संवाद से स्पर्श तक शिक्षा
‘होंगी वहां भी कुछ हवाएं जो हम तक नहीं आईं, उन्हीं के भंवर से गुजर जाएंगे तो यकीं होगा।’ इसी यकीन की धरती पर हिमाचल के 50 मेधावी छात्रों को खड़ा करने का बीड़ा हिमाचल सरकार ने उठाया। ये मेधावी बच्चे 11 दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण पर कंबोडिया और सिंगापुर गए हैं। सोच का आकाश बदलने की कोशिश में हर काम एक मंजिल हो सकता है। जिन बच्चों ने पूरी तरह देश नहीं देखा, वे कंबोडिया-सिंगापुर मेें अपने लिए एक क्षितिज सा सपना खोज लाएंगे। शिक्षा को संवाद और स्पर्श तक लेकर जाने का यह एहसास ही नहीं, बल्कि कल जब ये बच्चे अनुभव साझा करेंगे, तो प्रतिस्पर्धा के कान पढ़ाई के माहौल की अंतरराष्ट्रीय आवाज भी सुनेंगे। इन पढ़ाकू बच्चों की पृष्ठभूमि न शहरी और न ही महानगरीय रही है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक भ्रमण के मार्फत ये भविष्य की दुनिया देखेंगे। कई झरोखे इस यात्रा से निकलेंगे और कई भाव बहने लगेंगे। व्यक्तित्व विकास के मुहावरे और एक नए आगाज का अवसर यूं ही आता है, बल्कि यह हर बच्चे को सौगात की तरह मिलना चाहिए। आठवीं तक राज्य के भीतर भ्रमण की परिपाटी को मजबूत करना होगा, जबकि जमा दो तक के वर्षों में एक राष्ट्रीय भ्रमण की अनिवार्यता को पाठ्यक्रम की आवश्यकता बना देना चाहिए। हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड एवं विभाग तथा अभिभावक मिल कर ऐसे भ्रमणों की संगत में प्रदेश का भविष्य संवार सकते हैं। इतना ही नहीं, हिमाचल को छात्र पर्यटन की दृष्टि से हाइड्रो प्रोजेक्ट, औद्योगिक विकास, बांध परियोजनाओं, एग्रो पर्यटन, जैव विविधता तथा आयुर्वेद, कृषि एवं बागबानी-वानिकी विश्वविद्यालयों में ज्ञान की खिड़कियां खोलनी चाहिएं। नादौन से बिलासपुर के बीच एक ‘विज्ञान शहर’ बसा कर हिमाचल न केवल राज्य, बल्कि पड़ोसी राज्यों के छात्रों के मन-मस्तिष्क पर एक छाप-एक संकल्प चस्पां कर सकता है। पढऩा अब केवल पाठ्यक्रम नहीं और न ही डिग्री में उच्च स्तर तक पहुंचना किसी मानसिक विकास का परिचय है। यह नवाचार का युग है। नए आइडिया का युग है। समय को अपने ही परिवेश में देखने से अंतर नहीं आता।
हमने स्कूलों से कालेज चिन दिए, तो छात्र अलग से देखेंगे क्या। एक ठेठ ग्रामीण स्कूल परिसर के बाद वहीं के कालेज में बच्चा चला भी जाए, तो सिर्फ एक डिग्री का अंतर आएगा, वरना वह एक स्थिर माहौल में अपने विचारों की दीवारें नहीं तोड़ पाएगा। हैरत यह कि हिमाचल ने चार दर्जन से भी अधिक कालेजों को स्नातकोत्तर तो बना दिया, लेकिन यह नहीं सोचा कि छात्र को शिक्षा से संवाद कैसे करना है और माहौल से नए विचारों तक पहुंचना कैसे है। हमारा ज्ञान परिक्रमा की तरह एक पिंजरे के चक्कर काट कर सिर्फ नौकरी का मजमून बना देता है। यहां समाज के पिंजरे भी कमाल के हैं। जहां हम पढ़-लिख कर डिग्रीधारक बनते हैं, वहीं हम सरकारी नौकरी पाकर ‘नॉन ट्रांसफरेबल’ संपत्ति बनकर जीना चाहते हैं। हमारे व्यक्तित्व विकास की यही धुरी और ध्रुव बन रहा है, जिसे एक उदाहरण के रूप में सुक्खू सरकार तोड़ रही है। यही ज्ञान का संवाद है जिसे पच्चास मेधावी छात्र कंबोडिया और सिंगापुर से हासिल करके लौटेंगे। अध्ययन के पाठ्यक्रम में प्रमाणपत्र और डिग्रियां तो मिल जाएंगी, लेकिन प्रतिस्पर्धा का जज्बा और ज्ञान का आलोक तो व्यक्तित्व की खिड़कियां खोल कर ही मिलेगा। विडंबना यह है कि स्कूलों में प्रयोगशालाएं और पुस्तकालय अब पाठ्यक्रम के न्यूनतम इस्तेमाल का स्थान हैं, जबकि जीवन के विषय तो स्कूल के मैदान पर मिलेंगे। छात्रों के सामने न अध्यापक वर्ग के अनुकरणीय स्तंभ बचे और न ही पाठशालाओं के समारोहों के आतिथ्य में आदर्श पुरुष बुलाए जाते हैं। सत्ता पक्ष के नेताओं को प्रभाव की भूमिका में स्कूलों के वार्षिक समारोहों में बुलाए जाने पर रोक लगनी चाहिए, बल्कि इनके स्थान पर विभिन्न क्षेत्रों के सफल व श्रेष्ठ अनुभव प्राप्त हिमाचलियों से छात्रों की मुलाकात कराने की प्रथा व स्थायी बंदोबस्त होना चाहिए। स्कूली बच्चों की कक्षा को आदर्शों की पाठशाला बनाने के लिए प्रतिष्ठित नागरिकों, अनुभव प्राप्त प्रोफेशनल, उच्च अधिकारी, सैन्य अधिकारी, खिलाड़ी, मशहूर गायक, कलाकार, बिजनेसमैन, उद्योगपति व प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त युवाओं को स्कूलों में बुलाने की राह बनानी होगी।
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