चिट्टामुक्त देवभूमि का संकल्प लें युवा

नशे की कातिलाना ख्वाहिश ही जीवन को जहन्नुम में तब्दील कर देती है। विश्व के इतिहास में यदि किसी निजाम में कोई तब्दीली हुई है तो उस इंकलाब के पीछे युवा ताकत का अहम रोल रहा है। अत: पहाड़ की शांत शबनम से चिट्टे जैसी महामारी को रुखसत करने में किसी अदालत, कानून, हुकूमत, हकीम, हुक्काम, तबीब व दस्तगीर से बड़ा अफजल किरदार युवावर्ग ही अदा कर सकता है…

‘वो एक परिंदा जो सब पर बोझ था, एक शाम जब लौटा नहीं तो शाखों को उसी का इंतजार था’। चिट्टे जैसे कातिल नशे को आब-ए-हयात मान कर सेवन करके मौत की आगोश में समाने वाले नवयुवकों के अभिभावकों की बेबस निगाहें कुछ ऐसा ही मंजर बयान कर रही हैं। मेहनतकश पहाड़ के यौवन को न जाने किन नामुराद लबों की बद्दुआ लग गई कि अनुशासित सैन्य पृष्ठभूमि का युवावेग आत्मघाती चिट्टे की खौफनाक लज्जत में मदहोश हो रहा है। मौजूदा वक्त में नशा उजड़े चमन की एक दर्दभरी हिकायत बन चुका है। नशे के जहरीले शजर महकते गुलशन को भी वीरान कर देते हैं। नशे की सुनामी से उजड़े गुलिस्तां को आबाद होने में मुद्दतें गुजर जाती हैं, मगर प्राणघातक चिट्टा हजारों युवाओं की निगाहों का हबीब बन रहा है। नतीजतन अभिभावकों की चश्म-ए-पलक के सुनहरे अरमान खाक हो रहे हैं। अमन व अदब की कहकशां सजने के लिए विख्यात पहाड़ों पर नशे की बज्म सज रही हैं। पर्यटन की आड़ में सूबे की वादियों में नशा पनप रहा है। जुल्मत-ए-शब के वक्त पहाड़ों पर रेव पार्टियों की अंजुमन सजती है। वीरभूमि की दमदार शिनाख्त वाले राज्य की मुकद्दस धरा पर नशाखोरी, गैंगस्टर व माफिया जैसे बेगैरत लफ्ज सुनने को मिलेंगे, पहाड़ की जवानी चिट्टे की तलबगार बन जाएगी या आस्था व पर्यटन की मेजबानी करने वाला सूबा चिट्टे का मरकज बनेगा।

शायद भोली-भाली विरासत वाले पहाड़ी राज्य के बुजुर्गों ने भी इस बात का तसव्वुर नहीं किया होगा। सभ्य समाज का कोई भी नागरिक बर्बादी की दास्तान लिखने वाली नशाखोरी को बर्दाश्त नहीं कर सकता, लेकिन मादक पदार्थों की हलावत व जहरनुमां ड्रग्स की ओवरडोज से कई घरों के चश्म ओ चराग बुझ रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा बरामद किए जाने वाले नशीले पदार्थों में सर्वाधिक बरामदगी चिट्टे की है। बाहरी राज्यों से ताल्लुक रखने वाले नशा तस्कर जिनकी नशा सप्लाई के तार विदेशों तथा अंतरराष्ट्रीय सरहद के पार पाकिस्तान से जुड़े हैं, हिमाचल की वादियों में पनाह ले चुके हैं। चिट्टा तस्करी में मुल्लविश कई कुख्यात गैंग का सुरक्षा एजेंसियां पर्दाफाश कर रही हैं। चिट्टे के अवैध कारोबार में महिलाओं व नाबालिगों का इस्तेमाल हो रहा है। चिट्टा तस्करी के इल्जाम में कई महिलाएं सलाखों के पीछे हैं तथा कई सुरक्षा एजेंसियों के राडार पर हैं। आम लोगों से लेकर कई सरकारी मुलाजिम व उच्च स्तर के अधिकारी भी नशे की अवैध तिजारत में हाथ आजमा रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के अहलकारों के दामन पर भी नशा तस्करी के बदनुमां दाग लग रहे हैं। मजदूर वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग व कई चर्चित हस्तियों की मजलिस में नशा जीनत बन रहा है। नशाखोरी की मुनादी बर्बादी का फतवा जारी कर चुकी है। राज्य की कई पंचायतों ने भी नशे के खिलाफ बगावती मोर्चा खोल दिया है। मगर हकीकत यह भी है कि देश का कोई भी चुनाव नशे के बिना सम्पन्न नहीं होता। आब-ए-तल्ख की बेहताशा तिजारत व बेगुनाह लोगों को मौत की नींद सुलाने वाली अवैध शराब का सबसे ज्यादा इस्तेमाल चुनावी दौर में ही होता है। अलबत्ता देर आए दुरुस्त आए। बेशक पंचायतों द्वारा नशाखोरी के खिलाफ इत्तेहाद का पैगाम व बेदारी का अभियान काबिले तारीफ है। नशाखोरी में मुल्लविश लोगों को राज्य की कई पंचायतें सरकारी सुविधाओं से महरूम करने का फरमान भी जारी कर चुकी हैं।

मगर किसी मुजरिम का सामाजिक बहिष्कार करना या उसके परिवार को सरकारी सुविधाओं से महरूम करना नशाखोरी जैसे संवेदनशील मसले का स्थायी समाधान नहीं है। जिन कांटों की परवरिश गुलों की हिफाजत के लिए हुई हो यदि उन्हें गुलिस्तां से बाहर निकाल दिया जाएगा तो गुलों की हिफाजत पर गर्दिश के बादल मंडरा जाएंगे। चूंकि गुलशन की आबरू गुलों से ही होती है। लिहाजा वक्त की निजाकत को भांपकर छाया देने वाले शजरों की कद्र का मिजाज पैदा करना होगा। अन्यथा आफताब की तल्ख तपिश सबको सहन करनी पड़ेगी। भावार्थ यह है कि समाज के सभी वर्गों को चिट्टे जैसी महामारी के प्रति अजनबी वाले नुक्ता-ए-नजर में तब्दीली लाकर कातिल नशे की जद में आ रही पहाड़ की जवानी को बचाने की नैतिक जिम्मेवारी निभानी होगी। पहाड़ के गुलिस्तां में नशे के शजर तैयार करने वाले बागबां की शिनाख्त करके नशाखोरी का पूरा नेटवर्क ध्वस्त करना होगा। युवा वर्ग की जिंदगी के सबसे सुनहरे लम्हें व हुस्न ओ शबाब तथा बेहतरीन वक्त यौवन यदि नशे का गुलाम बन जाए तथा अभिभावक डिप्रेशन में आकर अजियत व दुश्वारियों के दौर से गुजरें, तो सूबे के बेहतर मुस्तकबिल की तवक्को निश्चित रूप से नहीं की जा सकती।

आगाज-ए-जवानी में अजीम ख्वाब देखने वाली शाइस्ता निगाहें यदि नशे की ख्वाहिशमंद बन जाएं तो अभिभावकों की बंदगी के चिराग बेअसर हो जाते हैं। मुल्क का यौवन सिंथेटिक ड्रग्स की दलदल में फंस जाए या जवानी स्मैक व चिट्टे के धुएं में सुलग जाए, तो इंतकाल से पहले एक आसामयिक वफात हो जाती है। अजाब भोगने के लिए जहन्नुम की दहलीज पार करने की जरूरत नहीं पड़ती। नशे की कातिलाना ख्वाहिश ही जीवन को जहन्नुम में तब्दील कर देती है। विश्व के इतिहास में यदि किसी निजाम में कोई तब्दीली हुई है तो उस इंकलाब के पीछे युवा ताकत का अहम रोल रहा है। अत: पहाड़ की शांत शबनम से चिट्टे जैसी महामारी को रुखसत करने में किसी अदालत, कानून, हुकूमत, हकीम, हुक्काम, तबीब व दस्तगीर से बड़ा अफजल किरदार युवावर्ग ही अदा कर सकता है। लिहाजा पहाड़ के यौवन को चिट्टे के अजाब से बचाने का हलफ भी युवाओं को ही उठाना पड़ेगा। देवभूमि को चिट्टामुक्त करने के लिए युवाओं को चिट्टा विरोधी तहरीक का आगाज जोरदार ताकीद के साथ करना होगा। देवभूमि व पर्यटन के लिए विख्यात सूबे को ड्रग्स टुरिज्म की दारुल हुकूमत बनने से रोकने के लिए हर प्रदेशवासी को सहयोग करना होगा। तभी प्रदेश नशामुक्त होगा।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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