भारत के खिलाफ बड़ी साजिश

यह औपनिवेशिक संस्कारों से अभी तक भी मुक्त न होने के कारण ही है। जार्ज इस मानसिकता को तो पहचानने ही लगे हैं। इसलिए वह गाहे बगाहे भारत के व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्राय: आरोप लगाते रहते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से वह विपक्ष को समय कुसमय आरोप रूपी हथियार मुहैया करवाने का काम करते हैं, जिसकी विपक्ष प्रतीक्षा ही नहीं करता, बल्कि शायद आरोप मैनुफैक्चरिंग का आर्डर भी देता है। भाजपा का सोनिया गांधी व राज परिवार के अन्य सदस्यों पर यही आरोप है कि वे इन हथियारों के केवल खरीददार ही नहीं, बल्कि आदेश देकर भी इन हथियारों को तैयार करवाने वाले हंै। मैं यह मानने को तैयार नहीं कि कांग्रेस या कांग्रेस पर गेंडुली मार कर बैठे राज परिवार को जार्ज सोरोस के क्रियाकलापों एवं अन्य धंधों के बारे में पता न हो। सब जानते हैं कि पिछले कुछ सालों से वे उस हर बिल का विरोध करते हैं जो भारत की संसद पास करती है…

पिछले दो दिनों से संसद में जार्ज सोरोस और सोनिया गांधी व राहुल गांधी की निकटता को लेकर हंगामा होता रहा। मूल रूप से जार्ज सोरोस हंगरी के हैं। लेकिन लंबा अरसा पहले वह अमरीका में आकर बस गए थे। लेकिन यह कोई ऐसी घटना नहीं है जिसके कारण सोरोस को कठघरे में खड़ा कर दिया जाए। इस लिहाज से तो अमरीका के 99 फीसदी लोग यूरोप से ही गए हुए हैं और वहां के नेटिव इंडियन को गुलाम बना कर वहां अपनी सत्ता बना कर बैठे हैं। इसलिए जार्ज सोरोस अमरीका में कोई अनोखे यूरोपीय नहीं हैं। लेकिन उनका अनोखापन इसके बाद शुरू होता है। उन्होंने अमरीका में अच्छा खासा पैसा कमा लिया है। यूरोप के लोग जब अमरीका में धन कुबेर बन जाते हैं तो वे कोई न कोई फाऊंडेशन चलाना शुरू कर देते हैं। यह उनका फालतू के समय का शौक है। फाऊंडेशन के नाम पर वे एशिया और अफ्रीका के मेधावी छात्रों को अमरीका में बुला कर कायदे से पढ़ाते-लिखाते हैं और फिर वापस एशिया और अफ्रीका के देशों में भेज देते हैं। ‘कायदे से’ का अर्थ तो सब समझते हैं। इसके अतिरिक्त ये फाऊंडेशन दूसरे देशों में बौद्धिक व राजनीतिक तोडफ़ोड़ अकादमिक तरीकों से करते रहते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं मानना चाहिए कि जार्ज सोरोस जैसे धन कुबेरों का यह शौक है। वे ये सभी धंधे अमरीका के आर्थिक, सांस्कृतिक हितों की सुरक्षा के लिए करते हैं। इसको सभ्यताओं के संघर्ष की पृष्ठभूमि में भी देखा जा सकता है। भारत या एशिया के दूसरे देश यदि आर्थिक लिहाज से ताकतवर बनते हैं तो अमरीका व उसकी ‘फाईव आईज’ की आर्थिकता खतरे में पड़ जाती है। इस पूरी पृष्ठभूमि में अमरीका के जार्ज सोरोस को पकडऩा होगा। इस अमरीकी जार्ज का भी ‘जार्ज सोरोस फाऊंडेशन’ है। लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं होता है। अमरीका के ऐसे फाऊंडेशन अनेक छोटी-बड़ी संस्थाओं को जन्म देते हैं जिनका वित्त पोषण फाऊंडेशन ही करते हैं। लेकिन साधारणतया किसी को यह पता नहीं चलता कि इन संस्थाओं का वित्त पोषण कौन करता है।

ऊपरी तौर पर ये संस्थाएं निर्दोष, बौद्धिक व अकादमिक संस्थाएं ही नजर आती हैं। जार्ज सोरोस फाऊंडेशन ने भी इस प्रकार की कुछ संस्थाओं को अंधेरे में जन्म दिया हुआ है। ऐसी ही एक संस्था फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक है। इस संस्था को पैसा जार्ज सोरोस ही देता है, चाहे सीधे हाथ से, चाहे उलटे हाथ से। यह संस्था जम्मू कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानती और दूसरे देश भी ऐसा ही करें, इसके लिए अकादमिक पर्दे में कोशिश करती रहती है। इतना ही नहीं, वह भारत का समाधान उसके टुकड़ों में बंट जाने को ही मानती है। भाजपा का आरोप है कि श्रीमती सोनिया गांधी के राजीव गांधी फाऊंडेशन का जार्ज सोरोस की इस संस्था से गहरा संबंध है। जार्ज सोरोस इस बात को छुपाते नहीं कि वह वचनों से ही भारत विरोधी नहीं हैं, बल्कि वह सक्रियता में भी भारत विरोधी हैं। ऐसे व्यक्ति और ऐसी संस्था से राजीव गांधी फाऊंडेशन का किस प्रकार का संबंध है, इसका खुलासा होना बहुत जरूरी है क्योंकि यह मामला भारत की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर भी इस बात को नहीं छुपाते कि जार्ज सोरोस उनके मित्र हैं। ध्यान रहे कि कांग्रेस के ही एक बड़े नेता नटवर सिंह पहले ही कांग्रेस को आगाह कर चुके हैं कि पार्टी को अपने भीतर की तलाशी लेकर अपने घर में रह रही विदेशी शक्तियों के समर्थकों को बाहर करना चाहिए। लेकिन जब आरोप सोनिया गांधी पर हों तो तलाशी कौन लेगा और कौन किसको बाहर करेगा? जार्ज अमरीका के मीडिया पर भी कुछ सीमा तक नियंत्रण करते हैं, क्योंकि अखबार चला रही कम्पनियों में उनकी भारी हिस्सेदारी है। जार्ज सोरोस ने आर्गेनाइज्ड क्राइम एंड क्रप्श्न रिपोर्टिंग प्रोजैक्ट नाम से एक संस्था खोल रखी है जो दूसरे देशों के नेताओं और व्यवसायियों को ब्लैकमेल करने का काम करती है। वह दूसरे देशों के उन नेताओं व व्यवसायियों पर कुछ आरोप लगाती है जिनको वह अपने हिसाब से चलाना चाहती है। जार्ज सोरोस जानते हैं कि लंबे अरसे तक यूरोपीय देशों के गुलाम रहने के कारण एशिया व अफ्रीका का जनसाधारण किसी भी यूरोपीय देश या अमरीका के किसी भी अदने से व्यक्ति के आरोप को भी सिर आंखों पर लेता है। यह औपनिवेशिक संस्कारों से अभी तक भी मुक्त न होने के कारण ही है। जार्ज इस मानसिकता को तो पहचानने ही लगे हैं। इसलिए वह गाहे बगाहे भारत के व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्राय: आरोप लगाते रहते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से वह विपक्ष को समय कुसमय आरोप रूपी हथियार मुहैया करवाने का काम करते हैं, जिसकी विपक्ष प्रतीक्षा ही नहीं करता, बल्कि शायद आरोप मैनुफैक्चरिंग का आर्डर भी देता है। भाजपा का सोनिया गांधी व राज परिवार के अन्य सदस्यों पर यही आरोप है कि वे इन हथियारों के केवल खरीददार ही नहीं, बल्कि आदेश देकर भी इन हथियारों को तैयार करवाने वाले हंै। मैं यह मानने को तैयार नहीं कि कांग्रेस या कांग्रेस पर गेंडुली मार कर बैठे राज परिवार को जार्ज सोरोस के क्रियाकलापों एवं अन्य धंधों के बारे में पता न हो। सब जानते हैं कि पिछले कुछ सालों से वे उस हर बिल का विरोध करते हैं जो भारत की संसद पास करती है। अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का उसने विरोध किया था। नागरिकता संशोधन अधिनियम का भी जार्ज विरोध करता था।

इसके बावजूद अपने-अपने फाऊंडेशनों के माध्यम से दोनों चोर-सिपाही का खेल, खेल रहे हैं, जो कभी भविष्य में काफी खतरनाक हो सकता है। लेकिन सत्ता पाने की हड़बड़ी में राज परिवार ऐसा घिनौना खेल भी खेलेगा, यह किसी को आशा नहीं थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने संसद में ही जार्ज सोरोस का पक्ष लेना शुरू कर दिया। इस सबसे इतना तो संकेत मिलता ही है कि कांग्रेस जार्ज को लेकर जरूर कुछ न कुछ छुपा रही है। देश को चिंता भी इसी बात को लेकर है। जब भारत के सैनिक सीमा पर लड़ रहे थे तो राजीव गांधी दिल्ली स्थित चीन के दूतावास में वहां के अधिकारियों के साथ गंभीर मंत्रणा करते पकड़े गए थे। यह संदिग्ध परंपरा की ओर भी संकेत करता है। सरकार को कांग्रेस की इस प्रकार की संदिग्ध गतिविधियों की गंभीरतापूर्वक जांच करवा लेनी चाहिए।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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