आब-ए-तल्ख की अवैध तिजारत चिंताजनक

शराबबंदी के कठोर प्रावधान सुरक्षा एजेंसियों के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। कोर्ट की दलील थी कि बड़े सिंडिकेट संचालकों या प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ शायद ही कभी केस दर्ज किए जाते हों, बल्कि शराबबंदी कानून से गरीब वर्ग असंगत रूप से प्रभावित हो रहा है। नकली शराब से गरीब लोग पीडि़त हैं…

यदि बात नशे की हो और लज्जत-ए-गम बढ़ाने वाली आब-ए-तल्ख का जिक्र न किया जाए, तो मधुशालाओं की तौहीन हो जाएगी। मदिरा के प्रति मोहब्बत के जज्बात रखने वाला सुराप्रेमी समाज मायूस होकर बेजार हो जाएगा। मदिरालयों का जिक्र किए बिना मुल्क की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा मजमून अधूरा रह जाएगा। हिंदोस्तान की तारीख में वो भी सुनहरा दौर था जब देश के अर्थतंत्र को किसान व गोवंश अपने पसीने से शादाब करते थे। समाज का आईना कहा जाने वाला सिनेमा देश के किसानों पर फिल्में बनाता था, मगर वक्त ने करवट ली। हालात ये हैं कि करोड़ों आबादी को खाद्यान्न मय्यसर कराने वाला अन्नदाता अपने हकूक की लड़ाई के लिए सडक़ों पर आ चुका है। कृषि अर्थशास्त्र की बुनियाद गोवंश भी फरियादी बनकर सडक़ों पर आशियाना तराश रहा है। कृषि अर्थतंत्र का पुरोधा अन्नदाता मजदूर बनने को मजबूर है, लेकिन मदिरा की रिकार्ड तोड़ तिजारत मुल्क की मइशत को गुलजार कर रही है। कई क्षेत्रों में मदिरालय खोलने के विरोध में लोग मुजाहिरे करते हैं, परन्तु मद्यपान का बाजार लगातार बढ़ रहा है। शादी समारोहों में मेहमानों का इस्तकबाल आब-ए-तल्ख से ही होता है। किसी की उल्फत में बेजार दिल के गम-ए-हयात दवा भी मदिरा ही बनती है।

नशाखोरी के खिलाफ बेदारी के लिए देश में कई विशेष इजलास में सियासी रहनुमां शिरकत करते हैं। लेकिन जब जहरनुमां अवैध शराब मौत का तांडव मचाकर लोगों को मातम मनाने पर मजबूर करती है, तो सियासी निजाम कई तरह के सियासी शिगूफे छोडक़र मजलूमों की मय्यत पर मुआवजे का मरहम लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। 15 नवंबर 2024 को पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार पर कड़ी प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि पुलिस व आबकारी विभाग, राज्य कर विभाग तथा परिवहन विभाग राज्य में ‘शराबबंदी’ को पसंद करते हैं, क्योंकि उनके लिए शराबबंदी का मतलब मोटी कमाई है। शराबबंदी के कठोर प्रावधान सुरक्षा एजेंसियों के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। कोर्ट की दलील थी कि बड़े सिंडिकेट संचालकों या प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ शायद ही कभी केस दर्ज किए जाते हों, बल्कि शराबबंदी कानून से गरीब वर्ग असंगत रूप से प्रभावित हो रहा है। नकली शराब से गरीब लोग पीडि़त हैं। जाहिर है शराबबंदी ने न्यायिक प्रशासन को असहाय बना दिया है। ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ (फिक्की) के मुताबिक अवैध शराब की तस्करी से सरकारों को लाखों करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है। शराब माफिया अवैध मदिरा को कई गुना अधिक दाम पर बेचते हैं। यही अवैध शराब गुरबत से जूझ रहे लोगों की मौत का कारण बन रही है। नकली शराब के सेवन से जान गंवाने वाले लोगों के गरीब परिवार कोर्ट कचहरी में कानूनी लड़ाई लडऩे में असमर्थ होते हैं। शराब प्रतिबंध के निर्णयों से अदालतों पर काम का बोझ बढ़ चुका है। अत: कोर्ट की दलील को समझना होगा। एक एनजीओ ‘कम्युनिटी अगेंस्ट ड्रंकन एंड ड्राइविंग’ द्वारा दायर की गई याचिका के रद्देअमल पर देश की सर्वोच्च अदालत ने मरकजी हुकूमत से शराब के विक्रय स्थलों, होटलों, क्लबों व बार आदि पर उपभोक्ता की उम्र की जांच के लिए एक प्रभावी प्रोटोकॉल को अमल में लाने की हिदायत दी थी। याचिका में ‘डोरस्टेप डिलीवरी’ पर भी तनकीद की गई थी। देश के हर राज्य में शराब खरीदने व पीने की न्यूनतम उम्र निर्धारित है।

चूंकि मद्यपान के शौकीन हर मजहब व आयु वर्ग के लोग मधुशालाओं की चौखट पर सजदा करते हैं, नतीजतन मयखानों की रस्म-ओ-राह में किसी की उम्र की शिनाख्त नहीं होती। बिहार, गुजरात व नागालैंड जैसे राज्यों में पूर्ण शराबबंदी है। आंध्र प्रदेश, हरियाणा, केरल व तमिलनाडु जैसे राज्य शराबबंदी के फैसले वापस ले चुके हैं। बड़े होटलों, पबों व बारों में ग्राहकों को शराब परोसने की अनुमति है। मायानगरी के अदाकारों से लेकर कई बड़ी हस्तियां नशे के लिए बदनाम हो चुकी रेव पार्टियों की तालिब-ए-दीदार बन चुकी हैं। मौसिकी में नशाखोरी की सरगम व बेसुरे तरानों में मद्यपान से लबरेज लफ्फाजी सुनाई देती है। फिल्मों में नशीली बज्म-ए-शब की झलक आम बात हो चुकी है। मायानगरी के सितारे व क्रिकेटर शराब कंपनियों से करोड़ों रुपए की फीस लेकर मदिरा के विज्ञापन पेश करते हैं। इसलिए मुल्क के लडख़ड़ाते अर्थतंत्र का बोझ उठाने वाली मदिरा की अरबों रुपए की तिजारत को गलत नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि आब-ए-तल्ख को नशे के बजाय मुनाफे का जरिया कहा जाएगा। यदि मुल्क के युवा वेग का एक बड़ा वर्ग नशे का गुलाम बनकर अक्ल से नाबीना होकर नाफरमानी पर आमादा हो चुका है, तो नशाखोरी के इस खौफनाक मंजर के लिए जुल्मत-ए-शब में चलने वाले हुक्का बार व रेव पार्टियों की सरफरोश कशिश का अहम किरदार है। बेशक शराब की ब्रिकी से सरकारों को एक बड़ा राजस्व प्राप्त होता है, मगर अवैध शराब के कारोबार से बेगुनाह लोगों को मौत की नींद सुलाकर शराब माफिया अरबों रुपए की नशीली सल्तनत खड़ी कर चुके हैं। प्रश्न यह है कि क्या शराब की बढ़ती कीमतों से अवैध मदिरा का काला कारोबार बढ़ रहा है? क्या शराबबंदी जैसे फैसलों से शराब माफिया की पैदाइश हो रही है?

जिन राज्यों में मद्यनिषेध कानून लागू है, उन राज्यों में लोगों की मौत का कारण बनने वाली नकली मदिरा का कारोबार चरम पर है। अत: मद्यनिषेध नीति पर सवाल उठना स्वाभाविक है। देश के सभी राज्यों में शराब की कीमतें तथा मद्यपान करने वालों की उम्र का पैमाना अलग-अलग है। मुल्क में एक देश एक चुनाव तथा एक राष्ट्र, एक निशान, एक विधान जैसे मुद्दे अक्सर चर्चा का मरकज बनते हैं। अलबत्ता शराब की अवैध तिजारत व कालाबाजारी पर लगाम लगाने के लिए तथा शराब के कातिलाना उपयोग पर काबू पाने के लिए पूरे मुल्क में एक समान प्रभावी शराब नियंत्रण नीति लागू होनी चाहिए। जहरीली शराब के कहर से मौत की आगोश में समा रहे लोगों के परिवारों के चश्म-ए-अश्क का दर्द समझना होगा।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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