम से आजाद हुआ था। लेकिन काबिलेगौर रहे कि बांग्लादेश के सैन्य अफसरों की फौजी तालीम सन् 1971 तक पाकिस्तान में ही हुई थी। इसीलिए बांग्लादेश की सेना तथा मजहबी जमातें जज्बाती तौर पर पाकिस्तान से आजाद नहीं हुई हैं। अत: बांग्लादेश को भारत विरोधी मानसिकता विरासत में मिली है।
इस्कंदर अली मिर्जा, अयूब खान, याहिया खान, टिक्का खान व जिया उल हक जैसे पाकिस्तान के नामुराद जरनैलों से मिले जम्हूरियत को कुचलने वाले संस्कारों को बांग्लादेश की सेना ने भी पूरी अकीदत से तसलीम कर लिया था, जिसका पहला परिणाम सन् 1975 में ही सामने आ गया था। सन् 1971 में मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व करने वाले बांग्लादेश के संस्थापक व राष्ट्रपति बंगबंधु ‘शेख मुजीबुर रहमान’ को बांग्लादेश की सेना ने 15 अगस्त 1975 के दिन उनके परिवार के कई सदस्यों सहित हलाक करके तख्तापलट कर दिया था। पाकिस्तान की तर्ज पर बांग्लादेश में तख्तापलट व तशद्दुद का जो दौर सन् 1975 में शुरू हुआ था, वो मौजूदा वक्त तक जारी है। शेख मुजीबुर रहमान की हलाकत व तख्तापलट की साजिश में मुल्लविश ‘खोडांकर मुस्ताक अहमद’ बांग्लादेश के सदर बने मगर मात्र तीन महीने बाद ही सेना ने तख्तापलट कर दिया था। नवंबर 1975 को राष्ट्रपति बने ‘अबू सादात मोहम्मद सईम’ को डेढ़ वर्ष बाद ही इस्तीफा देना पड़ा था। शेख मुजीबुर रहमान के कत्ल के एक अन्य अहम किरदार व साबिक वजीरे आजम खालिदा जिया के शौहर जनरल ‘जियाउर रहमान’ सन् 1977 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति पद पर काबिज हो गए। पाक सेना में मेजर रहे जियाउर रहमान ने सन् 1965 की जंग में खेमकरण सेक्टर में भारत के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लिया था तथा पाक सेना ने जिया को ‘सितारा-ए-जुर्रत’ से नवाजा था। सन् 1971 में जियाउर रहमान ने मुक्ति वाहिनी के सेक्टर कमांडर के तौर पर बांग्लादेश की आजादी में भी अपना किरदार अदा किया था तथा जंग के दौरान अपने कमान अधिकारी ‘ईस्ट बंगाल रेजिमेंट’ के पाक कर्नल ‘जंजुआ’ का कत्ल करके चटगांव के ‘कलुरघाट’ रेडियो स्टेशन से 27 मार्च 1971 को बांग्लादेश की आजादी की घोषणा कर दी थी। बांग्लादेश ने जिया को अपने सैन्य एजाज ‘बीर उत्तम’ से नवाजा था।
लेकिन बांग्लादेश की सेना ने 30 मई 1981 के दिन अपने राष्ट्रपति व सिपाहसालार जियाउर रहमान का कत्ल करके तख्तापलट के मजमून को फिर दोहरा दिया था। भारत की मुखाल्फत करने वाले सियासी दल ‘बीएनपी’ की स्थापना जियाउर रहमान ने ही की थी। भारत व भूटान दोनों देशों ने छह दिसंबर 1971 को जंग के दौरान ही बांग्लादेश को मान्यता प्रदान की तथा अन्य मुल्कों से भी बांग्लादेश को मान्यता देने की अपील की थी। लेकिन सन् 1980 के दौर में बांग्लादेश के वजीरे आजम रहे ‘शाह अजीजुर रहमान’ ने 1971 की जंग में पाक सेना का पूरा सहयोग किया था तथा बांग्लादेश में भारतीय सैन्य कार्रवाई का विरोध ‘यूएनओ’ के मंच पर जाकर किया था। ‘रविंद्र नाथ टैगोर’ द्वारा लिखित बांग्लादेश के कौमी तराना ‘आमार सोनार बांग्ला’ को हटाने की आवाज भी शाह अजीजुर रहमान ने ही बुलंद की थी। मगर बांग्लादेश के सैन्य प्रमुख ‘हुसैन मोहम्मद इरशाद’ ने सन् 1982 में तख्तापलट को अंजाम देकर प्रधानमंत्री अजीजुर रहमान को सत्ता से बेदखल कर दिया था। सन् 1971 के युद्ध में जिल्लतभरी शिकस्त का इंतकाम लेने के लिए पाक खूफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ ने बांग्लादेश की धरती पर चरमपंथ व कट्टरवाद की पैरवी करने वाली मजहबी जमातों की परवरिश शुरू कर दी थी। हजारों भारतीय सैनिकों की कुर्बानियों के बाद वजूद में आए बांग्लादेश में मौजूद पाक परस्त मजहबी जमातों व कई सियासी रहनुमाओं के जहन में भारत विरोध की चिंगारी एक मुद्दत से सुलग रही है, जिसका एक पहलू मजहब से जुड़ा है।
अलबत्ता यदि भारत की समर्थक रही वजीरे आजम शेख हसीना का तख्तापलट हुआ है तो कोई हैरानगी नहीं होनी चाहिए। मौजूदा हालात इस कदर बद्दत्तर हो चुके हैं कि हिंसक प्रदर्शनकारियों ने मेहरपुर के ‘मुजीबनगर’ में स्थित 1971 की जंग से जुड़े भारतीय सेना के ‘राष्ट्रीय स्मारक’ को भी तोड़ डाला है। चरमपंथी जमातों ने पाक सेना के शर्मनाक आत्मसमर्पण तथा भारतीय सेना की शूरवीरता के उन प्रतीकों को नष्ट कर दिया जिनकी कुर्बानियों की बुनियाद पर बांग्लादेश वजूद में आया था। पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान तथा कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय के दर्द का वही अफसाना, वही आंसू, तशद्दुद के दौर में खौफ के साए में जीने को मजबूर लोगों के हकूक पर कोई चर्चा नहीं होती। दहशतगर्दी व मजहबी जमातों के निशाने पर रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। बहरहाल भारत के पड़ोसी मुल्कों तथा कई अन्य देशों में विदेशी खूफिया एजेंसियां भारत विरोधी ताकतों की हिमायत कर रही हैं। अत: विश्व की चौथी ताकतवर सैन्यशक्ति की हैसियत रखने वाले भारत को अपनी ताकत का एहसास कराना होगा। देश के सियासी नेतृत्व को बांग्लादेश की हिंसा का पैगाम समझ कर आगामी नीति पर विचार करना चाहिए।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
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