जलवायु संधि
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पदभार संभालते ही ताबड़तोड़ फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। बतौर राष्ट्रपति पहले ही दिन ट्रंप ने पेरिस जलवायु संधि से अलग होने का निर्णय ले लिया है। अमरीका अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का सदस्य भी नहीं रहेगा। अमरीका में अब जन्मजात नागरिकता का अधिकार लागू नहीं होगा। अब तक यहां जन्म लेने के साथ ही शिशु को नागरिकता मिल जाती है। ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े पेरिस समझौते से हटने के लिए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए कहा है कि ‘मैं तुरंत पेरिस जलवायु संधि से हट रहा हूं, क्योंकि अमरीका अपने उद्योगों को उस स्थिति में हानि नहीं पहुंचाएगा, जब अन्य देश बेखौफ होकर प्रदूषण फैला रहे हों।’ याद रहे ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल 2017 में भी इस संधि से देश को अलग कर लिया था। परंतु जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमरीका फिर इसमें शामिल हो गया था। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचने के लिए वैश्विक तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के उद्देश्य से दुनिया के 175 देशों ने यह हस्ताक्षरित समझौता किया हुआ है। अब अमरीका के एक बार फिर से अलग हो जाने से दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की पहल को झटका लगेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में 2015 में हुए ऐतिहासिक पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को बड़ा झटका लगा है। इस समझौते पर भारत-चीन सहित 175 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए समझौतों को ट्रंप जैसे लोग अपनी आत्मकेंद्रित दृष्टि के चलते खारिज करने लग जाएंगे तो न तो भविष्य में संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं का कोई महत्व रह जाएगा और न ही वैश्विक समस्याओं पर आगे कोई सहमति बन पाएगी।
इस नाते अमरीका का इस वैश्विक करार से बाहर आना दुनिया के सुखद भविष्य के लिए बेहतर संकेत नहीं है। जबकि अमरीका सबसे ज्यादा प्रदूशषण फैलाने वाले देशों में प्रमुख है। राष्ट्र संघ को अमरीका के डब्ल्यूएचओ से बाहर हो जाने पर भी बड़ा झटका लगेगा, क्योंकि प्राकृतिक आपदा और युद्ध की स्थिति में प्रभावित लोगों को आर्थिक मदद, भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में अमरीका यूएन को बड़ी मदद करता रहा है। इस करार से अमरीका का बाहर आना समूचे विश्व के लिए अशुभ है। अपने औद्योगिक हितों की चिंता और चुनावी वादे की सनक पूर्ति के लिए ट्रंप ने यह पहल की है। दरअसल ट्रंप अमरीकी कंजरवेटिव पार्टी के उस धड़े से सहमत रहे हैं, जो मानता है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ता वैश्विक तापमान एक थोथी आशंका है। इसीलिए ये लोग कार्बन उत्सर्जन में कटौती से अमरीका के औद्योगिक हित प्रभावित होने की पैरवी करते रहे हैं। इस गुट की इन्हीं धरणाओं के चलते ट्रंप ने चुनाव में ‘अमेरिका फस्र्ट’ और ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का नारा दिया था। इस फैसले से मुकर जाने के कारण दुनियाभर में ट्रंप की निंदा हो रही है। दरअसल ट्रंप की इस आत्मकेंद्रित मानसिकता का तभी अंदाजा लग गया था, जब भारत और चीन पर आरोप लगाया था कि इन दोनों देशों ने विकसित देशों से अरबों डॉलर की मदद लेने की शर्त पर समझौते पर दस्तखत किए हैं। लिहाजा यह समझौता अमरीका के आर्थिक हितों को प्रभावित करने वाला है। ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में यहां तक कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की ‘हरित जलवायु निधि’ अमरीका से धन हथियाने की साजिश है।
प्रमोद भार्गव
स्वतंत्र लेखक
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