खदेडऩे पड़ेंगे वाहन और पशु

By: Feb 17th, 2025 12:05 am

बेशक आलोचना होगी, लेकिन धर्मशाला की सडक़ों पर खड़े वाहनों को प्रतिघंटा पचास रुपए चुकाने होंगे, लेकिन इसका फायदा यह कि कुछ तो असर होगा। पूरे प्रदेश में वाहन अपने पंजीकरण की लागत में अब मुफ्त में सडक़ों को घेर रहे हैं। सडक़ें चौड़ी होती ही वाहनों के विश्राम से सिकुड़ जाती हैं। यह एक पर्यटक राज्य की तहजीब है, जहां अपने 24 लाख पंजीकृत वाहनों से कहीं अधिक सैलानियों की गाडिय़ां हर साल आती हैं। अटल टनल के भीतर कार्बन की तहें बताती हैं कि वहां महज पर्यटक नहीं वाहनों का जमावड़ा कहर ढहा रहा है। ऐसे में पर्यटन और परिवहन की कल्पनाओं को नया आकार देना पड़ेगा, लेकिन सर्वप्रथम नियमों की फेहरिस्त और परिवहन संचालन के लिए पेट्रोलिंग की व्यवस्था चाहिए। इतना ही नहीं, अगर आज 24 लाख पंजीकृत वाहन हैं, तो आनेवाले वर्षों में यह आंकड़ा पचास लाख के पार भी हो सकता है। ऐसे में कितना चलेंगे और कहां रुकेंगे। पर्वतीय जीवनशैली में आ रहे परिवर्तन और शहरीकरण की जरूरतों ने सडक़ परिवहन के एकमात्र विकल्प को चुनौती दी है। ऐसे में वाहनों के पंजीकरण के साथ एकमुश्त पार्किंग शुल्क अमल में लाना चाहिए, यानी प्रत्येक वाहन से दो से दस हजार की राशि वसूल करके राज्य में पार्किंग अधोसंरचना सुदृढ़ करनी चाहिए। हर शहर में या दो तीन शहरों को जोडक़र परिवहन को आसान बनाने के सार्वजनिक विकल्प अपनाने होंगे। शिमला रोप-वे के साथ परवाणू-शिमला रज्जु मार्ग भविष्य को रेखांकित कर रहे हैं। इसी तरह सुंदरनगर-मंडी, भुंतर-मनाली, कांगड़ा-धर्मशाला-पालमपुर के बीच रज्जु मार्गों की परियोजनाएं शुरू करनी चाहिएं। तमाम पर्यटक, प्रशासनिक व धार्मिक स्थलों से दस किलोमीटर पहले ही बाहरी वाहन रोक कर, इसके आगे रज्जु मार्ग नेटवर्क पुख्ता करने होंगे। प्रदेश सरकार को अभी से प्रयास करना होगा कि वनापत्तियां हासिल करके हर शहर के चारों ओर और हर गांव में कम से कम एक बड़े सामुदायिक मैदान की जगह हासिल करके, इनका इस्तेमाल पार्किंग, सम्मेलन व भीड़ नियंत्रण के रूप में करना चाहिए। हिमाचल में पर्यटन राज्य बनाने की तमाम घोषणाओं के बीच सार्वजनिक या वैकल्पिक परिवहन की दिशा में काम करना पड़ेगा। सरकार ने वर्तमान सैलानी संख्या को 5 करोड़ तक पहुंचाने के इरादे दर्शाए हैं, लेकिन हमने केवल पर्यटक गिने हैं बढ़ते वाहन नहीं। अगर पांच करोड़ पर्यटक आ ही गए, तो वे कम से कम एक करोड़ वाहनों में आएंगे। उस स्थिति में पार्किंग शुल्क लगा कर भी सडक़ें परिवहन लायक नहीं बचेंगी। वैसे सडक़ों पर वाहनों के लिए आफत बने आवारा व वन्य प्राणी पहले ही अपनी उपस्थिति का खौफनाक मंजर बना रहे हैं। धर्मशाला शहर से आवारा पशुओं को खदेडऩे के लिए अब केवल डंडा नहीं जुर्माना भी रसीद होगा। कहना न होगा कि घर में पशु और वाहन रखने की मर्यादा को कानूनी शक्ल देनी पड़ेगी। ऐसा कानून आना चाहिए जहां पशु को आवारा बनाने के लिए जुर्माना भरना पड़े तथा ऐसी तकनीक पर भी अंकुश लगे जिसके कारण पालतु जानवरों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं।

यानी अगर पार्किंग की सुविधाएं बढ़ानी पड़ेंगी, तो आवारा पशुओं को भी शैल्टर होम देने पड़ेंगे। दूसरी ओर वाहन पंजीकरण के वक्त मालिक से यह सुनिश्चित कराया जाए कि उसके पास पार्किंग की माकूल जगह है। इसी तरह पुराने वाहनों के बाजारों ने हिमाचल के परिदृश्य को असहज बना दिया है। यह दायित्व टीसीपी कानून की पैरवी से भी पूरा हो सकता था, लेकिन राजनीति व सामाजिक असहयोग ने इस विभाग को ही गैरजरूरी बना दिया। पर्यटक सीजन में बीड़-बिलिंग या शिकारी देवी जैसे स्थलों पर ट्रैफिक जाम का अर्थ यह भी कि वहां ‘साडा’ की परिकल्पना सिर्फ तमाशा बन गई और अगर बिजली महादेव को रज्जु मार्ग से जोडऩे की परियोजना बनती है, तो जनता अपने छोटे से स्वार्थ का बड़ा अखाड़ा बन जाती है। आश्चर्य यह कि जनता और सियासत के बीच कानून को दरकिनार होते देर नहीं लगती। समाज का कोई भी वर्ग केवल अपने स्वार्थ तक चीखता है, लेकिन अपने सामुदायिक अनुशासन तय नहीं करता। इसी परिप्रेक्ष्य में धर्मशाला की सडक़ें, स्मार्ट रोड और खुले स्थल गैर कानूनी पार्किंग के अड्डे बन गए हैं, लेकिन जनता को अगर अदालत या किसी दफ्तर में जाना है, तो वहां पार्किंग के नाम पर फैली शून्यता पर भी तो गौर होना चाहिए। होना यह चाहिए कि दफ्तरों के साथ आवासीय सुविधाओं को हटाकर वहां पार्किंग व्यवस्था की जाए तथा जहां तक संभव हो बहुत सारे दफ्तरों के लिए एक साथ मिनी सचिवालय बनाए जाएं। कर्मचारियों की आवासीय कालोनियों को शहर से बाहर किसी केंद्रीय स्थल पर ‘कर्मचारी नगर’ के रूप में विकसित किया जाए। धर्मशाला व पालमपुर के बीच डाढ़ के आसपास कर्मचारी नगर विकसित हो सकता है, जबकि शिमला-सोलन के बीच वाकनाघाट में कर्मचारी नगर की स्थापना अब राजधानी क्षेत्र की आवश्यकता है। प्रदेश की छवि के लिए अब सडक़ परिवहन के विकल्प और निजी वाहनों की आवश्यकता को घटाने के लिए नवाचार चाहिए। प्रदेश के प्रशासनिक, व्यापारिक, धार्मिक व पर्यटन शहरों के बाजारों को वाहन मुक्त करने के लिए भविष्य के संकल्प जरूरी हैं। हर शहर को अपनी सांसें दुरुस्त करने के लिए वाहन रहित मार्गों और शहरी ट्रांसपोर्ट नेटवर्क के लिए रज्जु मार्गों तथा पार्किंग के मुकम्मल इंतजाम के साथ-साथ, नागरिक सहभागिता के प्रोत्साहन, सुविधाएं तथा नियम बनाने पड़ेंगे।


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