संविधान, आरक्षण पर सियासत
संविधान में संशोधन संसद में ही किया जा सकता है। यह संसद का विशेषाधिकार है। संविधान में संशोधन विधानसभा के स्तर पर नहीं किया जा सकता। यदि किसी प्रस्तावित बिल को विधानसभा पारित करना चाहती है, तो उसे केंद्र सरकार या राष्ट्रपति को भेजना पड़ता है। यह उनका विशेषाधिकार है कि बिल पारित करें या उसे लौटा दें। संसद में अभी तक 106 संविधान संशोधन पारित किए जा चुके हैं। संविधान पर फिजूल ही सियासत की जा रही है। चूंकि कर्नाटक सरकार ने मुसलमानों को सरकारी ठेकों में 4 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित कराया है, लिहाजा उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने ‘संविधान बदलने’ का जो बयान दिया है, वह बेमानी, असंवैधानिक है। भाजपा ने इसे लपक लिया है। उप मुख्यमंत्री को बर्खास्त करने तक की मांग की गई है। राज्यसभा में सदन के नेता जेपी नड्डा ने यहां तक कहा है कि कांग्रेस संविधान की धज्जियां उड़ा रही है। संविधान में बाबा अंबेडकर ने साफ किया था कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाएगा। अब कांग्रेस उसे बदलने की कोशिश कर रही है। संविधान बचाने की सियासत अब भाजपा के हाथों में है, जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी और अखिलेश यादव के नेतृत्व में एक फर्जी नेरेटिव फैलाया गया था कि भाजपा सरकार में आई, तो संविधान और आरक्षण को खत्म कर देगी। इस नेरेटिव का विपक्षी दलों को अच्छा फायदा मिला और उनकी संसदीय सीटें बढ़ गईं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा पहली बार सामान्य बहुमत हासिल नहीं कर पाई और 240 सीटों पर ही ठहर गई।
संविधान और आरक्षण पर सियासत क्यों और कैसे की जा सकती है, जबकि ये हमारे लोकतंत्र के स्थापित सत्य हैं। संविधान सभा के जरिए भारत का संविधान तय किया गया और संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई। हालांकि आरक्षण सिर्फ 10 साल के लिए ही था, लेकिन संविधान लागू हुए 75 लंबे साल गुजर चुके हैं, लेकिन आरक्षण आज भी जारी है। अब तो आरक्षण एक राजनीतिक हथियार और वोट बैंक का आधार बन चुका है। हमारे पुरखों ने जो संविधान तैयार किया था, उसके अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग, जन्म-स्थान, रंग, नस्ल और मूल वंश के आधार पर भेदभाव प्रतिबंधित किया गया है। अनुच्छेद 16 में पिछड़ों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। सर्वोच्च अदालत ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर रखी है, लेकिन राज्य सरकारें ‘संवैधानिक चालाकी’ खेल कर, पिछड़ों के कोटे में ही, अन्य वर्गों को आरक्षण का प्रस्ताव पारित कराती रही हैं। कर्नाटक में 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण ऐसा ही है। तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने ओबीसी कोटा बढ़ा कर 42 फीसदी कर दिया है। यकीनन ये संविधान का उल्लंघन हैं और सर्वोच्च अदालत इन आरक्षणों को निरस्त कर सकती है। दरअसल यह अपना वोट बैंक पुख्ता करने और बढ़ाने की सियासत भर है। दरअसल अब 2025 में आरक्षण की व्यवस्था की समीक्षा होनी चाहिए। जिनके लिए करोड़ों रुपए के ठेके में आरक्षण तय किया गया है, जाहिर है कि वे इतने सम्पन्न, समृद्ध तो होंगे कि ठेके ले सकें और फिर काम कर सकें। बहरहाल, आरक्षण की समीक्षा ही समाधान है।
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App or iOS App