सरल है, सरल होना

सहज जीवन के इन चार स्तंभों को जीवन में उतार लें, इनका पालन करें तो हम शारीरिक और मानसिक व्याधियों से बच सकते हैं, खुश रह सकते हैं, खुशहाल रह सकते हैं और आत्मविश्वास से भरपूर जीवन बिताते हुए समाज के भले का कारण बन सकते हैं। कहते हैं कि यात्रा के समय सामान जितना कम होगा, यात्रा उतनी सुखद होगी। सहज सरल जीवन का मतलब ही यही है कि हम संग्रह नहीं करते, बीते कल का पछतावा नहीं करते, आने वाले कल की फिक्र नहीं करते, जो कुछ सामने हो, उसे पूरी शिद्दत से निभाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि सहज संन्यास का पालन करने वाले हम सहज संन्यासी अनाड़ी लोग हैं। हम एकदम सीधा और सरल जीवन जीते हैं। हम कर्मकांड नहीं जानते, पूजा का विधि-विधान नहीं जानते, हमने ग्रंथ नहीं पढ़े, हममें कोई खूबी नहीं है…
आज हमारा देश भारतवर्ष बीमार लोगों का देश बनता जा रहा है। कुछ वर्ष पहले एक प्रसिद्ध पत्रिका ने पाया था कि भारतवर्ष के हर सात में से एक व्यक्ति मानसिक विकारों से पीडि़त है। आंकड़ों के हिसाब से यह बात सही है, लेकिन अगर मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव की बात करूं तो सच यह है कि भारतवर्ष की 80 प्रतिशत आबादी, जी हां सचमुच 80 प्रतिशत, इस समय मानसिक विकारों की जकड़ में है। इनमें से 20 प्रतिशत लोग गंभीर विकारों से परेशान हैं। इन विकारों के कारण बहुत सी शारीरिक बीमारियां होती हैं। मानसिक बीमारियों का समय पर इलाज हो जाए तो इनके कारण होने वाली शारीरिक व्याधियों का इलाज खुद-ब-खुद हो जाता है, और अगर लोग मानसिक रोगों को समय पर पहचान लें तो न केवल उनका अपना और उनके परिवार का जीवन सुखी हो जाएगा, बल्कि यह भी हो सकता है कि मानसिक विकारों के न रहने पर बहुत सी शारीरिक व्याधियां भी खत्म हो जाएं और देश के आधे अस्पताल खाली हो जाएं। यदि हम मानसिक और शारीरिक व्याधियों से बचे रहना चाहते हैं तो इसके लिए सहज संन्यास मिशन का मार्गदर्शन बहुत काम आ सकता है। सहज संन्यास की जीवनशैली इन व्याधियों से बचाव के लिए बहुत प्रभावशाली है। सहज संन्यास के चार स्तंभ हैं। पहला है – तन की सेवा, दूसरा है मन की सेवा, तीसरा है जन की सेवा, और चौथा है मनन की सेवा। तन की सेवा को हम सब बखूबी समझते हैं। सवेरे की सैर, व्यायाम, योगाभ्यास, तैराकी, खेल, प्राणायाम, नशे से दूरी, मौसम के अनुकूल ताजा शुद्ध भोजन आदि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।
यह हमारे तन की सेवा है। संतुष्ट रहना, खुश रहना, क्रोध न करना, उदास न होना, भयभीत न होना, निराश न होना, बेईमानी न करना, झूठ न बोलना, किसी को गुमराह न करना, चुगली न करना, निंदा न करना, बात-बेबात शिकायत न करना, किसी दूसरे की भूल को या गलती को माफ कर देना, खुद अपनी गलतियों और कमियों के प्रति सहनशील होना आदि हमारी खुशी की गारंटी हैं जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। यह मन की सेवा है। सबके भले के लिए सोचना, दूसरों की सहायता करना, जहां आवश्यक हो वहां मार्गदर्शन देना, समाज के भले के लिए काम करते रहना, घर-परिवार और संपर्क में आने वाले अन्य सभी लोगों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करना, रिश्ते मजबूत रखना आदि जन की सेवा के उदाहरण हैं। अपने लिए एकांत का समय निकालना, आत्ममंथन करना, ध्यान में बैठना आदि मनन की सेवा कहलाता है। इस प्रकार जब हम निरंतर तन की सेवा, मन की सेवा, जन की सेवा और मनन की सेवा के लिए प्रयासरत होते हैं तो असफलताओं से निराश हुए बिना, हर छोटी-बड़ी सफलता को उत्सव में बदल देते हैं तो जीवन सार्थक हो जाता है। कुछ छोटी-छोटी बातें हमारे जीवन को बदल देती हैं। हम अगर अपने आसपास देखें, अपनी मित्रमंडली का विश्लेषण करें और हमें अगर लगे कि हमें उनसे प्रेरणा नहीं मिलती, कुछ कर गुजरने का हौसला नहीं मिलता, नई बातें सीखने का उत्साह और मौका नहीं मिलता तो हम मित्रमंडली में नहीं हैं, बल्कि फिर यह मानना चाहिए कि हम अज्ञान के पिंजरे में कैद हैं। ऐसी स्थिति में हमें अपना विश्लेषण करना चाहिए और अपनी संगत बदलने का सघन प्रयास करना चाहिए। इस स्थिति में यह ध्यान देना चाहिए कि हम लोगों को तो नहीं बदल सकते, पर हम अपनी संगत बदल सकते हैं, अपनी प्रतिक्रिया को बदल सकते हैं और अपनी सीमाओं का विस्तार कर सकते हैं। हम जो कल थे, वो आज नहीं हैं। हमारे शरीर की लाखों कोशिकाएं इस वक्फे में मर गई हैं और उनकी जगह लाखों नई कोशिकाओं ने ले ली है। हम वैसे ही दिखते जरूर हैं, पर असल में बिल्कुल वैसे तो नहीं ही हैं। हवा का जो झोंका हमसे टकराकर आगे चला गया, वह हमेशा के लिए चला गया, नदी का जो पानी हमें छूकर गुजर गया, वह हमेशा के लिए चला गया, अब हम उसे दोबारा नहीं छू सकते।
इसी तरह संसार में भी नित्य प्रति परिवर्तन हो रहे हैं। संसार सचमुच बहुत तेजी से बदल रहा है। विज्ञान के नए आविष्कार, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के प्रादुर्भाव के कारण हर चीज बदल रही है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से सिर्फ बिजनेस और मार्केटिंग ही नहीं बदल रहे हैं, जीवन की हर चीज बदल रही है। डाक्टर के पास नए टूल होंगे, वकील के पास नए टूल होंगे, गाडिय़ां बदल जाएंगी, फिल्मों के निर्माण की तकनीक बदल जाएगी, फिटनेस के तरीके बदल जाएंगे, रहन-सहन बदल जाएगा। यह समझ पाना मुश्किल है कि क्या नहीं बदलेगा। सहज संन्यास का चौथा स्तंभ, यानी मनन की सेवा इस अवस्था में हमारा सबसे बड़ा हथियार होगा, क्योंकि आत्मचिंतन से हम अपने आसपास के बदलाव महसूस कर सकेंगे, उनके लिए खुद को तैयार कर सकेंगे, तब हम सिर्फ बदलाव के लिए तैयार ही नहीं होंगे, बल्कि बदलाव का कारण भी बन सकेंगे। बदलाव को स्वीकार करने और अंगीकार करने की क्षमता हमारे आंतरिक विकास का परिचायक है, वरना हम हर छोटे-बड़े बदलाव की आहट से ही डर जाया करेंगे। डरा हुआ दिमाग गलत फैसले लेता है जिनके कारण हमारा नुकसान होता है और हम हाथ मलते रह जाते हैं। सहज जीवन के इन चार स्तंभों को जीवन में उतार लें, इनका पालन करें तो हम शारीरिक और मानसिक व्याधियों से बच सकते हैं, खुश रह सकते हैं, खुशहाल रह सकते हैं और आत्मविश्वास से भरपूर जीवन बिताते हुए समाज के भले का कारण बन सकते हैं। कहते हैं कि यात्रा के समय सामान जितना कम होगा, यात्रा उतनी सुखद होगी। सहज सरल जीवन का मतलब ही यही है कि हम संग्रह नहीं करते, बीते कल का पछतावा नहीं करते, आने वाले कल की फिक्र नहीं करते, जो कुछ सामने हो, उसे पूरी शिद्दत से निभाते हैं।
इसीलिए कहा जाता है कि सहज संन्यास का पालन करने वाले हम सहज संन्यासी अनाड़ी लोग हैं। हम एकदम सीधा और सरल जीवन जीते हैं। हम कर्मकांड नहीं जानते, पूजा का विधि-विधान नहीं जानते, हमने ग्रंथ नहीं पढ़े, हममें कोई खूबी नहीं है, गर्व करने लायक या बताने लायक कोई विशेषता नहीं है। हमारा जीवन सादा है क्योंकि हमारे नियम बहुत सीधे-सादे हैं। जरूरत सिर्फ इन्हें समझने की है, और समझकर जीवन में उतारने की है। इतना कर लिया तो फिर कुछ और बाकी नहीं रह जाता। याद बस यह रखना चाहिए कि नजरिया बदलने से सब बदल जाता है क्योंकि सरल होना जितना कठिन है, सरल होना उतना ही सरल भी है। यह समझ लिया तो फिर मंगल ही मंगल है।
स्पिरिचुअल हीलर
सिद्ध गुरु प्रमोद निर्वाण, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक
ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com
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