चाय, गर्रम चाय

नीयत अच्छी है, और नीयत में सेवा भाव है, प्रेम का भाव है तो इतना ही काफी है। ‘सहज संन्यास मिशन’ के चार मूल स्तंभों में से आखिरी दो- जन की सेवा और मनन की सेवा का अभिप्राय भी यही है। जन की सेवा से आशय है कि हम अपने आसपास के लोगों की सेवा और सहायता करें, निस्वार्थ रहकर उनसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करें, और मनन की सेवा से आशय है कि हम आत्मचिंतन करें, अपनी गलतियां सुधारें, अपना कौशल बढ़ाने के उपाय सोचें, लेकिन साथ ही यह भी देखें कि अपने आसपास के लोगों के लिए और वृहत्तर समाज के लिए नया क्या कर सकते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला हो सके। यह कर सकें तो फिर हम भी ‘चाय, गर्रम चाय’ बांटने वाले लोगों की जमात में शामिल हो जाते हैं…
जीवन में ऐसे बहुत से अवसर आते हैं जब हम उस वक्त की स्थिति को बदलना चाहते हैं, पर हम पूरी तरह से असहाय महसूस करते हैं क्योंकि हमारे पास वह पद, शक्ति या साधन नहीं होते जिससे हम उस स्थिति को बदल सकें। कोई जरूरतमंद हमारे सामने हाथ फैलाए खड़ा है और जेब में पैसे नहीं हैं। कोई पैसे वाला व्यक्ति हमारे सामने अकारण ही किसी गरीब व्यक्ति की बेइज्जती कर रहा है और हम चुप खड़े रह जाते हैं क्योंकि हम उस अमीर व्यक्ति के कर्मचारी हैं। कोई अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से आंख चुरा रहा है और हम उसकी चापलूसी किए जा रहे हैं क्योंकि हमने उसी अधिकारी से अपना भी कोई काम निकलवाना है और हमारा काम जायज होते हुए भी रुक सकता है अगर हम उस अधिकारी को नाराज कर दें। कोई व्यक्ति बेकसूर होने के बावजूद न्यायालय से इसलिए सजा पा लेता है क्योंकि कानून अधूरा है या उसका वकील सही से तर्क नहीं रख पाया या उसे सारे सबूत सहेजने की जरूरत महसूस नहीं की थी। ऐसे हजारों-हजार कारण हो सकते हैं जब हम असहाय महसूस करें और मन ही मन कुढ़ते रह जाएं। बहुत सी स्थितियों में हम सचमुच असहाय हो सकते हैं, लेकिन यह भी संभव है कि बहुत सी स्थितियों में हम यदि थोड़ी-सी कल्पनाशक्ति का सहारा लें तो कोई ऐसा रास्ता निकल सकता है जब हम किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकें। यह कोई जरूरी नहीं है कि ऐसी हर स्थिति में हम समस्या का आदर्श समाधान ढूंढ ही लें, पर यह अवश्य संभव है कि समस्या से जूझ रहे इनसान को यह अवश्य महसूस हो जाए कि दुनिया में सब लोग सिर्फ बुरे ही नहीं हैं। जीवन में ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे जब किसी व्यक्ति ने किसी समस्या से जूझ रहे किसी व्यक्ति के लिए कुछ ऐसा कर दिया कि उसकी हिम्मत बढ़ गई और उसके लिए अपनी चुनौतियों से रूबरू होना कुछ ज्यादा आसान हो गया।
भीड़ भरी बस में हम किसी बुजुर्ग के लिए या किसी महिला के लिए अपनी सीट छोड़ दें, गर्मियों के मौसम में हमारे घर के सामने से कोई व्यक्ति गुजर रहा हो और धूप के कारण उसका पसीना बहा जा रहा हो और हम उसे एक गिलास पानी ही पिला दें। ऐसे छोटे-छोटे काम भी कई बार सामने वाले के लिए बहुत बड़ी तसल्ली का कारण बन जाते हैं। एक छोटे से कस्बे की बात है। बारिश का मौसम था, और बारिश की बौछारों से बचने के लिए कुछ लोग एक मंदिर के आंगन में खड़े थे, तभी पास की चाय वाली दुकान से दो बच्चे हाथ में चाय की बड़ी केतली और डिस्पोजेल कप पकड़े हुए आए और ‘चाय, गर्रम चाय’ चिल्लाते हुए सबको चाय पिलाने लग गए। सेवा और सहानुभूति के उस प्यार भरे अहसास में चाय के साथ-साथ गर्म शब्द को ‘गर्रम’ कहने के उनके अंदाज ने वातावरण को सचमुच खुशनुमा बना दिया और सबके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान आ गई। कल्पनाशक्ति के उपयोग के ऐसे भी उदाहरण हैं जहां कोई व्यक्ति समाज में कुछ योगदान देना चाहता है, पर योगदान दे पाने के लिए उसके पास उपयुक्त साधन नहीं हैं। अब किसी दूसरे व्यक्ति ने उसे कुछ ऐसा रास्ता सुझा दिया जिसमें वह बहुत छोटे स्तर से ही सही, योगदान की शुरुआत के काबिल हो गया। हर व्रत-त्योहार पर एक व्यक्ति किसी जगह खीर-पूडिय़ों या मीठे पानी का लंगर लगा देखता तो उसकी बड़ी इच्छा होती कि वह भी कभी लंगर लगाए, लेकिन उसकी आर्थिक अवस्था ऐसी थी कि महीने की बीस तारीख को ही तनख्वाह के सारे पैसे खत्म हो जाते थे और महीने के आखिरी दिन बड़ी कठिनाई में कटते थे। ऐसे में वह बेचारा लंगर लगाता तो कैसे? उसने अपनी इस इच्छा और मजबूरी का जिक्र अपने एक दोस्त से किया तो दोस्त ने कहा कि लंगर ही लगाना है तो रोज लगाओ, पर याद रखो कि भूख और प्यास सिर्फ इनसानों को ही नहीं लगती, पशु-पक्षियों को भी लगती है। चींटियों के बिल के पास थोड़ा-सा चीनी मिला आटा भी लंगर है, चिडिय़ों के लिए पानी या रोटी के टुकड़े रख देना भी लंगर है, बिल्लियों, कुत्तों या गायों को रोटी खिला देना भी लंगर है। शुरुआत कितनी ही छोटी हो सकती है। लंगर इनसान के लिए लगा या ब्रह्मांड के किसी अन्य जीव के लिए लगा, इससे फर्क नहीं पड़ता, बात तो निश्चय की है, नीयत की है। जब हम किसी भी जीव को देख कर प्रेम से भर कर उसके लिए कुछ करने को तत्पर हो जाते हैं तो हम आध्यात्मिकता का सार पा लेते हैं।
जब हमें यह निश्छल-निस्वार्थ प्रेम, मां की ममता सरीखा प्यार करना आ जाता है, उन लोगों से भी जो हमें कभी कुछ नहीं दे सकते, उन लोगों से भी जिन्हें हम जानते ही नहीं, उन लोगों के लिए भी जो दोबारा कभी हमें मिलें या न मिलें, और मनुष्यों से ही नहीं बल्कि इस ब्रह्मांड के हर जीव-जंतु से, हर जड़-चेतन वस्तु के प्रति आदर, प्यार और ममता का जज्बा आ जाए तो मन में अजीब सी खुशी भर जाती है। ऐसा हो जाए तो हम आध्यात्मिकता की उन ऊंचाइयों को छू लेते हैं जिसे पाने के लिए लोग पूजा स्थलों पर जाकर शीश नवाते हैं, तीर्थ यात्राएं करते हैं, दान-पुण्य करते हैं, व्रत-उपवास करते हैं। सच ही कहा है कि धार्मिक होने से पहले, या आध्यात्मिक होने से पहले हममें प्रेम और दयालुता का भाव होना जरूरी होता है, वरना न हम धार्मिक हैं और न आध्यात्मिक। दान और सेवा सिर्फ पैसे से ही नहीं होती, व्यवहार से भी होती है। किसी के चेहरे पर मुस्कान ला देना, किसी का हौसला बढ़ा देना, किसी को सही रास्ता दिखा देना, किसी की समस्या का हल सुझा देना, किसी को कोई ऐसा संपर्क दे देना जहां से उसे सहायता मिल सके, भी सेवा ही है, और यह सेवा किसी दान-पुण्य से कम नहीं है। दान छोटा या बड़ा हो सकता है, सेवा छोटी-बड़ी नहीं होती क्योंकि नीयत अच्छी या बुरी हो सकती है, पर वह छोटी या बड़ी नहीं होती। नीयत अच्छी है, और नीयत में सेवा भाव है, प्रेम का भाव है तो इतना ही काफी है। ‘सहज संन्यास मिशन’ के चार मूल स्तंभों में से आखिरी दो- जन की सेवा और मनन की सेवा का अभिप्राय भी यही है। जन की सेवा से आशय है कि हम अपने आसपास के लोगों की सेवा और सहायता करें, निस्वार्थ रहकर उनसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करें, और मनन की सेवा से आशय है कि हम आत्मचिंतन करें, अपनी गलतियां सुधारें, अपना कौशल बढ़ाने के उपाय सोचें, लेकिन साथ ही यह भी देखें कि अपने आसपास के लोगों के लिए और वृहत्तर समाज के लिए नया क्या कर सकते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला हो सके। यह कर सकें तो फिर हम भी ‘चाय, गर्रम चाय’ बांटने वाले लोगों की जमात में शामिल हो जाते हैं और फिर फर्क नहीं पड़ता कि हम किस धर्म या संप्रदाय के अनुयायी हैं, धार्मिक हैं या आध्यात्मिक हैं, या हम आस्तिक भी हैं या नहीं। सेवा और प्रेम भाव से ‘चाय, गर्रम चाय’ बांटने वाले कुछ और करें या न करें, वे परमात्मा को प्रिय होते ही हैं।
स्पिरिचुअल हीलर
सिद्ध गुरु प्रमोद निर्वाण, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक
ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com
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