वैष्णव जन तो तेने कहिए…

किसी दुर्घटना में आंखें खो चुके मरीजों का मुफ्त इलाज करके उनकी आंखें वापस लाने का अनूठा काम भी डा. ग्रेवाल सरीखा कोई व्यक्ति ही कर सकता है। अभिनय, फोटोग्राफी, नृत्य, संगीत आदि कलाओं में महारत पाने के लिए जिस संयम, धीरज और लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है, वह व्यक्ति को संवेदनशील बनाती हैं। ऐसा कोई भी व्यक्ति जब अपने धन अथवा समय को जनसेवा के कार्यों के लिए भी समर्पित करता है तो वह सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक हो जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी के भक्ति साहित्य के श्रेष्ठ कवि नरसी भगत के मूल गुजराती भजन का हिंदी रूपांतरण ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाने रे’ का आशय ही यही है कि मानव मात्र से प्रेम और जनसेवा से बढक़र दूसरी कोई और भक्ति नहीं है और इस पैमाने से देखें तो डा. देविंदर बिमरा और डा. एसपीएस ग्रेवाल के लिए सिर खुद-ब-खुद श्रद्धा से झुक जाता है…
आज हम उस युग में जी रहे हैं जब विज्ञान लगातार छलांगें लगा-लगाकर प्रगति कर रहा है। रोज नए आविष्कार हो रहे हैं, नई तकनीक आ रही है, आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस ने हमारे जीवन का नक्शा ही बदल दिया है। स्मार्ट फोन और स्मार्ट हो गया है, टीवी और स्मार्ट हो गया है, और हम खुश होते जा रहे हैं। आए दिन हम अपने गैजेट अपग्रेड कर लेते हैं, गैजेट अपग्रेड न भी करें, नया वाला वर्शन न भी खरीदें तो भी पुराने गैजेट में ही कई-कई बार अपडेट्स आ जाते हैं और पुराने गैजेट का कामकाज भी कुछ और सुधर जाता है, कुछ और आसान हो जाता है, कुछ और अपग्रेड हो जाता है। विज्ञान की यह पूरी तरक्की हमारे दिमाग के कारण है, ये सारे गैजेट हमारे दिमाग का आविष्कार हैं, पर क्या हमने कभी सोचा है कि हम गैजेट तो अपडेट भी करते हैं और अपग्रेड भी करते हैं, पर क्या हमने कभी अपने दिमाग को अपडेट किया है? अपने दिमाग को अपडेट करने के लिए हम क्या कर रहे हैं? पुराने पड़ चुके विश्वासों और पूर्वाग्रहों को लेकर हम क्या कर रहे हैं? हम अपने दिमाग को अपडेट नहीं कर रहे हैं और इसमें तरह-तरह के वायरस भरते जा रहे हैं। सोशल मीडिया आज हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। यह कहना तो गलत होगा कि सोशल मीडिया खतरनाक है, सच यह है कि हमारे चुनाव इतने खराब हैं कि हममें से अधिकतर लोग सोशल मीडिया से लाभ उठाने के बजाय, इसे नशे की तरह प्रयोग करने लग गए हैं। यही कारण है कि हममें से अधिकांश लोगों के लिए सोशल मीडिया सूचना के बजाय शोर हो गया है, अनर्गल प्रलाप हो गया है और समय बर्बाद करने का साधन बन गया है।
हम सोशल मीडिया के जाल में तड़प रहे हैं लेकिन विडंबना यह है कि इसमें इतना नशा है कि हम इससे बाहर आना ही नहीं चाहते। हमने मान लिया है कि जीवन एक बड़ी प्रतियोगिता है और हमें इस प्रतियोगिता में हमेशा आगे रहना है। हम देखते आ रहे हैं कि किस प्रकार कुछ लोग दूसरों के कंधों पर सवार होकर आगे निकल जाते हैं, सफल हो जाते हैं और दुनिया उन पर गर्व करती है। कुछ गलत उदाहरणों ने हमारी सोच को भ्रष्ट कर दिया है। मेरे संपर्क में आने वाले बहुत से लोग ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर ही सफल नहीं दिखते, बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सफल दिखते हैं, समाज की निगाह में आदर्श जीवन जी रहे हैं, उनके संपर्क अच्छे हैं, रिश्ते अच्छे हैं, वे अच्छे टीम लीडर हैं और व्यावसायिक एवं पेशेवर जीवन में सफल हैं, लेकिन ऐसे लोग भी अंदर ही अंदर घुल रहे हैं, अनजानी पीड़ा उन्हें खाये जा रही है, और वे अपने सोशल स्टेटस के कारण अपनी पीड़ा का बयान भी नहीं कर पाते। एक समय ऐसा अवश्य आता है जब उन्हें गहराई से अपने जीवन का खालीपन चुभने लगता है और कई बार यह चुभन किसी बड़े रोग के रूप में सामने आती है। यही कारण है कि आज हम आध्यात्मिकता का बड़ा बाजार देख रहे हैं क्योंकि सफल दिखने वाले अमीर लोग शांति के लिए कितना भी धन देने को तैयार हैं। उनके पास धन है, शांति की खोज जारी है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि यदि व्यक्ति काम में खेल भी जोड़ ले तो उसका जीवन सुखद हो जाता है। मैं संन्यासी हूं, पर मैं यहां आध्यात्मिकता की बात नहीं कर रहा। मैं शुद्ध व्यावहारिक बात कर रहा हूं। मैं किशोर वय का था जब एक संयोग ने मुझे एक हमउम्र किशोर से मिलवाया जो आज डा. देविंदर बिमरा के नाम से समाज को रोशन कर रहे हैं।
डा. देविंदर बिमरा पेशे से डॉक्टर हैं, लेकिन साथ ही एक संवेदनशील लेखक, कवि और अभिनेता भी हैं और उन्हें डॉक्टर के रूप में जो सफलता मिली है, उनके अंदर के लेखक, कवि और अभिनेता ने उसमें आनंद का टॉनिक भर कर उनके जीवन को परिपूर्ण बना दिया है। जब हम काम के साथ अपने शौक भी जिंदा रखते हैं तो हम एक भरपूर जीवन जीते हैं और अगर शौक ऐसा हो जो समाज के नैतिक विकास में योगदान भी दे सके, तो सोने पर सुहागा। डा. देविंदर बिमरा का जीवन सामाजिक योगदान का अनुपम उदाहरण है क्योंकि नए उभरते लेखकों और अभिनेताओं को प्रोत्साहित करना, टिप्स देना तो उनका रोज का काम है ही, वे अपनी मित्र सूची के हर व्यक्ति की जन्म दिवस का रिकॉर्ड रखते हैं और मेरी जानकारी में वे ऐसे अकेले व्यक्ति हैं जो अपने हर मित्र के जन्म दिवस की बधाई सबसे पहले देते हैं। उनका यह काम हर चेहरे पर मुस्कान लाता ही है। ग्रेवाल आई इंस्टीट्यूट के संस्थापक मेरे मित्र डा. एसपीएस ग्रेवाल भी ऐसे ही एक बेमिसाल व्यक्ति हैं। डा. ग्रेवाल एक नामी आई सर्जन हैं, साथ ही वे एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर होने के अलावा एक बेहतरीन प्रोग्रामर भी हैं। ग्रेवाल आई इंस्टीट्यूट में कंप्यूटर तकनीक से संबंधित पूरी प्रोग्रामिंग खुद डा. ग्रेवाल ने की है। वे जब भी किसी कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए जाते हैं तो अपना कैमरा साथ ले जाना नहीं भूलते और आसपास के दर्शनीय स्थलों के जीवंत फोटो लेते रहते हैं। फोटोग्राफी के अपने शौक के कारण वे अक्सर जंगली जीवों के संपर्क में भी आते हैं।
वे बताते हैं कि एक बार उन्हें तीन बार सफारी ट्रिप पर जाना पड़ा। उन्होंने एक ही शेर के तीन सौ से भी ज्यादा शॉट लिए, तब जाकर उन्हें शेर का वह पोज मिल पाया जो एक अविस्मरणीय अनुभव बन गया। अपने करिअर के शुरुआत में डा. ग्रेवाल हर शनिवार और इतवार स्लम एरिया के लोगों के लिए मुफ्त कैंप लगाकर इलाज करते थे, जहां चेकअप और दवाई भी उन्हीं की ओर से दी जाती थी। बाद में उन्होंने अपने इस पुनीत कार्य में पंचायतों, मंदिरों और गुरुद्वारों को भी जोड़ लिया और मुफ्त कैंपों के आयोजन के लिए एक अलग टीम का गठन किया। किसी दुर्घटना में आंखें खो चुके मरीजों का मुफ्त इलाज करके उनकी आंखें वापस लाने का अनूठा काम भी डा. ग्रेवाल सरीखा कोई व्यक्ति ही कर सकता है। अभिनय, फोटोग्राफी, नृत्य, संगीत आदि कलाओं में महारत पाने के लिए जिस संयम, धीरज और लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है, वह व्यक्ति को संवेदनशील बनाती हैं। ऐसा कोई भी व्यक्ति जब अपने धन अथवा समय को जनसेवा के कार्यों के लिए भी समर्पित करता है तो वह सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक हो जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी के भक्ति साहित्य के श्रेष्ठ कवि नरसी भगत के मूल गुजराती भजन का हिंदी रूपांतरण ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई जाने रे’ का आशय ही यही है कि मानव मात्र से प्रेम और जनसेवा से बढक़र दूसरी कोई और भक्ति नहीं है और इस पैमाने से देखें तो डा. देविंदर बिमरा और डा. एसपीएस ग्रेवाल के लिए सिर खुद-ब-खुद श्रद्धा से झुक जाता है। जीवन जीने का यह तरीका श्रेष्ठ है।
स्पिरिचुअल हीलर
सिद्ध गुरु प्रमोद निर्वाण, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक
ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com
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