आतंकवाद पर रुख स्पष्ट करे सियासत

अलबत्ता पाक पोषित आतंक के मुद्दे पर देश की सभी सियासी जमातों को अपने लब-ए-इजहार की खामोशी पर रुख स्पष्ट करना होगा। राष्ट्र के लिए शहादत जैसा अजीम रुतबा हमेशा सैनिकों के हिस्से आया है। प्रश्न यह है कि राष्ट्र के मुहाफिज सैनिकों की शहादत का सिलसिला कब तक जारी रहेगा…

‘सेवा अस्माकं धर्म:’, अर्थात ‘राष्ट्र की सेवा हमारा धर्म है।’ यह प्रसंग भारतीय थलसेना का आदर्श वाक्य है। सेना के लिए राष्ट्र हमेशा सर्वोपरि रहा है। इसीलिए देश सुरक्षित है। मगर देश पर हुक्मरानी करने वाले सियासी निजाम के लिए वोट बैंक व सत्ता सर्वोपरि होती है। इस नवंबर महीने में वीरभूमि हिमाचल के हिस्से दो और सैन्य बलिदानों का इजाफा हो गया। जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में सेना की ‘दो पैरा स्पेशल फोर्स’ के जेसीओ राकेश कुमार दस नवंबर 2024 को आतंकियों से लड़ते बलिदान हो गए। 13 नवंबर को हवलदार सुरेश कुमार ‘डोगरा रेजिमेंट’ लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वीरगति को प्राप्त हो गए। राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान देने की सैन्य परंपरा को निभाने वाले दोनों सपूतों का संबंध मंडी जिला से था। डोगरा शासकों के समय से लेकर मौजूदा दौर तक जम्मू कश्मीर के लिए हिमाचल प्रदेश के रणबांकुरों की दास्तान-ए-सुजात की फेहरिस्त काफी लंबी है। जम्मू कश्मीर रियासत के जरनैल ‘जोरावर सिंह कहलूरिया’ ने डोगरा सल्तनत की सरहदों को अफगानिस्तान से लेकर तिब्बत के महाज तक विस्तार देकर लद्दाख के रणक्षेत्र में अपना बलिदान दिया था।

कैप्टन संजय चौहान ‘शौर्य चक्र’, पवन घंगल ‘कीर्ति चक्र’, कुलभूषण मांटा ‘शौर्य चक्र’ तथा सूबेदार संजीव कुमार ‘कीर्ति चक्र’ जैसे हिमाचल के सैंकड़ों बहादुर सैनिकों ने कश्मीर की सुरक्षा के लिए आतंकवाद से लडक़र अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। लेकिन देश की फिजाओं में हरदम सियासी माहौल रहता है। सियासी हुक्मरान देश का राष्ट्रीय खेल बन चुकी सियासत में मशगूल रहते हैं। सियासत जाति, मजहब व वंशवाद की तवाफ करती है। मुल्क का मीडिया सियासत की तवाफ करता है। नतीजतन फिदा-ए-वतन हो रहे जांबाजों का सर्वोच्च बलिदान कभी न्यूज चैनलों की सुर्खियां नहीं बनता। युवा वर्ग के लिए प्रेरणास्रोत हमारा गौरवशाली सैन्य इतिहास कभी शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बना। सैनिकों की रक्तरंजित शूरवीरता पर मायानगरी के अदाकार फिल्में बनाकर करोड़ों रुपए कमा लेते हैं, मगर वतन-ए-अजीज की हशमत के लिए अपनी जान का नजराना पेश करने वाले वास्तविक नायक गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। सुरक्षा के लिहाज से जम्मू कश्मीर भारत के लिए एक मुद्दत से चुनौती बन चुका है। मुल्क के नीति-निर्माताओं के गलत फैसलों का खामियाजा सैनिक व सैन्य परिवार भुगत रहे हैं। कश्मीर हथियाने के लिए चार बड़े युद्धों में मिली शर्मनाक शिकस्त के बदनुमां दाग मिटाने के लिए पाक सेना ने भारत के खिलाफ आतंक को अपना हथियार बनाया। मजहबी रहनुमाओं की जहरीली तालीम ने युवाओं को जन्नत में बहत्तर हूरों का जहालत भरा ख्वाब दिखाकर उनके जहन में मजहबी जिहाद का मवाद भरकर उन्हें हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया। पाक परस्त दहशतगर्दों को कश्मीर की स्थानीय आबादी व सियासत की पूरी हिमायत हासिल हुई। बिना लोकल स्पोर्ट के आतंकवाद, अलगाववाद व चरमपंथ कभी पैर नहीं पसार सकते। इसी पाक परस्त आतंक के कारण 1990 के दशक में कश्मीर के मूल निवासी लाखों बेगुनाह लोग घाटी से हिजरत करके अपने ही मुल्क में शरणार्थी बन गए।

लेकिन आतंक व पलायन के उस खौफनाक मंजर पर भी कश्मीर से लेकर मरकजी हुकूमत तक देश की सियासत मौन थी। मुफ्तखोरी की खैरात के जरिए मुल्क की हर सियासी जमात सत्ता के फलक पर विराजमान होने को बेताब रहती है। आतंकवाद का मसला तथा कश्मीरी पंडितों के पलायन का मुद्दा जम्हूरियत की पंचायतों में कभी चर्चा का मरकज नहीं बना। जम्मू कश्मीर रियासत के हुक्मरान हरि सिंह की रियासती सेना सन् 1947 में पाक सेना के हमले को रोकने में विफल रही थी। उस वक्त भारतीय सेना ने जोरदार पलटवार करके कश्मीर को बचाया था। पाक परस्त आतंक से निपटने में जम्मू कश्मीर राज्य की पुलिस फोर्स भी नाकाम रही है। नतीजतन ‘राष्ट्रीय राइफल्स’ की साठ से अधिक बटालियन घाटी में तैनात करनी पड़ी। इसके अलावा पाकिस्तान से सटी जम्मू-कश्मीर की सरहदों पर सेना के सात डिवीजन तैनात हैं। बेतुकी बयानबाजी से अपनी सियासी जमीन मजबूत करने वाले कश्मीर के सियासी रहनुमा खुद सेना की सर्वश्रेष्ठ सिक्योरिटी के दायरे में महफूज रहते हैं। राज्य की पुलिस फोर्स अपने अधिकारियों व प्रशासन तथा सियासतदानों की सुरक्षा में मशरूफ है। घाटी में काम करने वाले अप्रवासी मजदूरों की टारगेट कीलिंग हो रही है। ‘ग्राम सुरक्षा गार्डों’ का अपहरण करके कत्ल किया जा रहा है। सैनिक शहीद हो रहे हैं। लेकिन जम्मू कश्मीर की नवगठित हुकूमत सुपुर्दे खाक हो चुकी धारा 370 की फुरकत में अश्क बहा रही है। पांच अगस्त 2019 को देश की संसद ने प्रस्ताव पारित करके घाटी से धारा 370 को रुखसत करके राज्य को दो हिस्सों में तकसीम करके केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया था।

इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है। इसलिए जम्मू-कश्मीर की हुकूमत के पास धारा 370 की बहाली का संवैधानिक हक नहीं है। अत: तजकिरा पाक परस्त आतंक पर होना चाहिए। भारत को दहलाने के लिए पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी कौमी पॉलिसी का हिस्सा बनाकर अपना रुख स्पष्ट कर चुका है। अलबत्ता पाक पोषित आतंक के मुद्दे पर देश की सभी सियासी जमातों को अपने लब-ए-इजहार की खामोशी पर रुख स्पष्ट करना होगा। राष्ट्र के लिए शहादत जैसा अजीम रुतबा हमेशा सैनिकों के हिस्से आया है। प्रश्न यह है कि राष्ट्र के मुहाफिज सैनिकों की शहादत का सिलसिला कब तक जारी रहेगा? सैनिकों के बलिदान पर दु:ख प्रकट करके उन्हें खिराज-ए-अकीकत पेश करने व भारत माता की जय के नारे लगाने तथा आतंकी हमलों की निंदा करने से दहशतगर्दी नहीं थमेगी। भारतीय सेना सरहद के उस पार आतंक की दारुल हुकूमत को मरघट में तब्दील करने की पूरी सलाहियत रखती है। बशर्ते मुल्क के रहबर आतंक के खिलाफ इच्छाशक्ति दिखाएं। आतंक के खिलाफ सरहदों से आगे सैन्य कार्रवाई को अमल में लाना होगा।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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