धर्मशाला में कन्वेंशन सेंटर
मुख्यमंत्री के शीतकालीन प्रवास की गर्माहट में कांगड़ा सुखविंदर सिंह सुक्खू को करीब देख रहा है, तो पर्यटन राजधानी के सफर की मंजिलें भी नजर आने लगी हैं। युग बदल रहा गगल एयरपोर्ट का विस्तार अब रेखांकित होने लगा है, तो एशियन विकास बैंक के वित्तीय सहयोग से धर्मशाला, नगरोटा, पालमपुर व पौंग बांध तक आशाएं तैरती हुई मिल जाएंगी। बहरहाल अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर की रूपरेखा में मुख्यमंत्री ने अपनी प्राथमिकता जाहिर की है। करीब डेढ़ सौ करोड़ की लागत से बनने वाला यह सेंटर हिमाचल को गोवा व कश्मीर के पर्यटन के नजदीक खड़ा कर देगा। हालांकि कागजों में झूलती इस परियोजना ने पहले भी कई नक्शे खींचे, लेकिन अब हकीकत के द्वार पर मुख्यमंत्री ने स्पष्टता से इसकी ‘नेमप्लेट’ लगा दी। कुछ ऐसे ही यथार्थ की जमीन पर ढगवार दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र का नींव पत्थर भी भविष्य की कलम से ग्रामीण आर्थिकी लिख रहा है। डेढ़ से तीन लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता में दुग्ध उत्पादक की गारंटी दे रहा। पांच जिलों के दायरे में 35 हजार किसानों की किस्मत के पैमाने अगर यह मिल्क प्लांट भर पाता है, तो यह श्वेत क्रांति का ऐतिहासिक दस्तावेज सिद्ध होगा। अंतत: शीतकालीन प्रवास की वकालत में प्रदेश की योजनाओं का ढर्रा बदलने की कोशिश ही तो रही है। इसी परिप्रेक्ष्य से कांग्रेस सरकार की पेशकश में कांगड़ा में उतर रहीं परियोजनाएं अपना कद और पदक लेकर हाजिर हैं। यह दीगर है कि बीच में राजनीतिक नोकझोंक से कुछ विरोध केंद्रीय विश्वविद्यालय के जदरांगल परिसर को लेकर शुरू है, लेकिन अगर इस विषय पर भाजपा गंभीर है तो इस परियोजना की फंडिंग में कुछ तो उदारता केंद्र से ले आती। केंद्र सरकार पर्यावरण संरक्षण के नाम पर मांग रही 30 करोड़ की राशि को निरस्त भी तो कर सकती है। वैसे 70 प्रतिशत अपनी जमीन जंगल के नाम पर कर देने वाले हिमाचल पर ऐसे फौलादी कानूनों का अत्याचार शीघ्रता से दूर होना चाहिए, वरना अमल में आने से पहले कई प्रस्तावित परियोजनाएं दम तोड़ती रहेंगी।
दूसरी ओर सरकार को भी जदरांगल परिसर की परीक्षा में तो सफल होना ही पड़ेगा। इस परिसर का अध्याय कितना भी नजरअंदाज हो, इसे बंद करना किसी भी सरकार के लिए नामुमकिन होगा। इस संदर्भ में भाजपा ने अपना विरोध जताया है, लेकिन पिछली सरकार के समय भी यह मुद्दा यूं ही भटकता रहा है। दूसरी ओर यूनिटी माल के निर्माण में हो रही देरी ने आशंकाएं बढ़ा दी हैं। यूनिटी माल की जगह पर बजट की पहली किस्त आने के बावजूद अगर निर्माण की शिथिलता है, तो इसको लेकर विपक्ष की आशंका का क्या जवाब है। कहीं यह परियोजना भी केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे दलदल में खड़ी होने तो नहीं जा रही। बहरहाल कांगड़ा पर्यटन की राजधानी में बनखंडी का चिडिय़ाघर अब एक बड़ी परियोजना को साकार करने के लिए आगे बढ़ रहा है। अभी कई योजनाएं विवादों में हैं। मसलन पालमपुर का पर्यटन विलेज अदालती फैसले के कारण कृषि विश्वविद्यालय से जमीन नहीं ले सका, तो नरघोटा में हिमुडा से पर्यटन के नाम हुई भूमि पर टूरिस्ट विलेज की परिकल्पना को क्यों ग्रहण लगा है। यह दीगर है कि नगरोटा बगवां में म्यूजिकल फाऊंटेन की ऊंचाई तय है या पौंग पर शिकारे अपने मार्ग बना रहे हैं। शीतकालीन प्रवास पर निकले मुख्यमंत्री ने धर्मशाला में अपने व्यक्तित्व का एहसास कराया है। जब वह कोतवाली बाजार में गेयटी थियेटर जैसे सभागार के निर्माण की संभावना देखते हैं या कचहरी अड्डा के समन्वित विकास में भविष्य के माल रोड की परिकल्पना करते हैं, तो सरकार का जज्बा सामने आ जाता है। इस गहमागहमी के बीच कहीं चिल्ड्रन ऑफ दि स्टेट के बैनर तले बिलासपुर के अनाथालय के 17 बच्चे, जब वाघा बार्डर भ्रमण से मुखातिब होते हैं, तो धर्मशाला सचिवालय से सरकार की संवेदना दर्ज होती है। कहना न होगा कि शीतकालीन प्रवास का महत्त्व और संवेदना कहीं बहुत गंभीरता से कांगड़ा के पक्ष में अपना नजरिया खोल रही है। इसके कई आयाम व पड़ाव हो सकते हैं, लेकिन गगल एयरपोर्ट विस्तार ने आर्थिकी की आंखें खोल दी हैं। देखते हैं शीतकालीन राजधानी से लौटकर हिमाचल की राजधानी कितना अमल कर पाती है।
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