यह सवालों का समय नहीं
सबसे महत्वपूर्ण और प्रथम राष्ट्र है। प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, सांसद, राजनीतिक दल और देश के औसत नागरिक उसके हिस्से हैं। राष्ट्र का अस्तित्व है, तो सभी का अस्तित्व है। पहलगाम नरसंहार हमारे भारत की आत्मा, अस्तित्व और संप्रभुता पर हमला था। उसे तनिक भी भुलाया नहीं जा सकता। भारत को हिंदू और मुसलमान में विभाजित कर आघात नहीं किया जा सकता। हम ऐसा आघात बर्दाश्त नहीं करेंगे, क्योंकि राष्ट्र के सवाल पर सभी समुदाय एकजुट हैं। नरसंहार के बाद सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी। उसमें सवाल जरूर उठे होंगे, लिहाजा मोदी सरकार ने खुफिया-सुरक्षा चूक को भी स्वीकार किया। जो नेता कट्टरपंथी किस्म के दिखाई देते हैं, आज वे भी सरकार के साथ हैं और प्रधानमंत्री मोदी के किसी भी फैसले का समर्थन कर रहे हैं। वक्फ जैसा संवेदनशील मुद्दा नेपथ्य में डाल दिया गया है। फिलहाल आतंकवाद पर आंख गड़ी है और उसे सबक सिखाना है। प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के जरिए नरसंहार के पीडि़त परिवारों के साथ अपनी व्यथा और अपना गुस्सा साझा किए हैं। एक बार फिर उन परिवारों को आश्वस्त किया गया है कि न्याय जरूर मिलेगा। हमले के दोषियों और साजिश रचने वालों को कठोरतम जवाब जरूर दिया जाएगा। प्रधानमंत्री को एहसास है कि हर भारतीय का खून, आतंकी हमले की तस्वीरों को देखकर, खौल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के इस आश्वासन पर भरोसा करना चाहिए। हमले के तुरंत बाद आतंकियों और उनके आकाओं पर पलटवार के तौर पर हमला नहीं किया जा सकता। यह भी कूटनीतिक और सामरिक रणनीति का हिस्सा है। दिल्ली से कश्मीर तक बैठकों और गहन जांच के दौर जारी हैं। जांच में इसरो को भी शामिल किया गया है। 10 आतंकियों के घर जमींदोज कर दिए गए हैं। कुछ घरों में विस्फोटक भी दिखे हैं। करीब 2000 संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ जारी है। तीनों सेनाओं के प्रमुख और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच 40 मिनट की मुलाकात हुई।
जाहिर है कि पाकिस्तान पर हमले के प्रारूपों पर विमर्श हुआ होगा! दुनिया के 40-45 देशों के राष्ट्राध्यक्षों, राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों आदि ने प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बातचीत की है और आतंकवाद के खिलाफ भारत को भरपूर समर्थन दिया है। प्रमुख मुस्लिम देश भी भारत के साथ खड़े हैं। चीन, तुर्किये सरीखे देशों ने भी पाकिस्तान को सार्वजनिक समर्थन नहीं दिया है। वे पाकिस्तान की फितरत और हकीकत जानते हैं। क्या कुछ विपक्षी दलों को ये गतिविधियां दिखाई नहीं देती हैं? यह सवालों का नहीं, राष्ट्र के तौर पर एकजुट दिखने का समय है। प्रधानमंत्री का सर्वदलीय बैठक में न आ पाना कोई बुनियादी सवाल नहीं है। बैठक में रक्षा मंत्री और गृह मंत्री थे, जो सुरक्षा और खुफिया संबंधी सवालों के प्रति पूरी तरह जवाबदेह होते हैं। क्या उनकी मौजूदगी महत्वपूर्ण नहीं थी? यह फरवरी, 2019 के पुलवामा आतंकी हमले में इस्तेमाल किए गए कथित 300 किग्रा आरडीएक्स विस्फोटक पर बार-बार सवाल करने का समय नहीं है। यह किसी कथित आतंकी को भाजपा का टिकट देने पर सवाल करने का भी समय नहीं है। यह आतंकी हमले गिनवाने का भी समय नहीं है। घटना 1984 की है, लिहाजा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके आधिकारिक आवास में हत्या को सबसे अहम सुरक्षा चूक करार देना आज न तो प्रासंगिक है और न ही उचित समय है। यह युद्ध की संभावनाओं पर सोचने और रणनीति तैयार करने का समय है। एक अंतरराष्ट्रीय शोध रपट के मुताबिक, यदि भारत-पाक में पूर्ण युद्ध छिड़ा, तो भारत का नुकसान 0.65 फीसदी और पाकिस्तान का 0.95 फीसदी होगा। युद्ध की कीमत और प्रभाव की भरपाई में भारत को 7.5 साल और पाकिस्तान को करीब 10 साल लग सकते हैं। इसमें परमाणु युद्ध के नुकसान और असर शामिल नहीं हैं। बेशक पाकिस्तान पर फिलहाल 13085 करोड़ डॉलर का कर्ज है। पाकिस्तान की जीडीपी का 65.7 फीसदी कर्ज है। कल्पना कीजिए कि युद्ध के फलितार्थ क्या हो सकते हैं? कांग्रेस आश्वस्त रहे कि जो भी निर्णय लिया जाएगा, वह व्यापक और निर्णायक होगा।
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