बिना शर्तों के पर्यटन खतरे
धर्मशाला और कुल्लू की पहाडिय़ों पर पैराग्लाइडिंग के मुकदमे खड़े हो गए, जब दो लोग आसमान में उडऩे का रोमांच सीने में दबाए सीधे मौत के कुएं में गिर गए। यह रोमांच की आत्महत्या क्यों न मानी जाए, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कई पर्यटक व पायलट पैराग्लाइडिंग की ऊंचाई से फिसल कर जान गंवा चुके हैं। रोमांच की राह पर हिमाचल पर्यटन की खूबियां जिस तरह से प्रचारित हो रही हैं, उससे सुरक्षा, बचाव व राहत की चुनौतियां बढ़ जाती हैं। साहसिक खेलों में हिमाचल का होना दरअसल पर्यटन को नए आयाम पर ले जाना है, लेकिन ऐसे दोहन की शर्तें भी कबूल करनी होंगी। हम हर दिन देखते हैं कि किसी नई पहाड़ी पर पैराग्लाइडिंग हो रही है। अभी-अभी सरकाघाट के आकाश से छतरियां उतरी हैं, तो यह खूबसूरत नजारा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक पूरी व्यवस्था का अवतरण होना चाहिए। बेशक हिमाचल के हर हिस्से में यह खूबी है कि वहां पैराग्लाइडिंग, जल क्रीड़ाएं व ट्रैकिंग जैसे जोखिम उठाए जा सकते हैं। इसके अलावा आधुनिक साहसिक खेलों के उपकरण हिमाचल के निजी क्षेत्र को नित नए प्रयोग करने को प्रेरित कर रहे हैं। इनमें से कुछ साहसिक गतिविधियां पर्वतारोहण संस्थान, जबकि अन्य पर्यटन विभाग के अधीन चल रही हैं। पैराग्लाइडिंग और रिवर राफ्टिंग जैसे खेल पर्वतारोहण संस्थान के तहत चलने चाहिएं। भले ही साहसिक खेल पर्यटन का आकर्षण हैं, लेकिन इससे जुड़े दिशा-निर्देश, प्रशिक्षण व निरीक्षण सीधे-सीधे पर्वतारोहण संस्थान की दक्षता-विशेषता और विभागीय कसौटियों के तहत ही पूरे हो सकते हैं। ऐसे में बीड़ में स्थापित हुए एशिया के पहले पैराग्लाइडिंग स्कूल को तुरंत प्रभाव से पर्वतारोहण संस्थान के अधीन कर देना चाहिए। पर्यटन में साहसिक गतिविधियों का संचालन व आयोजन भले ही सैलानियों का मनोरंजन है, लेकिन इसके साथ जुड़े निरीक्षण-परीक्षण और मानदंडों का एहसास केवल पर्वतारोहण जैसे संस्थान के अनुभव व जिम्मेदारी से ही संभव होगा। बहुत पहले जब पर्वतारोहण संस्थान अस्तित्व में आया, तो इसके तहत प्रदेश में साहसिक अभियानों को दिशा मिली और पहाड़ पर चढ़ता हर कदम अनुशासित हुआ, लेकिन अब यह भी सिमट कर रह गया है।
हालांकि इस दौरान ट्रैकिंग व जलक्रीड़ाओं के साथ-साथ पैराग्लाइडिंग जैसे खेल तीव्र गति से चर्चित हुए हैं। हिमाचल में पहले बर्फबारी का आनंद बागबान व किसान उठाता था, फिर स्कीईंग होने लगी और अब अटल टनल समेत कई ट्रैक चर्चाओं में आ गए हैं। सिरमौर की चूड़धार, शिकारी देवी की पहाडिय़ां और धौलाधार के ट्रैकिंग संदर्भ अब बर्फबारी के बीच रोमांच के खतरे पैदा कर रहे हैं। ऐसे में पर्यटन को करीब से अनुभव करने की ख्वाहिश और हर बार कुछ नया करने का साहस खतरे मोल ले रहा है। यही खतरे पैराग्लाइडिंग के नाम पर बिना शर्तों के बिक रहे हैं। पर्यटन में जोखिम उठाने का साहस एक सीमा तक सही है, लेकिन इसके आगे अगर छूट मिलेगी तो हर साहसिक खेल मौत का कुआं बन जाएगा। बेशक विश्व की सबसे बेहतरीन पैराग्लाइडिंग साइट बीड़ बीलिंग हिमाचल में है और इसके कारण पर्यटन का ताज पहने यह क्षेत्र न्यू डेस्टिनेशन के नाम से विख्यात हो गया, लेकिन प्रोफेशनल खेल और पर्यटन के मनोरंजन में अंतर है। हमें दोनों परिस्थितियों को ध्यान में रखकर पहाडिय़ां विकसित करनी चाहिएं। टेकऑफ प्वाइंट का ढांचागत विकास और वहां आधारभूत सुविधाएं हमेशा उपलब्ध तथा बचाव कार्यों की देखरेख का ढांचा भी विकसित करना होगा। टेकऑफ प्वाइंट पर मैट जैसे प्रबंधन भी अगर मुकम्मल न हों और लैंडिंग साइट पर आवश्यक बंदोबस्त न हों, तो खतरे बिलिंग से इंद्रूनाग या कुल्लू तक एक समान होंगे। यह हवा और मौसम का खेल भी है, जिसे और वैज्ञानिक ढंग से संरक्षण मिलना चाहिए। हिमाचल में न केवल साहसिक खेलों की सुरक्षा में कदम उठाने की जरूरत है, बल्कि ऐसी व्यवस्था कायम करने की पहल करनी होगी जो पूरे प्रदेश में सैलानी गतिविधियों की निगरानी कर सके। अब तो हाईवे निगरानी दल गठित करके अनावश्यक है जो सेल्फी की चाहत में खतरे मोल लेते पर्यटकों को बचा सके। बर्फ में फिसलते वाहनों को सचेत कर सके या ट्रैकिंग एवं अन्य साहसिक खेलों में शरीक होने से पहले पर्यटन की मानसिक व शारीरिक क्षमता का मुआयना कर सके। पर्यटन में प्रगति के साथ हिमाचल में पर्यटन पुलिस का आगाज आवश्यक है।
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