ये दाग अच्छा है!

By: Dec 26th, 2024 12:05 am

विनीत पंछी की माता जी सिख धर्म की सच्ची अनुयायी हैं। सिख परंपरा में सेवा धर्म का खुलासा करते हुए जिस आदर्श वाक्य का पालन किया जाता है, वह है .. ‘नाम जपो (परमात्मा का स्मरण), किरत करो (मेहनत और ईमानदारी की कमाई), वंड छको (मिल-बांट कर खाओ)’। विनीत पंछी किसी पूजास्थल पर नहीं जाते, भक्ति का दिखावा नहीं करते, पर वे मेहनत और ईमानदारी की कमाई खाते हैं और नौजवानों का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें जीवन में सफलता के मंत्र सिखाते हैं, रोजगार के साधनों और अवसरों की जानकारी देते हैं। यह एक ऐसा प्रशिक्षण है जो देहरादून व आसपास के युवाओं के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहा है…

पूजा करना, दान देना, व्रत-उपवास रखना आदि सभी सद्कर्म हैं और निश्चयपूर्वक इनके पालन का फल अच्छा ही होगा। हर धर्म इनकी अनुशंसा करता है। ध्यान बस यह रखना है कि हम घर में बैठ कर पूजा करें या किसी पूजा स्थल पर जाकर माथा टेकें, उसका जो महत्व है उससे भी ज्यादा महत्व इस बात का है कि पूजा के बाद हम दिन भर क्या करते हैं, हमारा व्यवहार कैसा रहता है? हमारा दिन भर का व्यवहार और हमारे काम ही नियत करते हैं कि हम आस्तिक हैं या नहीं। मंत्रों का जाप करके, भजन-कीर्तन करके, पूजा-पाठ करके हम खुद को आस्तिक मानते रह सकते हैं, पर आस्तिक सिर्फ और सिर्फ वही है जो दिन भर के अपने कामों और व्यवहार में ईमानदार है, दयालु है और समाज की भलाई के लिए योगदान देने को तैयार है। एक अच्छा पति वह नहीं है जो बीवी को शॉपिंग करवाए, उसे देश-विदेश की सैर करवाए, बल्कि वह है जो ध्यान से उसकी बात सुने, उसके भावों को समझे, उसे आदर दे और प्यार दे। भूख रोटी से मिटती है, मक्खन से नहीं। शॉपिंग और सैर मक्खन हैं। भावों की समझ, आदर और प्यार वह रोटी है जो बीवी का रिश्ता निभा रही महिला को तृप्ति देती है। इसी तरह पूजा-पाठ, दान, व्रत-उपवास आदि मक्खन हैं, दिन भर लोगों से शांति का व्यवहार, उनकी गलतियों के बावजूद उनसे सहानुभूति, इस ब्रह्मांड की हर जड़-चेतन वस्तु से प्यार, जरूरतमंदों की सहायता, मार्गदर्शन और ममतापूर्ण प्रेम हमें अच्छा इनसान बनाती हैं।

हम पूजा-पाठ करते हों, व्रत-उपवास रखते हों, दान देते हों, लेकिन हम क्रोधी हों, अहंकारी हों, निर्दयी हों, लालची हों, झूठ बोलते हों, धोखेबाज हों, शिकायती हों, तो हमारी आस्तिकता और हमारे पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और दान किसी काम के नहीं हैं। तब हमारी आस्तिकता या तो लोक दिखावा है, या हमारे अहंकार को बढ़ाने वाला अस्त्र है। अच्छा इनसान बने बिना हम आस्तिक हैं ही नहीं। आस्तिक होना पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और दान तक ही सीमित नहीं है। वास्तविक आस्तिकता का मतलब है कि हमारे कारण हमारे आसपास का वातावरण सुखमय, शांतिमय और सौहार्दपूर्ण हो जाए, हमारे कारण हमारे आसपास के लोगों में उत्साह जगे, हमारे कारण हमारे संपर्क में आने वाले लोगों का भला हो, वे जीवन में आगे बढ़ सकें और अपनी व दूसरों की सहायता के काबिल बन सकें। आस्तिकता ग्रंथों और मूर्तियों तक ही सीमित नहीं है, इस ब्रह्मांड की हर जड़-चेतन वस्तु के प्रति प्रेम, आदर और श्रद्धा ही असली आस्तिकता है। देहरादून के निवासी मेरे मित्र विनीत पंछी एक ऐसे व्यक्ति हैं जो संगीत के रसिया ही नहीं पारखी भी हैं। वे ‘वर्ड ऑव माउथ मीडिया’ नामक मीडिया इन्क्यूबेटर तथा ‘जय हिंद प्रोजेक्ट’ के संस्थापक होने के साथ-साथ शायर हैं, कवि हैं, लेखक हैं, अभिनेता हैं, टेडएक्स स्पीकर हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी ने उन्हें घर से बाहर रहने पर विवश किया, पर अंतत: उन्होंने अपने घर देहरादून वापस आकर अपने शौक को व्यवसाय में बदला। विनीत पंछी एक ऐसे टेढ़े इनसान हैं जो सीधे काम करते हैं। उनकी माता जी सिख परिवार से हैं, अत्यंत धार्मिक हैं, सिख धर्म से जुड़े हर पर्व पर गुरुद्वारा जाना उनकी रूटीन है। परिवार की इस संस्कृति के बावजूद वे किसी पूजा स्थल पर नहीं जाते, और उन्हें सिगरेट और शराब से भी परहेज नहीं है। इस नास्तिकता के पीछे ज्ञान का तर्क है, वैज्ञानिक सोच है, और जीवन का अनुभव है।

लेकिन संवेदनशीलता की हद यह है कि उनके हर काम में पूर्ण समर्पण, निष्ठा, ईमानदारी, और पूरी काबलियत नजर आती है। नौकरी के कारण उन्हें घर से बाहर रहने को विवश होना पड़ा तो आज वह देहरादून के नौजवानों को वहीं पर रोजगार कर पाने का प्रशिक्षण देते हैं ताकि उन्हें अपने परिवार से अलग न होना पड़े। उन्हें अगर रेहड़ी-फड़ी वाले, दर्जी, धोबी आदि में भी अनुशासन दिखे, काम में काबलियत दिखे तो उसे लेकर वे पॉडकास्ट बनाएंगे, लेख लिखेंगे और उसकी सिफारिश भी करेंगे। लोगों को प्रेरित करना, उनके जीवन में आशा का संचार करना उनका एकमात्र लक्ष्य है। वे बॉलीवुड या क्रिकेट के सितारों के अंधानुकरण से दूर जीवन के उन नायकों की बात करते हैं जिन्हें हम अक्सर उपेक्षित कर देते हैं। सेवा भाव, विनम्रता, वफादारी, बहादुरी, रफ्तार और ‘हो जाएगा’ का उम्मीद भरा नजरिया उनकी ताकत हैं। कार्पोरेट जीवन से बाहर आकर उन्होंने जब देहरादून में अपना व्यवसाय आरंभ किया तो निश्चित आय का साधन जाता रहा। इससे जीवन में उतार-चढ़ाव आए, बहुत सी असफलताएं मिलीं और तकलीफें सहनी पड़ीं। इन तकलीफों ने उन्हें तोडऩे के बजाय मजबूती दी, तकलीफें उनकी प्रेरणा बन गईं और उनके कवि मन की संवेदना ने उन्हें एक बेहतर इनसान बना दिया। उसी का फल है कि आज वे नौजवानों को ऐसा प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि वे सफल हों और सफलता के साथ-साथ बेहतर इनसान भी बनें। ‘सहज संन्यास मिशन’ में हमें चार नियमों का पालन करना सिखाया जाता है। वे नियम हैं .. तन की सेवा, मन की सेवा, जन की सेवा और मनन की सेवा। अपनी सेहत का ध्यान रखना, शक्तिवर्धक भोजन खाना, व्यायाम करना आदि तन की सेवा के उदाहरण हैं।

क्रोध न करना, उदास न होना, डर से न डरना, पछताते न रहना आदि मन की सेवा के उदाहरण हैं। अपने आसपास के लोगों की सहायता, उनका मार्गदर्शन, उनकी सेवा आदि जन की सेवा के उदाहरण हैं, और बेहतर इनसान बनने, अपनी कमियां सुधारने तथा अपनी काबलियत बढ़ाने आदि के लिए किया गया आत्मचिंतन मनन की सेवा का उदाहरण है। विनीत पंछी मन की सेवा, जन की सेवा और मनन की सेवा की कसौटी पर खरे उतरते हैं। विनीत पंछी की माता जी सिख धर्म की सच्ची अनुयायी हैं। सिख परंपरा में सेवा धर्म का खुलासा करते हुए जिस आदर्श वाक्य का पालन किया जाता है, वह है .. ‘नाम जपो (परमात्मा का स्मरण), किरत करो (मेहनत और ईमानदारी की कमाई), वंड छको (मिल-बांट कर खाओ)’। विनीत पंछी किसी पूजास्थल पर नहीं जाते, भक्ति का दिखावा नहीं करते, पर वे मेहनत और ईमानदारी की कमाई खाते हैं और नौजवानों का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें जीवन में सफलता के मंत्र सिखाते हैं, रोजगार के साधनों और अवसरों की जानकारी देते हैं। यह एक ऐसा प्रशिक्षण है जो देहरादून व आसपास के युवाओं के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहा है। विनीत पंछी नए भारत के निर्माण में अतुलनीय योगदान दे रहे हैं। वे किसी को भीख में या दान में रोटी देने के बजाय रोटी कमाने के लायक बनाना बेहतर समझते हैं और पूरी निष्ठा और समर्पण से इस उद्देश्य की पूर्ति में लगे हैं, तो नाम न जपने का दाग है भी, तो ये दाग अच्छा है।

स्पिरिचुअल हीलर, सिद्ध गुरु प्रमोद निर्वाण

गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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