हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा 102

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-102
हिमाचल का कहानी संसार
विमर्श के बिंदु
1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष
लेखक का परिचय
नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।
डा. हेमराज कौशिक
अतिथि संपादक
मो.-9418010646
-(पिछले अंक का शेष भाग)
‘यथार्थ का सामना’ कहानी में एक स्त्री के अपने माता-पिता और सास-ससुर के प्रति भिन्न दृष्टिकोण को सामने लाया है। जब वह यथार्थ का सामना करती है तो उसका अहंकार, अपने-पराये का दृष्टिकोण परिवर्तित हो जाता है। ‘अधूरा सपना’ कहानी में कहानीकार ने लाला मदन मोहन और अध्यापक राजगोपाल के संदर्भ में यह स्थापित किया है कि जो लोग दूसरे के मार्ग में कांटे बिछाते हैं, उनके रास्ते में स्वत: ही शूल बिछ जाते हैं। कांटे तो निकल भी जाते हैं, पर ईश्वर के बिछाए हुए शूल इस जन्म में भी और अगले जन्म में भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते। शिक्षक अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में समर्पित करता है और लाला मदन मोहन जैसे कुटिल बुद्धि के लोग ईष्र्या द्वेष में अपना जीवन नष्ट करते हैं और अंतत: बुरी तरह परास्त होते हैं। ‘स्वर्ण कन्या’ लिंग भेद की कहानी है। शक्ति चंद राणा ‘शक्ति’ की कहानियों की संवेदनाभूमि प्रमुख रूप में माननीय संवेदनाओं के शून्य होने और सामाजिक विषमता में पिसते वर्ग की पीड़ा को मुखरित करती है। उनकी कहानियों में उनका विचार पक्ष प्रमुख रूप में उभरा है। प्रत्येक कहानी में विचार पक्ष कथ्य का अवयव बनकर मूर्तिमान हुआ है। कहानियां समाज की रीति नीतियों, कुरीतियों और विकृतियों को अनावृत करती हुई व्यावहारिक सोच निर्मित करती हैं। ये कहानियां सामंतीय मानसिकता, अभिजात्य अहंकार और श्रमिक के शोषण की पीड़ा को मुखरित करती हैं। शक्ति चंद राणा की कहानियां नैतिकता की तलाश करते हुए सामाजिक संरचना में सामाजिकता के अर्थ विवृत करती हैं। कथ्य, विषय और भाषा के सम्यक निर्वाह के साथ उनकी कहानियों की सरसता पाठक को आकर्षित करती है। इसी अवधि में हेमराज ठाकुर का कहानी संग्रह ‘कथा और कहानियां’ (2020 ) शीर्षक से प्रकाशित है।
पीसी कौंडल ने साहित्य की विविध विधाओं- उपन्यास, कहानी, कविता आदि में सृजन किया है। एक संपादक के रूप में राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका हिमखंड का संचालन और संपादन भी किया है। वे विविधमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनके विवेच्य अवधि से पूर्व ‘अनोखा मिलन’ (1990) और ‘संदेह की दीवार’ (1996) शीर्षक से दो कहानी संग्रह प्रकाशित हुए थे। ‘अनोखा मिलन’ में उनकी सात कहानियां- कमाई का फल, अनोखा मिलन, गरीबी, पछतावा, कीमती फूल, कल्पना और अपंगता संगृहीत हैं। ‘संदेह की दीवार’ शीर्षक कहानी संग्रह में भी उनकी सात कहानियां- बदलाव, संदेह की दीवार, संकट, दुख की आग, षड्यंत्र, फर्र्ज और परिस्थितियां संगृहीत हैं। पीसी कौंडल मूलत: ग्रामीण जीवन के कथाकार हैं। उनकी कहानियों में निकट सामाजिक परिवेश से संबद्ध जीवन की विसंगतियों और विषमताओं का निरूपण है। इन कहानियों के माध्यम से कहानीकार ने उन ज्वलंत मुद्दों को उठाया है जिनका मुख्य केंद्र श्रमिक वर्ग और हाशिए का समाज है। उनकी कहानियों में निर्धनता, श्रमिक वर्ग के संघर्ष और हाशिए के वर्ग की पीड़ा और शोषण के विविध रूपों की व्यंजना है। कहानियों का प्रतिपाद्य सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों के यथार्थ को रूपायित करता है। ये कहानियां कहानीकार पीसी कैंडल के संवेदनात्मक अनुभवों की आंच पर पक कर सहज, स्वाभाविक और सरस रूप में मूर्तिमान हुई हैं। भाषा सहज, स्वाभाविक और सरस रूप में पाठक को आकर्षित करती हैं। विविध कहानियों में पात्रों के संवाद कहानी की वस्तु को गतिशील बनाते हैं। कहानियों में पात्रों के संवाद प्रमुख रूप में उभर कर पात्रों के अंतर्बाह्य जीवन को रूपायित करते हैं। इन कहानियों के माध्यम से कहानीकार ने मुखौटाधारी लोगों के यथार्थ को सामने लाया है।
इक्कीसवीं शताब्दी के ढाई दशकों में अनेक कहानीकार हैं जिनके स्वतंत्र कहानी संग्रह तो नहीं आए हैं, परंतु विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी सृजन कर रहे हैं। इस अवधि में तेजिंद्र शर्मा की सिर्फ एक रात (विपाशा 2004), अनाम यात्रा (विपाशा 2012), उड़ी चलो हंस और देश (विपाशा 2019) कहानियां प्रकाशित हैं। अशोक गौतम की अपनी शर्त (प्रथम इंपैक्ट 2009), तेरी लंबी उड़ारी बे (हिमप्रस्थ 2010), बिजी यही है (सोमसी 2020), आदमी अभी जिंदा है (आजकल 2023), शगुन का लिफाफा, खुशी आदि कहानियां प्रकाशित हैं। राजीव त्रिगर्ती की निर्वासन (सेतु 2010), दिशाहीन (जनपथ 2011), कुत्ता भौंकता है (इरावती 2008), ह्रदय श्री का न्यायालय (स्वाधीनता संदेश 2013), अस्तित्व (लोक गंगा 2013) कहानियां प्रकाशित हैं। प्रदीप कुमार शर्मा की ऋण मुक्ति (सेतु 2008), मर्यादा (शुभ तारिका कहानी विशेषांक 2009), कीमत (सेतु 2010), पिता (शुभ तारिका 2011), अम्मा (शुभ तारिका 2017), पाठक की लाठी, दादी कहानियां प्रकाशित हैं। पवन चौहान ने साहित्य की विविध विधाओं में सृजन किया है। इक्कीसवीं शती में निरंतर कहानी सृजन कर रहे हैं और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनकी कहानियां प्रकाशित हैं। उनकी पहली कहानी ‘शारदा’ (गिरिराज, अक्टूबर 2011) में प्रकाशित हुई। इसके अनंतर मातृत्व (गिरिराज 2002), अंधविश्वास (गिरिराज 2003), बिंदली (गिरिराज 2003), चोर (विपाशा 2004), पश्चाताप (हिमप्रस्थ 2004), साथ (हरिगंधा 2004), ट्रैक पर दौड़ती एक कहानी (विपाशा 2005), लौट आई खुशियां (हरि गंधा 2006), इंतजार (हिमप्रस्थ 2010), लॉटरी (साहित्य अमृत 2011), कांटा (विपाशा 2011), परिवर्तन (हिमप्रस्थ 2012), चोर (वर्तमान साहित्य 2013), असली तस्वीर (शैल सूत्र 2013), शारदा (शिराजा 2013), लौट आई खुशियां (कथा समय 2013), फैसला (हरिभूमि 2014), अंतिम सांस का दर्द (मधुमती 2016), धोखा ही धोखा (यथावत 2017), इंतजार (विभोम स्वर 2017), छाता (समहुत 2017), इस बार देरी नहीं (कथाक्रम 2018) और गिरीश हंस दिया (वीणा 2018), भीनी भीनी महक (स्त्रवंती 2018), बारिश (अहा! जिंदगी 2021), प्रत्याशा (जनपथ 2022), गैप (गाथांतर अंक 10), फिंगर प्रिंट्स (वागर्थ 2022) कहानियां प्रकाशित हैं। सूरत ठाकुर की गडरिया और देवता (हिमप्रस्थ 2014), नामर्द (सेतु 2023), खोया हुआ सुख (हिमप्रस्थ 2016), एहसास (विपाशा 2021), उल्टे पांव (व्यंग्य यात्रा अंक 84) तथा गिरिराज में भी उनकी पांच कहानियां छपी हैं।
ईशिता आर गिरीश की वह रात (हिमप्रस्थ 2004), आत्महनन (दिव्य हिमाचल), एक टके का आदमी (दिव्य हिमाचल), बिल्ली का बच्चा, हॉय डूड (पहल), मेंढकी (नया ज्ञानोदय), एक पिकनिक पापाओं के नाम (अभिनव मीमांसा), सुंगसुरई और सपनों का ट्रांसमिशन, लाले की नूह (हिमाचल मित्र), आखिरी भूल, धर्मा चमारन, चतुर रंग की नायिका, खिलौने वाली अलमारी कहानियां प्रकाशित हैं। ईशिता आर गिरीश की कहानियों में गहन मानवीय संवेदना की अभिव्यंजना है। अरुण शर्मा की विरासत (शिखर), बस्तीराम (इरावती), सांड की प्रेम गाथा, छिट महल, स्कैंडल का कुत्ता, नरक आदि कहानियां प्रकाशित हैं। उनकी कहानियों में प्रशासन तंत्र की विकृतियां, विस्थापन के कारण नागरिकता के प्रश्न की स्थितियां, पशु प्रेम और अभावग्रस्त जन की दुश्वारियों एवं पीड़ा की व्यंजना है। निधि भारद्वाज की धुआं (2001), स्वप्ना (2002), पानी रे पानी (2003), मुक्ति (2003), सहयात्री (2004), चक्रव्यूह (2004) कहानियां समय-समय पर हिमप्रस्थ में प्रकाशित हैं। उनकी कसक (2006), महानगर का सफर (2009), एहसास जो कभी नहीं मरते (2010) विपाशा में प्रकाशित हैं। कृष्ण चंद महादेविया की कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। विद्रोही शीर्षक से उनकी पहली कहानी दैनिक वीर प्रताप में फरवरी 1981 में प्रकाशित हुई थी। उसके पश्चात दाग, एक और सुबह, खोटा, छोटी सी भूल, हत्या से पहले, वापसी, बेसमझ लोग, इंतजार, खामोशी का जहर, उस जगह का प्यार, दूसरी बीबी, प्यार की प्यास, आग जल उठी, परख, सासू की सीख, देवा की प्रेम कहानी, कीड़ा डॉक्टर, जूटा और दरवाजा, एक नई सुबह प्रकाशित हुईं। विवेच्य अवधि में लाजवंती (दिव्य हिमाचल 2003), सपनों का महल (पंजाब केसरी 2009), दोस्त (दैनिक ट्रिब्यून 2009), खतरनाक (दिव्य हिमाचल 2009), जिंदा लाश (दिव्य हिमाचल 2009), आप भी झूठे हैं भैया (दैनिक जागरण 2009), औरत अभी जिंदा है (सबसे पहले 2010), एक थी सलमा (समाज धर्म 2010), मैं आपको नहीं जानती (दैनिक ट्रिब्यून 2010), आ बैल मुझे मार (फोकस हिमाचल 2010), मितरा दी सलाह (गिरिराज 2012), लाजवंती (हिमप्रस्थ 2013), शैतान से मुक्ति (सरस सलिल 2014), औरत बुरी नहीं होती (सरस सलिल 2013), बकरा (सरस सलिल 2015), एक नई सुबह (समकालीन भारतीय साहित्य 2015), पेटू बीज्जू (हिमप्रस्थ 2016), जंगल के जीव (मधुमती 2016), घमंडी का सिर नीचा (मधुमती 2016), गिरगिट (साहित्य सरस्वती 2017), किरण (शीराजा 2018), मिलन (हिमप्रस्थ 2017) कहानियां प्रकाशित हैं। सरोज वशिष्ठ की दुर्घटना (विपाशा 2001), निरंजन देव शर्मा की ‘हर शनिवार की रात’ (विपाशा 2003), कमल हमीरपुरी की व्यवस्था (हिमप्रस्थ 2013), डमरु (सोमसी 2016), जय करण की दहलीज (हिमप्रस्थ 2017), वापसी (विपाशा 2021), सतीश रत्न की वह कौन थी (हिमप्रस्थ 2014), कमल हमीरपुरी की व्यवस्था (हिमप्रस्थ 2013), द्विजेंद्र द्विज की युवा नरेश (हिमप्रस्थ 2016), जीतेंद्र अवस्थी की मिक्कड़ बोबो (हिमप्रस्थ 2017), लंगड़दीन (हिमप्रस्थ 2022), सुरेश शांडिल्य की चोर (हिमप्रस्थ 2012), खेल खेल में (शिखर 2012), जगदीश बाली की अपरा (हिमाचल दस्तक 2018), रूबल नहीं आया (हिमाचल दस्तक 2020), पृथीपाल सिंह की हमसफर (आधारशिला साहित्यकम), डिनर सेट (सेतु 2023) प्रकाशित हैं। रवींद्र कुमार शर्मा की गिरिराज के अंकों में उनकी कहानियां, काका भगवान कब ठीक होंगे (2022), लाइफ सर्टिफिकेट (2022), पापा आगे वाली सीट पर मैं बैठूंगी (2023), गुलाब की झाझरी (2023), पुत्र मोह महंगा पड़ा (2024), पत्ता गोभी (2024) प्रकाशित हैं। उनकी कथनी और करनी (2021), अपनापन (2024), आखिरी सेल्यूट (2024) इंदौर समाचार में तथा टटू चला गया (हिमाचल दस्तक 2023) कहानियां प्रकाशित हैं। अशोक दर्द की अपने हिस्से का उजाला (2024), अतुल कुमार की दाह संस्कार (2024), पंकज दर्शी की बिसरा हल्दून, जय नारायण कश्यप की पहाड़ पिघलता नहीं (हिमप्रस्थ 2020), निश्छल प्यार की परिणति (मधुमती 2025), जगदीश कश्यप की उम्मीद (2020), एकाकी जीवन (2024) और कुंवारी विधवा (2025) कहानियां हिमप्रस्थ में प्रकाशित हैं।
-(शेष भाग अगले अंक में)
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