भारत की कूटनीति से पस्त हुआ कनाडा

खुद को कनाडा की सियासत का चतुर खिलाड़ी समझने वाले ट्रूडो भारत की डिप्लोमेटिक स्ट्राइक के आगे अनाड़ी साबित हुए। भारत को अस्थिर करने का ख्वाब देखने वाली देशी व विदेशी ताकतों को भारत की कूटनीति से पस्त हुए कनाडा व मालदीव जैसे मुल्कों से सबक लेना होगा…

‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान मगर फिर भी कम निकले’। मिर्जा गालिब की यह पंक्ति कनाडा के वजीरे आजम ‘जस्टिन ट्रूडो’ पर सटीक बैठ रही है। वोट बैंक की सियासत में नाबिना होकर कनाडा की सत्ता पर काबिज रहने की हसरत में ट्रूडो अपनी गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी से भारत की सरेआम मुखालफत कर बैठे। अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए ट्रूडो ने कनाडा को भारत विरोधी चरमपंथ की दारुल हुकूमत बना डाला। कनाडा की खूफिया एजेंसियों तथा विदेशी ताकतों के इशारे पर बिना किसी पुख्ता सबूत के भारत पर कई बेतुके इल्जाम लगा दिए थे। कनाडा में शरण ले चुके आतंकियों की हलाकत के लिए भी भारत को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। कनाडा की खूफिया एजेंसी ‘कम्युनिकेशन सिक्योरिटी एस्टैब्लिशमेंट’ ने अपने मुल्क को खतरा पैदा करने वाले ईरान, चीन, रूस व उत्तर कोरिया जैसे देशों की फेहरिस्त में भारत को भी शामिल कर लिया। लेकिन ट्रूडो को जब भारत की कूटनीतिक हैसियत का एहसास हुआ, तब तक देर हो चुकी थी। वैश्विक मंचों पर भारत की मुखालफत का नतीजा यह हुआ कि ट्रूडो को कनाडा के वजीरे आजम पद से इस्तीफा देना पड़ा। दरअसल जस्टिन ट्रूडो को भारत विरोधी हिकारत भरा नजरिया अपने वालिद व कनाडा के साबिक वजीरे आजम ‘पियरे ट्रूडो’ से विरासत में मिला है।

स्मरण रहे कि अपनी सियासी पकड़ मजबूत करके सत्ता हासिल करने के लिए मालदीव के सदर मोहम्मद मुइज्जु ने भी ‘इंडिया आउट’ का नारा देकर भारत विरोधी राग अलापा था, मगर मुइज्जु भली भांति जानते थे कि मालदीव के लोकतंत्र को महफूज रखने के लिए तथा वहां की अर्थव्यवस्था को गुलजार करने में हिंदोस्तान का खुसूसी किरदार है। हिंदोस्तान की सैन्य सलाहियत व आर्थिकी से भी मुइज्जु मुखातिब थे। मुइज्जु के भारत विरोधी बयानों के रद्देअमल में जब भारतीय पर्यटकों ने मालदीव का बायकॉट किया तो वहां के अर्थतंत्र का तवाजुन बिगडऩे लगा। नतीजतन मालदीव की सत्ता हासिल करने के बाद मुइज्जु के सुर व लहजा दोनों बदल गए। मालदीव का सदर बनने के बाद भारत विरोधी बयानों से यूटर्न लेकर मोहम्मद मुइज्जु हिंदोस्तान की शरण में आ गए ताकि भारत व मालदीव के रिश्ते बेहतर रहें तथा कर्ज के बोझ में डूब चुके मालदीव की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो सके। सन् 2022 में श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने में भारत ने अहम योगदान दिया था। सितंबर 2024 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बनते ही वामपंथी ‘अनुरा कुमारा दिसानायके’ भी भारत की शरण में पहुंचे। श्रीलंका की मौजूदा प्रधानमंत्री ‘हरिनी अमरसूर्या’ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से ही शिक्षा प्राप्त की है। अत: श्रीलंका के हुक्मरान भी भारत की अहमियत से मुखातिब हैं। अपने बारूद की ताकत से कायनात का तवाजुन बिगाडऩे की सलाहियत रखने वाले अमेरिका, फ्रांस, इजरायल व रूस जैसे ताकतवर मुल्क भी भारत की कूटनीति व सैन्य ताकत का लोहा मानते हैं। मगर पिछले नौ वर्षों से कनाडा की सत्ता पर काबिज रहने के बावजूद जस्टिन ट्रूडो भारत की विदेश नीति व कूटनीतिक ताकत को भांपने में नाकाम रहे। चार लाख से अधिक भारतीय छात्र कनाडा के शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई करते हैं। दीगर मुल्कों की निस्बत भारतीय छात्रों का ये आंकड़ा बहुत अधिक है।

कनाडा के शिक्षण संस्थानों की अर्थव्यवस्था को गुलजार करने में भारतीय छात्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है। कनाडा के शिक्षक वर्ग का रोजगार भी भारतीय छात्रों की महंगी फीस पर ही निर्भर करता है। कनाडा की मइशत को वहां के लाखों भारतीय प्रवासी लोग अपनी मेहनत से मजबूत कर रहे हैं। मगर विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था में शुमार भारत कनाडा की किसी भी चीज पर निर्भर नहीं है। हालात ये हैं कि कनाडा के तालीमी इरादों की तरफ भारतीय छात्रों का बढ़ता रुझान काफी हद तक कम हो रहा है। ट्रूडो की हुकूमत में कनाडा के हिंदू धर्मस्थलों पर भारत विरोधी स्लोगन लिखे गए। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगे’ का अपमान किया गया। भारत की दिग्गज सियासी लीडर व साबिक वजीरे आजम इंदिरा गांधी के कत्ल का सरेआम जश्न मनाया गया। सनातन धर्म के जज्बातों को भडक़ाने तथा लोगों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने की कारकर्दगी पर भी ट्रूडो के लब-ए-इजहार पर खामोशी थी। कनाडा की सरजमीं पर भारत विरोधी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की आजादी करार दिया गया। हालांकि ट्रूडो के भारत विरोधी बयानों से कनाडा की आवाम भी खफा थी। अपने ही सियासी दल में विरोधी सुर उठने लगे थे। चरमपंथ व कट्टरवाद की हिमायत जस्टिन ट्रूडो के सियासी करियर पर कुठारघात साबित हुई। भारत विरोधी अलगाववादी ताकतों से ट्रूडो की रफाकत ने कनाडा की सियासी हरारत को इस हद तक बढ़ा दिया जिसका विकल्प ट्रूडो का इस्तीफा ही था। खुद को कनाडा की सियासत का चतुर खिलाड़ी समझने वाले जस्टिन ट्रूडो भारत की डिप्लोमेटिक स्ट्राइक के आगे अनाड़ी साबित हुए। लिहाजा विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत को अस्थिर करने का ख्वाब देखने वाली देशी व विदेशी ताकतों को भारत की कूटनीति से पस्त हुए कनाडा व मालदीव जैसे मुल्कों से सबक लेना होगा।

विश्व को अमन का पैगाम देने वाले बुद्ध, महावीर, नानक व महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों की कर्मभूमि रहा भारत एटमी कूवत से लैस मुल्क व विश्व की चौथी सैन्य ताकत तथा पांचवीं अर्थव्यवस्था की हैसियस रखता है। अलबत्ता भारत अपने राष्ट्रीय हितों व स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करेगा। बहरहाल जस्टिन ट्रूडो के दौरे हुकूमत में कनाडा के गुलिस्तां में चरमपंथ के जो जहरीले शजर उगे हैं, उनमें अमन के गुल नहीं खिलेंगे। अत: भारत को ‘शठे शाठ्यम समाचरेत्’ नीति से ही जवाब देना होगा, ताकि हिंदोस्तान का राष्ट्रवादी संकल्प व इकबाल हमेशा बुलंद रहे। भारत विरोधी विचारधारा कनाडा की सियासत में गहरी पैठ बना चुकी है। दोनों मुल्कों के बिगड़े ताल्लुकात एक मुद्दत तक खुशहाल नहीं हो सकते।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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