डंकी रूट पर सख्त रुख अपनाएं सरकारें

बहरहाल यूएसए से भारतीय नागरिकों के निर्वासन पर सियासी मंथन होना चाहिए कि तवानाई से लबरेज युवा वर्ग डंकी रूट के तहत विदेश जाने को मजबूर क्यों है? बेरोजगारी की पराकाष्ठा, रोजगार की जुस्तजू, अमीर बनने की चाहत, डॉलर की चमक या मगरबी तहजीब के हसरत-ए-दीदार की कशिश…
मुगल बादशाही के दौर में कबूतरों को आपस में लड़ाने वाला ‘कबूतरबाजी’ एक मशहूर खेल था, मगर कुछ वर्ष पूर्व भारत में कबूतरबाजी लफ्ज मानव तस्करी के रूप में काफी चर्चित हुआ था। कबूतरबाजी यानी लोगों को अवैध तरीके से विदेश भेजने का तरीका। कबूतरबाजी के इल्जाम ने देश के कुछ मकबूल फनकारों को भी सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। मौजूदा वक्त में कबूतरबाजी की जगह ‘डंकी रूट’ एक चर्चित लफ्ज बन चुका है। डंकी रूट यानी किसी देश में गैर कानूनी तरीके से प्रवेश करना। अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी व ब्रिटेन जैसे मुल्क भारतीय युवाओं की पहली पसंद हैं। जब लोग दस्तावेज नहीं बनवा पाते या विदेश जाने के लिए उनको वीजा नहीं मिलता तो एजेंट्स युवाओं को डंकी रूट के तहत बिना किसी दस्तावेज व वैध वीजा के अवैध तरीके से विदेश पहुंचाने के हसीन ख्वाब दिखाते हैं। जिस प्रकार नशे के सरगना नशा तस्करी के लिए नए तरीके इजाद करते हैं, उसी प्रकार टै्रवल एजेंट भी युवाओं को गैर कानूनी तरीके से विदेश भेजने के लिए कबूतरबाजी, डंकी रूट व फिश रूट जैसी अवैध तरकीबें अपनाते हैं। नशे का नेटवर्क भी देश में अपनी जडं़े जमा चुका है।
डंकी रूट का संचालन करने वाले एजेंटों का कारोबार भी फराज पर है। नशा माफिया के निशाने पर भी युवा वर्ग है तथा डंकी रूट के एजेंटों का नेटवर्क भी युवा वर्ग के इर्द-गिर्द ही घूमता है। नशा माफिया की तरह डंकी रूट के संचालकों का भी अपना एक निर्धारित क्षेत्र है। नशे के सरगना व डंकी रूट के एजेंट तथा टै्रवल एजेंसियां अपनी अरबों रुपए की अवैध सल्तनत कायम कर चुकी हैं। बेशक बेरोजगारी के अजाब से भारत के हजारों युवा अपना मुल्क छोडक़र डंकी रूट का सहारा लेकर मगरबी मुल्कों में जा रहे हैं। मगर इसे इत्तेफाक कहें या इख्तिलाफ। संयोग कहें या प्रयोग। अमेरिकी प्रशासन अवैध रूप से रह रहे भारतीय प्रवासी युवाओं को शातिर अपराधियों की तरह हथकडिय़ों व बेडिय़ों में जकडक़र जिस तरीके से बेआबरू करके निर्वासित कर रहा है, यूएसए की यह कारकर्दगी दुर्भाग्यपूर्ण है। हैरत की बात है कि बेगुनाह प्रवासी भारतीय युवाओं से मुजरिमों जैसा सलूक करने वाली अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों की इस हरकत पर मानवाधिकारों की वकालत करने वाले मुनाजिर भी खामोश हैं। अमेरिका की अर्थव्यवस्था को अपनी कड़ी मेहनत से गुलजार करने वाले भारतीय नौजवानों को अवैध प्रवासी बताकर अमेरिकी प्रशासन नामोशी के साथ डिपोर्ट करके दुनिया को पैगाम नसर कर रहा है कि अपने मुल्क की सुरक्षा व राष्ट्रीय हितों से यूएसए कभी समझौता नहीं करेगा। लेकिन यूएसए में एक मुद्दत से पनाह ले चुके भारत विरोधी गतिविधियों में मुल्लविश आदतन मुजरिमों व गैंगस्टरों के प्रत्यर्पण पर अमेरिकी प्रशासन भी खामोश है। हकीकत में डंकी रूट का इस्तेमाल गैंगस्टर व जघन्य वारदातों को अंजाम देकर बैरूने मुल्कों में पनाह लेने वाले कुख्यात अपराधियों के लिए ही होता था। आतंकी व गैंगस्टर गतिविधियों से जुड़े मुजरिम मौजूदा वक्त में भी डंकी रूट के जरिए ही विदेशों में पहुंचते हैं। भारत विरोधी गतिविधियों में मशगूल व अलगाववाद, चरमपंथ की पैरवी करने वाले लोगों को विदेशी खूफिया एजेंसियों की पूरी हिमायत हासिल है। देश में कोई भी मुद्दा हो सियासत की हरारत बुलंदी पर पहुंच जाती है।
बिना पुख्ता कागजात के अमेरिका से निर्वासित हुए भारतीय नागरिकों पर भी दोनों सदनों में खूब हंगामा हुआ। विपक्ष के हंगामे के बाद वजीरे खारजा ने अमेरिका द्वारा डिपोर्ट किए गए लोगों के आंकड़े सदन के समक्ष रखे तो ज्ञात हुआ कि वर्ष 2009 में 734, साल 2010 में 794 , सन् 2011 में 597 तथा सन् 2012 में 530 भारतीयों को अमेरिका ने अवैध प्रवासी बताकर अपने मुल्क से बाहर किया था। अमेरिका से भारतीय प्रवासियों के निर्वासन का सिलसिला बदस्तूर जारी है। भले ही अमेरिका अपने तल्ख तेवर दिखाकर अवैध प्रवासियों को अपने मुल्क से डिपोर्ट कर रहा है, मगर लोगों से लाखों रुपए हड़प करके डंकी रूट के तहत विदेश भेजने वाले गिरोहों व टै्रवल एजेंटों का धंधा भी बदस्तूर जारी है। विदेश भेजने के नाम पर कई राज्यों में सैंकड़ों एजेंट अपने दफ्तर खोल कर बैठे हैं, जो युवाओं को लुभाकर उनसे लाखों रुपए हड़प करके विदेशों में सुरक्षित पहुंचाने का दावा करते हैं। जबकि अमेरिका से भारतीय युवाओं के निर्वासन ने सभी दावों की पोल खोल दी है। यूएसए सहित कई देशों में भारतीय नागरिक नस्लीय भेदभाव का शिकार होते हैं। विदेशों में पढऩे वाले छात्रों की हत्याएं की जाती हैं। डंकी रूट के तहत विदेशों में गए सैंकड़ों भारतीय युवा कई देशों में सलाखों के पीछे हैं। डंकी रूट डैथ रूट भी साबित हो रहा है। डंकी रूट व कबूतरबाजी जैसी अवैध गतिविधियों से हिंदोस्तान के स्वाभिमान को भी ठेस पहुंच रही है। लेकिन इसके बावजूद युवा वर्ग की बैरूने मुल्कों में तालीम हासिल करने व मुलाजिम बनने की ख्वाहिश बढ़ती जा रही है। भारत का धनाढ्य वर्ग भी बैरूने मुल्कों में बसने के ख्वाब देखता है। इसलिए डंकी रूट जैसे रैकेट के संचालन पर सरकारों, प्रशासन व सुरक्षा एजेंसियों को सख्त रुख अपनाना चाहिए।
युवा वर्ग के बेहतर मुस्तकबिल के लिए देश में रोजगार के अधिक साधन उपलब्ध कराने होंगे। कबूतरबाजी व डंकी रूट के जरिए नौजवानों के भविष्य को अंधकार में धकेलने वाले टै्रवल एजेंटों के खिलाफ सरकारों को कड़ा कानूनी मसौदा अमल में लाना होगा। बहरहाल यूएसए से भारतीय नागरिकों के निर्वासन पर सियासी मंथन होना चाहिए कि तवानाई से लबरेज युवा वर्ग डंकी रूट के तहत विदेश जाने को मजबूर क्यों है? बेरोजगारी की पराकाष्ठा, रोजगार की जुस्तजू, अमीर बनने की चाहत, डॉलर की चमक या मगरबी तहजीब के हसरत-ए-दीदार की कशिश। लिहाजा अपनी जायदाद बेचकर या लाखों रुपए का कर्ज लेकर दूसरे मुल्कों में रोजगार की शिद्दत-ए-तलब रखने वाले नौजवानों को समझना होगा कि डंकी रूट के तहत विदेशों में अमीर बनने की महत्वाकांक्षा बेहद खतरनाक है।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
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