खाद्य सुरक्षा मजबूत करने का परिदृश्य

हम उम्मीद करें कि 3 अक्टूबर को सरकार ने नई पीएम राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) और कृषोन्नति योजना (केवाई) के लिए जो एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि सुनिश्चित की है, उससे देश के कृषि विकास का नया अध्याय लिखा जाएगा। साथ ही भारत ने गैर बासमती चावल के निर्यात का जो निर्णय लिया है, उससे लाभ होगा…

हाल ही में 3 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहित करने और खाद्य सुरक्षा मजबूत करने के लिए एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के खर्च वाली दो बड़ी कृषि योजनाओं को मंजूरी दी है। इन योजनाओं के नाम पीएम राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) और कृषोन्नति योजना (केवाई) हैं। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक इन नई योजनाओं से जहां देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ेगा, वहीं किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। साथ ही देश में खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी और भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा में और अधिक मददगार देश बनते हुए दिखाई दे सकेगा। गौरतलब है कि इस समय दुनिया खाद्यान्न संकट के नए चुनौतीपूर्ण दौर में दिखाई दे रही है। पश्चिमी एशिया में बढ़ते संघर्ष, यूक्रेन व रूस के बीच विस्तारित होते युद्ध तथा लाल सागर में शिपिंग व्यवधानों के कारण जहां खाद्यान्न और खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हो रही है, वहीं इनकी कीमतें भी बढ़ रही हैं। ऐसे नए वैश्विक खाद्यान्न संकट के दौर में भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा में नई भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के वल्र्ड फूड प्रोग्राम तथा कई देशों के अनुरोध पर भारत ने गैर बासमती चावल यानी सफेद चावल के निर्यात पर जुलाई 2023 से लगाई गई रोक को हटा लिया है। भारत के इस निर्णय से जहां दुनिया के कोने-कोने में 140 से अधिक चावल आयातक देशों के करोड़ों चावल उपभोक्ताओं को राहत मिली है, वहीं इससे भारत के चावल उत्पादक किसानों की आय भी बढ़ेगी। यह पहल कृषि निर्यात बढ़ाने और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर भारत की अहम पहल है।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि भारत ने खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों के अधिक निर्यात की रणनीति अपनाकर वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए अधिक मदद का विश्वास दुनिया को दिलाया है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित वल्र्ड फूड इंडिया 2024 को वर्चुअली संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस समय भारत दुनिया की नई खाद्य टोकरी और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के प्रतिबद्ध देश के रूप में रेखांकित हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का ऐसा देश है, जो देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों को निशुल्क खाद्यान्न वितरण के साथ उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए दुनिया के जरूरतमंद देशों के करोड़ों लोगों की भूख मिटाने में भी मददगार देश की भूमिका निभा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत खाद्य क्षेत्र में नवाचार, स्थिरता और सुरक्षा के वैश्विक मानक स्थापित करने के लिए आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों के दौरान, भारत ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए व्यापक सुधार शुरू किए हैं। भारत खाद्य प्रसंस्करण में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकरण, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना जैसी बहुआयामी पहलों के माध्यम से पौष्टिक दुनिया के निर्माण के सपने को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। वस्तुत: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों का महत्वपूर्ण घटक है। जहां खाद्य प्रसंस्करण कृषि क्षेत्र में किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है, वहीं इसकी बदौलत फसल उत्पादन में वृद्धि और उसका मूल्यवर्धन होता है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में कृषि विकास के अभूतपूर्व प्रयासों से खाद्य प्रसंस्करण के बहुत अच्छे कृषि आधार भारत में निर्मित हुए हैं। दुनिया में भारत दूध, दालों तथा मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। खाद्यान्न, फलों, सब्जियों तथा कपास उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश ने कृषि उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचाइयां प्राप्त की हैं। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के वर्ष 2023-24 के लिए प्रमुख कृषि फसलों के तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक कुल खाद्यान्न उत्पादन 3288.52 लाख टन अनुमानित है, जो कि पिछले पांच वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन से 211 लाख टन अधिक है।

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि अनुसंधान को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है। विगत 11 अगस्त को पीएम मोदी ने कम जमीन में अधिक पैदावार लेने के लिए 61 फसलों की 109 नई एवं उन्नत किस्में जारी की हंै। साथ ही खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के अभूतपूर्व कदम उठाए गए हैं। कृषि विकास के ऐसे परिदृश्य से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को विकास के नए आधार मिलेंगे। निश्चित रूप से भारत रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के बाद भी खाद्य प्रसंस्करण की ऊंची संभावनाओं को पर्याप्त रूप से मुठ्ठी में नहीं ले पा रहा है। यही कारण है कि खाद्य प्रसंस्करण के मामले में भारत बहुत पीछे है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल खाद्य उत्पादन का 10 फीसदी से भी कम हिस्सा प्रसंस्कृत होता है। एक अध्ययन के अनुसार सब्जियों के लिए प्रसंस्करण स्तर 2.7 फीसदी, फलों के लिए 4.5 फीसदी, मत्स्य पालन के लिए 15.4 फीसदी और दूध के लिए 21.1 फीसदी है। भारत के खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में पीछे रहने का एक बड़ा कारण खाद्यान्न भंडारण में बहुत पीछे होना भी है। अनाज के भंडारण की सही व्यवस्था नहीं होने की वजह से 12 से 14 फीसदी तक खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। कृषि उपज हासिल करने के तुरंत बाद किसानों को उसे बेच देना पड़ता है। देश में खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में भंडारण की क्षमता आधी से भी कम करीब 1450 लाख टन ही है। हम उम्मीद करें कि सरकार खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में बढ़ती हुई आर्थिक, निर्यात और रोजगार संभावनाओं को मुठ्ठियों में लेने के लिए इस सेक्टर की डगर पर जो बाधाएं आ रही हैं, उनका उपयुक्त निराकरण जल्द ही करेगी।

खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण स्तर को बढ़ावा दिया जाएगा। हम उम्मीद करें कि खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर की नई पीएलआई योजना से फसलों की कटाई के बाद फसल की बरबादी रोकने, बेहतर खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता प्रमाणन व्यवस्था, तकनीकी उन्नयन और लॉजिस्टिक सुधार के कारण देश खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगा। हम उम्मीद करें कि भारत में सरकार के द्वारा सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडारण क्षमता के निर्माण की योजना कारगर तरीके से तेज कार्यान्वयन की डगर पर आगे बढ़ेगी। इससे भारत में खाद्यान्न की बर्बादी कम होगी। हम उम्मीद करें कि 3 अक्टूबर को सरकार ने नई पीएम राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) और कृषोन्नति योजना (केवाई) के लिए जो एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि सुनिश्चित की है, उससे देश के कृषि विकास का नया अध्याय लिखा जाएगा। साथ ही पश्चिमी एशिया में बढ़ते संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध के विस्तारित होने की विभीषिका के बीच भारत ने गैर बासमती चावल के निर्यात का जो निर्णय लिया है, उससे खाद्यान्न संकट की बढ़ती वैश्विक चुनौतियों से, दुनिया के करोड़ों लोगों को भूख की पीड़ाओं से बचाने में अवश्य मदद मिलेगी। हम उम्मीद करें कि भारत खाद्यान्न उत्पादन और खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों को बढ़ाने के लिए रणनीतिपूर्वक आगे बढ़ेगा और इससे किसानों की आमदनी में वृद्धि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास होगा।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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