अब क्या करेंगे किसान?
किसानों का 404 दिन पुराना आंदोलन मात्र चार घंटे में ही कुचल दिया गया। पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर सीमेंट बैरिकेड तोड़ दिए गए, अस्थायी ढांचे, मंच और तंबू उखाड़ दिए गए। अनाज, सब्जियां आदि सडक़ पर बिखेर दी गईं। गुरुवार को 700 से अधिक आंदोलित किसानों को हिरासत में लिया गया था। अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को सेना के नियंत्रण वाले ‘रेस्ट हाउस’ में शिफ्ट कर दिया गया। नाराज डल्लेवाल ने पानी तक पीने से इंकार कर दिया है। यह पूरी कार्रवाई अचानक की गई, लेकिन हम इसे पूर्व-नियोजित मानते हैं। यह पंजाब की मान सरकार की रणनीति भी है। प्रमुख किसान नेता केंद्रीय मंत्रियों के साथ 7वें दौर की बातचीत कर रहे थे। जब वे लौटे, तो सब कुछ बिखर चुका था। पंजाब में ऐसी पुलिसिया कार्रवाई चौंकाती है, विरोधाभास की व्याख्या भी करती है, क्योंकि दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने आंदोलनकारियों को भोजन, पानी, शौचालय की सुविधाएं मुहैया कराई थीं। तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल ने किसानों को जेल में डालने के केंद्र सरकार के आग्रह तक को खारिज कर दिया था। पंजाब में भी ‘आप’ की सरकार है और भगवंत सिंह मान मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिलाने का वायदा किया था। अब ‘आप’ के सामने लुधियाना उपचुनाव की चुनौती है, लिहाजा व्यापारियों और उद्योगपतियों के गंभीर दबाव में किसानों को खदेडऩे का फैसला लेना पड़ा।
पंजाब में फरवरी, 2027 में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। साफ है कि आंदोलित किसानों का तबका तो ‘आप’ के खिलाफ जनमत देगा। वैसे आंदोलन के मद्देनजर किसान संगठन बिखर कर खंड-खंड हो चुके हैं, लिहाजा सभी वार्ताएं बेनतीजा साबित हो रही हैं। चंडीगढ़ की 7वीं बैठक के दौरान किसानों ने एक दस्तावेज-सा पेश किया था, जिसके मुताबिक एमएसपी की कानूनी गारंटी पर 25-30,000 करोड़ रुपए खर्च होने का आकलन किया गया था। बताते हैं कि उस अपुष्ट दस्तावेज पर केंद्रीय वाणिज्य-उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने नाराजगी जताई। किसानों को यह भी दो टूक कहा गया कि यदि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी गई, तो पंजाब से गेहूं और धान की खरीद का कोटा अन्य राज्यों के साथ बांटना पड़ेगा। पंजाब से जो सर्वाधिक सरकारी खरीद की जाती है, वह कोटा भी कम हो जाएगा। बताया जाता है कि इस पर किसान चौंक कर खामोश हो गए। चूंकि एमएसपी पर बेनतीजा बैठकों के ही दौर चल रहे हैं, लिहाजा अब हमारा भी अंदेशा यह है कि मोदी सरकार एमएसपी को कानूनी गारंटी नहीं देगी। कृषि विशेषज्ञ भी इसे संभव और व्यावहारिक नहीं मानते। आंदोलन बिखरने और एमएसपी का संवाद भी, अंतत:, टूटने के बाद यह सवाल मौजू है कि अब किसान क्या करेंगे? अब शंभू के साथ-साथ जींद (हरियाणा) से सटे खनौरी बॉर्डर को भी किसान-मुक्त करा लिया गया है। औद्योगिक संगठनों के आकलन थे कि किसान आंदोलन के कारण इन 404 दिनों में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। हर रोज के करीब 72 लाख रुपए टोल टैक्स का भी नुकसान झेलना पड़ा है। चूंकि सीधा असर पंजाब की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है, लिहाजा करीब 70 लाख लोगों का रोजगार भी प्रभावित हुआ है। बहरहाल, एमएसपी की कानूनी गारंटी का मुद्दा ‘जुमला’ साबित हो सकता है, क्योंकि इस पर देशभर के किसान एकमत-एकजुट नहीं हैं।
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