साजिशों के साए में बेरोजगार युवा

साजिशों के साथ तमाम तोहमतें भी बेरोजगारों का ही पीछा करती हैं। आरोपियों को गुनाहगार के नजरिए से देखा जाता है। हमारे मुल्क का अदालती निजाम अंग्रेजों द्वारा बनाया गया है। अदालतों में आरोपियों को बेगुनाह साबित होने में मुद्दतें गुजर जाती हैं। ताजिरात-ए-हिंद के पैरोकार व कानूनी दावपेंच में माहिर आईन के मुनाजिरों से इंसाफ की आस रहती है…
आईपीएल जैसा बेहद महंगा खेल आयोजन कराकर भारत दुनिया को अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था का पैगाम नसर करता है। बेशक भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था में शुमार कर चुका है। मगर हकीकत यह है कि प्रजातंत्र के भविष्य बेरोजगार युवा वर्ग के सितारे गर्दिश में हैं। बेरोजगारी देश में तशवीशनाक मसला बन चुकी है। बेरोजगारी के अजाब ने शिक्षित वर्ग के युवाओं का आत्मसम्मान व आत्मविश्वास छीन लिए हैं। चूंकि भारत में अक्सर सरकारी रोजगार करने वालों को ही इल्मदार समझा जाता है। सियासी रहनुमाओं को आलिम फाजिल माना जाता है। मुल्क के किसी भी निजाम में तब्दीली लाने की सलाहियत युवा वर्ग में ही है। इंतखाबी दौर में हुक्मरानों को अपनी सियासी बज्म की जीनत बढ़ाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत युवा वर्ग की ही होती है। सियासी रहनुमाओं को सत्ता के फलक तक पहुंचाने में भी युवा वर्ग का अहम किरदार है। मगर इसे इत्तेफाक कहें या बेरोजगारी की इंतेहा, मसला यह है कि अभिशाप बन चुकी बेरोजगारी की वजह से युवा डिप्रेशन में हैं। नशाखोरी व डंकी रूट के मकडज़ाल में फंस चुके युवाओं के अभिभावक डिप्रेशन में हैं।
विदेशों में नौकरी के हसीन ख्वाब दिखाकर युवाओं को फर्जी तरीके से विदेश भेजने का डंकी रूट व कबूतरबाजी जैसा करोड़ों रुपए का अवैध कारोबार लंबे समय से चल रहा है। ट्रैवल एजेंटों के राडार पर भी युवा हैं। ट्रैवल एजेंटों द्वारा फर्जी तरीके से विदेश भेजे गए ज्यादातर युवा बैरूने मुल्कों की जेलों में कैद हैं। नशा तस्करी के इल्जाम में जेलों में बंद ज्यादातर युवा हैं। युवा छात्रों को डाक्टर, इंजीनियर, आर्मी ऑफिसर, पायलट, जज तथा प्रशासनिक अधिकारी बनाने का ख्वाब दिखाने वाले कोचिंग सेंटरों का देश में हजारों करोड़ रुपए का कारोबार चल रहा है। कोचिंग के नाम पर लाखों रुपए की फीस भरने के बावजूद प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता के बाद अवसाद व डिप्रेशन का शिकार होकर युवा छात्र आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग का साया भी युवा छात्रों का पीछा करता है। शिक्षा के नाम पर देश के हजारों छात्र प्रति वर्ष विदेशी शिक्षण संस्थानों का रुख करते हैं। करोड़ों रुपए की महंगी फीस से विदेशी शिक्षण संस्थानों की अर्थव्यवस्था को गुलजार करने वाले भारतीय छात्र विदेशों में नस्लीय हमलों का शिकार होते हैं। भारतीय मूल के छात्रों तथा विदेशों में काम करने वाले युवाओं की हत्याएं की जाती हैं। दहशतगर्दी को जीवित रखने के लिए आतंक के आकाओं को सबसे ज्यादा जरूरत युवा वर्ग की है। अलगाववाद व चरमपंथ की आग भडक़ाने के लिए भी युवाओं को ही मोहरा बनाया जाता है। हमसाया मुल्क पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत में अराजकता का माहौल पैदा करने के लिए ‘हनी ट्रैप’ जैसे मंसूबे के जरिए जासूसी के लिए भारतीय युवाओं को अपने जाल में फंसाती है। हनी ट्रैप एक ऐसी साजिश है जिसमें महिला जासूसों का इस्तेमाल करके देश की कई संवेदनशील जानकारियां हासिल की जाती हैं। हनी ट्रैप के एजेंटों के निशाने पर भी ज्यादातर बेरोजगार युवा हैं। हनी ट्रैप का जाल सोशल मीडिया के जरिए फैलाया जाता है। सोशल मीडिया का सबसे बड़ा शिकार भी युवा वर्ग ही है। कई विभागों के अहलकार व युवा अधिकारी तथा बेरोजगार युवा हनी ट्रैप का शिकार होकर सलाखों के पीछे हैं। समाज में संगीन वारदातों के बढ़ते ग्राफ का सबब भी बेरोजगारी है।
अपहरण व कत्ल जैसी संगीन वारदातों को अंजाम देने के लिए गैंगस्टरों को बेरोजगार युवा शूटरों की जरूरत रहती है। गैंगस्टर व शूटर बनने की कातिलाना ख्वाहिश में मौत से बेपरवाह होकर युवा अपना मुस्तकबिल बर्बाद कर रहे हैं। इंतखाबी दौर में युवाओं के बेहतर मुस्तकबिल के लिए कई वादे किए जाते हैं। लेकिन सियासत का किरदार कभी मुखलिस नहीं होता। इख्तिदार हासिल होने के बाद तर्ज-ए-सियासत का मिजाज बदल जाता है। आम लोगों को हुक्मरानों के दीदार दुर्लभ हो जाते हैं। बेरोजगारी, महंगाई व नशाखोरी जैसे संवेदनशील मसले सियासत के मरकजी मुद्दे बनने चाहिए, मगर जाति-मजहब की तर्जुमानी करने वाली सियासत आक्रांताओं के महिमामंडन व आरक्षण के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पा रही। किसान-मजदूर व बेरोजगार युवाओं की आजिजी पर चर्चा नहीं होती। गर्दिश-ए-तकदीर को कोस रहे बेरोजगार युवा महंगाई की मार झेलें, भ्रष्टाचार से ग्रसित निजाम से निपटें, व्यवस्थाओं की मिन्नतें करें, अपनी डिग्रियां हाथों में पकड़ कर रोजगार कार्यालयों की तवाफ करें, चुनावी वादों पर भरोसा करें या मुकद्दर पर यकीन करें? रोजगार की जुस्तजू में बैरूने मुल्कों में मुहाजिर बनने को मजबूर बेरोजगारों के रंज-ओ-गम को महसूस करने के लिए सियासी नजर-ए-करम की निहायत जरूरत है। डंकी रूट, कबूतरबाजी, ड्रग्स माफिया, दहशतगर्दी, गैंगस्टरों व हनी टै्रप जैसे फ्रॉड तथा चरमपंथी ताकतों का नेटवर्क बेरोजगार युवाओं की तलाश करता है।
नशाखोरी, डंकी रूट व हनी टै्रप जैसे षड्यंत्रों ने सैकड़ों बेरोजगार युवाओं को अपराधियों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है। साजिशों के साथ तमाम तोहमतें भी बेरोजगारों का ही पीछा करती हैं। आरोपियों को गुनाहगार के नजरिए से देखा जाता है। हमारे मुल्क का अदालती निजाम अंग्रेजों द्वारा बनाया गया है। अदालतों में आरोपियों को बेगुनाह साबित होने में मुद्दतें गुजर जाती हैं। ताजिरात-ए-हिंद के पैरोकार व कानूनी दावपेंच में माहिर आईन के मुनाजिरों से इंसाफ की आस में अभिभावकों की चश्म-ए-पलक की रौशनी छिन जाती है। न्याय की देवी के मंदिरों की चौखट पर तारीख पे तारीख मिलती है। जम्हूरियत की पंचायतों के सेशन हंगामों की भेंट चढ़ जाते हैं। सियासी निजाम से आश्वासन मिलते हैं। अत: राष्ट्र के बेशकीमती सरमाया युवा वेग की ऊर्जावान ताकत की पैरवी करनी होगी। समाज को अपराधमुक्त बनाने के लिए युवा वर्ग को रोजगार मुहैया कराकर स्वावलंबी बनाने के प्रयास होने चाहिए। नशाखोरी से हटाकर उन्हें खेल की ओर मोडऩा होगा।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
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