ऑपरेशन मेघदूत के गुमनाम जांबाजों को नमन

सन् 1977 के दौर में ‘हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल’ के कमांडर रहते ‘कर्नल नरेंद्र बुल’ ने सियाचिन के साल्टोरो रेंज, जस्कर व काराकोरम जैसे दुर्गम क्षेत्रों में पर्वतारोहण को अंजाम देकर पाकिस्तान के नापाक मंसूबे भांप लिए थे। कर्नल बुल के साहस भरे पर्वतारोही अभियानों से ही आपरेशन मेघदूत को अधिकृत किया गया था…

चार दशक पूर्व 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ‘आपरेशन मेघदूत’ को अंजाम देकर 22 हजार फीट की बुलंदी पर मौजूद सियाचिन ग्लेशियर के बिलाफोंड लॉ व सियाला जैसे दुर्गम क्षेत्रों पर तिरंगा फहरा कर अदम्य साहस का ऐतिहासिक मजमून लिख डाला था। दरअसल सन् 1947-48 में भारत-पाक सेनाओं के दरम्यान कश्मीर युद्ध की जंगबंदी के बाद ‘अक्वाम-ए-मुत्तहिदा’ की मध्यस्थता से जुलाई 1949 को हुए ‘कराची समझौते’ के तहत मुकर्रर की गई ‘युद्धविराम रेखा’ का अंतिम बिंदू ‘एनजे 9842’ सुनिश्चित किया गया था। लेकिन एनजे 9842 के आगे हिमालय की काराकोरम रेंज में मौजूद बर्फ का रेगिस्तान कहा जाने वाला सियाचिन ग्लेशियर अधूरा रह गया था। पाक सेना ने ‘बुर्जिल फोर्स’ तैयार करके ‘आपरेशन अबाबील’ मंसूबे के तहत 17 अप्रैल 1984 को सियाचिन पर पेशकदमी की योजना बनाई थी। मगर भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को विश्व के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन के उपखंडों पर तिरंगा ्रफहरा कर अपनी मौजूदगी सुनिश्चित कर दी थी। सन् 1984 के आपरेशन ‘मेघदूत’ में सियाचिन पर कब्जा करने में सेना की ‘चार कुमाऊं’ व ‘19 कुमाऊं’ बटालियन तथा ‘लद्दाख स्काउट’ के जवानों ने अनुकरणीय बहादुरी का परिचय दिया था। जब पाक हुक्मरानों को सियाचिन में भारतीय सेना की मौजूदगी का एहसास हुआ तो पाक सेना ने भी सियाचिन पर कब्जा करने के लिए सैन्य अभियान शुरू कर दिए।

शुरुआती दौर में भारतीय सेना को सियाचिन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मौके की नजाकत का लाभ उठाकर पाक सेना ने नवंबर 1986 में बिलाफोंड ला के नजदीक ‘कायद पोस्ट’ नामक सैन्य चौकी कायम कर ली। भारतीय सेना की ‘आठ जैकलाई’ बटालियन के बहादुर जवानों ने बेहद जोखिम भरे ऑपरेशन को अंजाम देकर 26 जून 1987 को कायद चौकी पर मौजूद पाक ‘स्पेशल सर्विस ग्रुप’ के सैनिकों को हलाक करके तिरंगा फहरा दिया था। उस सैन्य अभियान में सूबेदार ‘बाना सिंह’ को ‘परमवीर चक्र’ तथा मेजर ‘वरिंदर सिंह मिन्हास’ को ‘वीर चक्र’ से नवाजा गया था। उस खतरनाक मिशन में 29 मई 1987 को बलिदान हुए लेफ्टिनेंट ‘राजीव पांडे’ को ‘वीर चक्र’ ‘मरणोपरांत’ से अलंकृत किया गया था। कायद पोस्ट अब ‘बाना पोस्ट’ के नाम से जानी जाती है। सन् 1989 में सियाचिन में ‘आपरेशन आईबेक्स’ के दौरान पाक सेना पर जोरदार हमले में ‘डोगरा रेजिमेंट’ के हिमाचली शूरवीर ‘सरदार सिंह’ को अदम्य साहस के लिए ‘वीर चक्र’ से सरफराज किया गया था। सन् 1992 में सियाचिन के ‘चुलुंग’ में पाक सेना ने भारतीय चौकियों पर हमला किया। लेकिन भारतीय सेना ने शिद्दत भरा पलटवार करके पाक हमलावर दस्ते को हलाक करके पाक ‘फोर्स कमांडर नार्दर्न एरिया’ ब्रिगेडियर ‘मसूद नबीद अनवारी’ को उनके हैलीकॉप्टर सहित मार गिराया था। सियाचिन पर कब्जा करने का सफर सेना के लिए आसान नहीं रहा है। 29 मई 1984 को सियाचिन में गश्त के दौरान 19 कुमाऊं के लेफ्टिनेंट ‘प्रदीप सिंह पुंडीर’ सहित 20 जवान बर्फीले तूफान की चपेट में आकर ग्लेशियर की आगोश में समा गए थे, जिनमें 14 सैनिकों के शव कुछ दिनों बाद बरामद हुए थे। एक सैनिक ‘चंद्रशेखर’ का पार्थिव शव 38 वर्षों बाद सन् 2022 में मिला था। बाकी पांच सैनिकों के शव आज तक लापता हैं। चंद्रशेखर जैसे सैकड़ों सैनिक ग्लेशियरों की बर्फ तले दबे हैं। उन गुमनाम सैनिकों के परिजन आज भी अपने सपूतों के इंतजार में हैं। अप्रैल 1989 में ‘गाड्र्स रेजिमेंट’ के नौ जवान तथा सन् 2016 में ‘मद्रास रेजिमेंट’ के दस सैनिक सियाचिन में एवलांच की चपेट में आकर बलिदान हो गए थे। सियाचिन में सैन्य बलिदान का सिलसिला बद्दस्तूर जारी है।

जुलाई 2023 को सेना के डॉक्टर कैप्टन ‘अंशुमान सिंह’ ‘कीर्ति चक्र’ ‘मरणोपरांत’ सियाचिन में एक हादसे का शिकार हुए। हालांकि सन् 2012 में सियाचिन के पश्चिम ‘ग्यारी सेक्टर’ में पाक सेना के 140 सैनिक बर्फीले तूफान की जद में आकर शहीद हो गए थे। बेशक पाकिस्तान के गिलगित व बाल्टिस्तान पर नजर रखने में सक्षम 2583 वर्ग कि.मी. में फैला सियाचिन भारत को चीन तक सीधी पहुंच प्रदान करता है। लेकिन 22 हजार फीट की बुलंदी पर मौजूद सियाचिन का तापमान शून्य से सत्तर डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। वहां जीवित रहना भी चुनौती है। सन् 1972 के ‘शिमला समझौते’ में भारत व पाक के हुक्मरानों ने भी सियाचिन ग्लेशियर को बेजान व बंजर करार देकर इनसानों के रहने के काबिल नहीं बताया था।

कराची समझौते में ‘संयुक्त राष्ट्र’ के अधिकारियों का भी यही तर्क था कि सियाचिन जैसे बर्फीले व निर्जन क्षेत्र के लिए भारत व पाक के बीच कोई विवाद नहीं होगा। मगर पाकिस्तान ने 1970 में पर्वतारोहण अभियानों की शुरुआत करके तथा 1980 के दशक में सियाचिन को अपने मानचित्र पर प्रदर्शित करके भारत को उकसाने की हिमाकत की। लेकिन सन् 1977 के दौर में ‘हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल’ के कमांडर रहते ‘कर्नल नरेंद्र बुल’ ने सियाचिन के साल्टोरो रेंज, जस्कर व काराकोरम जैसे दुर्गम क्षेत्रों में पर्वतारोहण को अंजाम देकर पाकिस्तान के नापाक मंसूबे भांप लिए थे। कर्नल बुल के साहस भरे पर्वतारोही अभियानों से ही आपरेशन मेघदूत को अधिकृत किया गया था। अत: सियाचिन ग्लेशियर को भारत का हिस्सा बनाने में कर्नल ‘नरेंद्र कुमार बुल’ ‘पद्मश्री’ ने बेहद अहम किरदार अदा किया था। कश्मीर व सियाचिन जैसे मुद्दे एक मुद्दत से हिंदोस्तान की सियासत का मरकज रहे हैं। लाजिमी है कि मुल्क के रहबर सियाचिन ग्लेशियर की जमीनी हकीकत से भी मुखातिब हों। कायनात की सबसे खूबसूरत जगहों में शुमार कश्मीर तथा पृथ्वी का तीसरा ध्रुव कहे जाने वाले सियाचिन ग्लेशियर को भारत का अभिन्न अंग बनाने वाले हजारों सैनिकों के सर्वोच्च बलिदान को याद करना होगा। आपरेशन मेघदूत के गुमनाम जांबाजों तथा सियाचिन के महाज पर तैनात सैनिकों को राष्ट्र नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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