रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन की नई अहमियत

इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि इस समय देश का अनुमानित खाद्यान्न उत्पादन 33 करोड़ टन से अधिक है, जबकि भंडारण क्षमता कुल उत्पादन का आधे से भी कम है, ऐसे में अनाज बर्बाद होने से बचाने के लिए अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करनी होगी…
इस समय भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित नए द्विपक्षीय कारोबार समझौते (बीटीए) के तहत भारत के द्वारा अमेरिका को किए जाने वाले कृषि उत्पादों के निर्यात के मद्देनजर टैरिफ कटौती के लिए सहमति के संकेत उभरकर दिखाई दे रहे हैं। भारत ने अमेरिका को बादाम, अखरोट, क्रैनबेरी, पिस्ता और दाल जैसे कृषि उत्पादों पर शुल्क में कटौती पर सहमति के संकेत दिए हैं। ऐसे में भारत के खाद्यान्न और खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्यात के मौके अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न देशों में बढ़ते हुए दिखाई दे सकेंगे और भारत इससे लाभान्वित होगा। गौरतलब है कि जिस तरह पांच साल पहले कोरोना से जंग में देश के खाद्यान्न भंडार देश के हथियार बन गए थे, उसी प्रकार इस समय अमेरिका के टैरिफ की मार के साथ-साथ शुल्क व गैर शुल्क बाधाओं को कम करने से होने वाली किसी भी प्रकार की हानि को कम करने के मद्देनजर देश में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन और रिकॉर्ड खाद्य प्रसंस्करण उत्पाद एक मजबूत हथियार दिखाई दे रहे हैं। चूंकि इस वर्ष 2025 में वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न उत्पादन में कमी के आकलन प्रस्तुत हुए हैं, ऐसे में ट्रंप के टैरिफ से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में होने वाली 3 से 3.5 फीसदी हानि की बहुत कुछ भरपाई खाद्यान्न और कृषि प्रसंस्करण के निर्यात से भी की जा सकेगी। निश्चित रूप से देश में बढ़ता खाद्यान्न उत्पादन और मजबूत होती ग्रामीण आर्थिकी देश की आर्थिक शक्ति बन गई है। प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक इस समय भारत दुनिया की नई खाद्य टोकरी और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के प्रतिबद्ध देश के रूप में रेखांकित हो रहा है। हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में कहा कि इस समय देश में खाद्यान्न के भंडार भरे हुए हैं और खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है।
यदि हम वर्ष 2024-25 के लिए जारी मुख्य कृषि फसलों (खरीफ एवं रबी) के उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान की ओर देखें तो पाते हैं कि चावल, गेहूं, मक्का, मूंगफली एवं सोयाबीन के साथ-साथ तुअर और चना के भी रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद जताई गई है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि देश में कुल रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन 33 करोड़ टन से भी अधिक होने का अनुमान है। इसी तरह फल और सब्जी उत्पादन में भी तेज वृद्धि होगी। इतना ही नहीं वर्ष 2024-25 की सकल घरेलू उत्पाद में (जीडीपी) में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के योगदान में 4.6 फीसदी वृद्धि हो सकती है। पिछले वर्ष यह वृद्धि दर 2.7 फीसदी थी। इस तरह जहां देश में खाद्यान्न की कमी से खाद्यान्न अधिशेष की ऊंचाइयां देश के लिए लाभप्रद बन गई हैं, वहीं भारत का खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोससिंग) सेक्टर भी ट्रंप के टैरिफ से जंग में भारत की आर्थिक ताकत दिखाई दे रहा है। यह एक ऐसा उभरता उद्योग है जिसमें पिछले 10 वर्षों में 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हुआ है। देश के कुल कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13.7 से बढक़र करीब 24 प्रतिशत हो गई है। इस परिप्रेक्ष्य में पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) की खाद्य प्रसंस्करण पर प्रकाशित शोध अध्ययन रिपोर्ट उल्लेखनीय है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के खाद्य प्रसंस्करण का क्षेत्र वर्ष 2023 में 307 अरब डॉलर का था, यह तेजी से बढक़र वित्त वर्ष 2030 तक 700 अरब डॉलर, वर्ष 2035 तक 1100 अरब डॉलर, वर्ष 2040 तक 1500 अरब डॉलर और वर्ष 2047 तक 2150 अरब डॉलर तक की ऊंचाई पर पहुंचने की उम्मीद है। पीएचडीसीसीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि भारत से कृषि और खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर से निर्यात में तेज वृद्धि हो रही है। वर्ष 2013-14 में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों का जो निर्यात 39 अरब डॉलर था, वह बढक़र वर्ष 2022-23 में 52 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से निर्यात लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2030 तक 125 अरब डॉलर, वर्ष 2035 तक 250 अरब डॉलर, वर्ष 2040 तक 450 अरब डॉलर और वर्ष 2047 तक 700 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। नि:संदेह ट्रंप की टैरिफ चुनौती का मुकाबला करने की डगर पर भारत के लिए कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन महत्वपूर्ण बन गया है।
कृषि के बुनियादी ढांचे और निवेश पर पिछले एक दशक में रणनीतिपूर्वक ध्यान दिए जाने के अच्छे परिणाम मिले हैं। सूचना प्रौद्योगिक तक पहुंच में वृद्धि ने ग्रामीण-शहरी दूरियों में कमी ला दी है। भारतीय किसान तेजी से डिजिटल पेमेंट, फसल बीमा और बैंकों से औपचारिक ऋण की सुविधाओं की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। ग्रामीण लोगों की क्रयशक्ति बढऩे, डिजिटल उपयोग में वृद्धि, ग्रामीण भारत के विकास के लिए शुरू योजनाओं से ग्रामीणों की बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच, गांवों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार, ग्रामीण भारत के लोगों की पूरक आय में वृद्धि आदि ऐसे कारण हैं, जिन्होंने भारत की ग्रामीण आर्थिकी को मजबूत बनाया है। खास बात यह भी है कि 24 फरवरी 2025 तक पीएम किसान सम्मान निधि के जरिए देश के कोई 9.8 करोड़ से अधिक किसानों को 19 किस्तों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से 3.68 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी जा चुकी है जिससे उन्हें खेती-किसानी से जुड़े खर्चों में राहत मिल रही है। इतना ही नहीं, 24 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा ग्रामीण आबादी क्षेत्रों में संपत्ति मालिकों को ‘अधिकारों का रिकॉर्ड’ प्रदान करके ग्रामीण भारत के आर्थिक परिवर्तन को गति देने के उद्देश्य से शुरू की गई पीएम स्वामित्व योजना की अहमियत दिखाई देना शुरू हो गई है। फरवरी 2025 तक देश के छह लाख गांवों में से आधे से अधिक गांवों का सर्वे पूरा हो चुका है, और सवा दो करोड़ ग्रामीणों को प्रॉपर्टी कार्ड मिल चुके हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिलेगी और 100 लाख करोड़ रुपए से अधिक की आर्थिक गतिविधियों का मार्ग भी खुल गया है। निश्चित रूप से ट्रंप के टैरिफ से इस समय देश की आर्थिकी को होने वाले किसी भी नुकसान की भरपाई के साथ भविष्य में भी अन्य किसी भी वैश्विक आर्थिक चुनौती का मुकाबला करने के लिए सरकार के द्वारा कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संवारने की डगर पर लगातार तेजी से आगे बढऩा होगा।
सरकार के द्वारा कृषि विकास दर बढ़ाने, खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने, खाद्य उत्पादों की बर्बादी रोकने तथा किसानों के लिए पर्याप्त खाद्यान्न भंडारण की सुविधाओं पर ध्यान दिया जाना होगा। चूंकि भारत में अभी भी अनाज, दाल व तिलहन के उत्पादन का स्तर तो मौसम पर निर्भर ही होता है और कभी जरूरत से कम तो कभी जरूरत से ज्यादा बारिश इनके उत्पादन के सारे गणित को गड़बड़ कर देती है, ऐसे में क्षेत्रवार और फसलवार आधार का व्यापक अध्ययन करते हुए सिंचाई की व्यवस्था की नई नीति तैयार करना लाभप्रद होगा। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि इस समय देश का अनुमानित खाद्यान्न उत्पादन 33 करोड़ टन से अधिक है, जबकि भंडारण क्षमता कुल उत्पादन का आधे से भी कम है, ऐसे में अनाज बर्बाद होने से बचाने के लिए देश में 2028 तक सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना के तेजी से कारगर क्रियान्वयन पर ध्यान देना होगा। हम उम्मीद करें कि भारत के द्वारा अमेरिका के साथ पारस्परिक शुल्क पर सहमति से आगे बढऩे की रणनीति भारत के लिए लाभप्रद होगी। साथ ही ट्रंप के टैरिफ के मुकाबले भारत का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन, बढ़ता खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और बढ़ता कृषि व खाद्य प्रसंस्करण निर्यात भारत के लिए एक मजबूत और असरकारक आर्थिक हथियार के रूप में उपयोगिता देते हुए दिखाई देगा।
डा. जयंती लाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
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