व्यवस्थाओं के दामन पर नशाखोरी के दाग

हालात जैसे भी हों इज्जत-ए-नफज से काम करने वाली अजीम शख्सियतें किसी प्रलोभन या धन-दौलत के लालच में खुद्दारी की सरहद नहीं लांघती। बेहतर होगा यदि मुल्क के निजाम में विराजमान इंतजामिया व नौकरशाही को नशा ईमानदारी व मोहिब्ब- ए-वतन के जज्बात का हो ताकि आवाम का एतबार कायम रहे…
‘उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ हमें यकीं था हमारा कसूर निकलेगा। उस आस्तीन से अश्कों को पोंछने वाले उस आस्तीन से खंजर जरूर निकलेगा’। मारूफ शायर ‘अमीर कजलबास’ को शायद अंदाजा नहीं था कि उनकी नज्म के ये अल्फाज मुस्तकबिल में नशाखोरी की तिजारत में मुल्लविस सुरक्षा एजेंसियों तथा खियानत में डूबे मुल्क के निजाम की दास्तान को पूरी शिद्दत से बयान करेंगे। नशाखोरी, रिश्वतखोरी व कई घोटालों के बदनुमां दाग हमारी व्यवस्थाओं के दामन पर लग चुके हैं। नशे की अवैध तिजारत से हालात इस कदर बद्दतर हो चुके हैं कि नशाखोरी के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली सामाजिक संस्थाएं सुरक्षा एजेंसियों को ड्रग्स तस्करों की खबर देने में दुविधा में हैं। कहीं खुद की शिनाख्त उजागर न हो जाए, इसलिए सभ्य समाज के लोग नशे के खिलाफ जंग का हिस्सा बनने से डर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों का मुखबिर बनकर नशे की मुखबिरी में कहीं खुद शरीक-ए-जुर्म साबित न हो जाए, इसलिए नशे जैसी बुराई को मिटाने का हलफ उठा चुके इंकलाबी युवा खौफजदा हैं। यानी खुदगर्ज की बस्ती में एहसान गुनाह साबित हो सकता है। चूंकि सामाजिक सुरक्षा का दायित्व निभाने वाली निगाहबान निगाहें भी कातिल नशे की तलबगार बन चुकी हैं।
उच्च पदों पर विराजमान कई सरकारी अधिकारी भी चिट्टे जैसे नशे के शौकीन हैं। देश के संवेदनशील इदारों की सुरक्षा की जिम्मेवारी निभाने वाले कर्मचारी ‘हनी ट्रैप’ जैसे फ्रॉड में पकड़े जा रहे हैं। ताजिरात-ए-हिंद के पैरोकार भ्रष्टाचार में अपनी भागीदारी दर्ज करवा चुके हैं। प्रश्न यह है कि जब अदालत में मुलजिम खुद मुंसिफ व खुद ही मुद्दई होगा तो उसके एब-ओ-हुनर की तफ्तीश कौन करेगा? सुरक्षा एजेंसियों में तैनात अहलकार जब खुद नशाखोरी की अवैध तिजारत में गिरफ्तार हो रहे हैं, ड्रग्स के अवैध कारोबार की रोकथाम करने वाली जांच एजेंसियों के मुलाजिम भी नशे के काले कारोबार में हाथ आजमा रहे हैं, तो उनके गिरेबान में हाथ कौन डालेगा? मगर हमारे जम्हूरी निजाम में धरातल पर ये सब कुछ हकीकत में हो रहा है। धन कुबेर बनने की जहालत भरी ख्वाहिश ने तमाम व्यवस्थाओं को रुसवा कर दिया है। नशे का गोरखधंधा अवैध तरीके से अकूत धन कमाने का बड़ा कारोबार बन चुका है, नतीजतन अमीर बनने की हसरत में सरकारी मुलाजिम भी जानलेवा नशे के ताजिर बन रहे हैं। हिमाचल के हमसाया सूबे पंजाब को वहां की हुकूमत नशामुक्त बनाने में जुटी है। पंजाब में नशाखोरी के खिलाफ ‘युद्ध नशे के विरुद्ध’ अभियान में नशा तस्करों के खिलाफ बुल्डोजर एक्शन भी हो रहा है। लेकिन इसके बावजूद सूबे में नशे का जहरीला कारोबार शबाब पर है। ‘उड़ता पंजाब’ में वर्दी की आड़ में नशा तस्करी के कई सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। हाल ही में महिला पुलिसकर्मी को ड्रग्स के साथ हिरासत में लिया गया है। नशा मजहब का हो, सियासी कद का हो, सरकारी पद का हो, मादक पदार्थों का हो या धन-दौलत का हो, कई रिश्तों को बेआबरू करने की कूवत रखने वाला नशा अपनी औकात जरूर दिखाता है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि सदाकत, अखलाक, ईमानदारी व वफादारी बड़े महंगे शौक हैं। इन्हें हर कोई नहीं पाल सकता। उच्च अधिकारियों व सुरक्षाकर्मियों की नशा तस्करों से रफाकत पशेमानी का विषय है। नशाखोरी जैसी मशकूक गतिविधियों में सुरक्षा एजेंसियों के अहलकारों की संलिप्तता से नशे के खिलाफ चल रही मुहिम पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। नशाखोरी से लोगों की जिंदगी को जहन्नुम बनाकर नशे के सरगना करोड़ों रुपए की अवैध सल्तनत खड़ी कर चुके हैं। नशे की ओवरडोज से हो रही दर्दनाक मौतें तस्दीक करती हैं कि बेआब नशेड़ी नशे की हिरासत में ही मरहूम हो रहे हैं।
कुछ पलों के लिए सुकून का एहसास कराने वाला नशा युवा वेग को जिंदगी भर के लिए मफलूज कर रहा है। जिन नामुराद लबों को हेरोइन व सिंथेटिक ड्रग्स की लज्जत लग जाए, उनका नशे के बिना रहना लगभग नामुमकिन है। नशे की इल्लत ने नशेड़ी वर्ग को जुर्म की चौखट पर पहुंचा कर गुनाहगार की कतार में खड़ा कर दिया है। नशे की तलब में कत्ल जैसी खौफनाक वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। नशे की फुरकत में भी संगीन जुर्म हो रहे हैं। ड्रग्स की अवैध तिजारत से नशे के सरगनाओं की धन-दौलत में बेहताशा इजाफा हो रहा है। मगर गुरबत व नादारी से जूझ रहे नशेड़ी वर्ग के परिवारों की आर्थिकी का तवाजुन बिगड़ चुका है। अदालतों में एनडीपीएस एक्ट के तहत मुकदमों में इजाफा हो रहा है। कानूनी शिकंजे में फंस चुके नशे के तलबगार बने कई युवाओं को बचाने के लिए अभिभावकों ने अपनी जमीन जायदाद गिरवी रख दी है। धनवान बनने की हसरत में कई मुलाजिमों ने अपना जमीर गिरवी रख दिया है। नतीजतन अंतरराष्ट्रीय सरहदों से शुरू हुई नशा सप्लाई की चेन नहीं टूट रही। ड्रग्स माफिया हर सूबे में अपना नशे का नेटवर्क कायम कर चुके हैं।
विचार करें जब निगाहबान बाड़ ही चमन को उजाड़ कर विरान कर दे तो अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा। जब देश की निगाहबानी करने वाली सुरक्षा एजेंसियां नशा तस्करों की दस्त-ओ-बाजू बन जाएं तथा अहम जिम्मेवारियां निभाने वाली व्यवस्थाओं में नशे का वायरस घुसपैठ कर जाए, तो नशे का नाश कैसे होगा। शासन-प्रशासन से लोगों का अकीदा उठ जाएगा। हालात जैसे भी हों इज्जत-ए-नफज से काम करने वाली अजीम शख्सियतें किसी प्रलोभन या धन दौलत के लालच में खुद्दारी की सरहद नहीं लांघती। अलबत्ता बेहतर होगा यदि मुल्क के निजाम में विराजमान इंतजामिया व नौकरशाही को नशा ईमानदारी व मोहिब्ब-ए-वतन के जज्बात का हो ताकि आवाम का एतबार कायम रहे। बहरहाल जिस सरजमीं पर नशाखोरी की काश्त होगी वहां केवल तालिब-ए-फसाद की तखलीक होगी। जो समाज का बेहतर भविष्य तय करने वाली शाइस्ता प्रतिभाओं के हौंसला-ओ-हुनर को खाक में मिला देंगे। अत: नशाखोरी को देश के यौवन के खिलाफ एक गंभीर चुनौती मानकर नशे का काला कारोबार ध्वस्त करना होगा।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
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