ऑटोमोबाइल निर्माण
भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग जिस तेजी से तरक्की कर रहा है वह उल्लेखनीय है। हर साल वह बढ़ोतरी की नई इबारत लिख रहा है। 1982 में भारत में जब मारुति कार अस्तित्व में आई तो जनता ने उसमें बहुत दिलचस्पी दिखाई और वह जन-जन की कार बन गई। नब्बे के दशक में नरसिंह राव के आर्थिक उदारीकरण ने जैसे कि उसमें पंख लगा दिए। उसके बाद कई और विदेशी कंपनियां कार निर्माण के क्षेत्र में आ गईं तो टू व्हीलर के क्षेत्र में भारतीय कंपनी हीरो ने जापानी कंपनी होंडा के साथ मिलकर इस क्षेत्र में भारत को शिखर पर लाकर खड़ा कर दिया। एक के बाद एक विदेशी कंपनियों ने देश में कदम रखा और वाहन निर्माण का काम बढ़ता चला गया। देश के जीडीपी के विकास में हमारे ओटोमोबाइल उद्योग का बहुत बड़ा योगदान रहा। कोरियाई, जापानी ऑटोमोबाइल कंपनियों को भारत निवेश के लिहाज से माकूल लगा और उन्होंने करोड़ों डॉलर का निवेश किया। लेकिन सिर्फ विदेशी ही नहीं भारत की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी टाटा मोटर्स तथा महिंद्रा एंड महिंद्रा भी तेजी से आगे बढऩे लगी। इसका नतीजा हुआ कि 2024 तक भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल उत्पादक देश बन गया। 22 लाख करोड़ की इस इंडस्ट्री ने 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार दे रखा है। यहां बने दोपहिया वाहनों का तो 50 फीसदी निर्यात हो जाता है। यह इंडस्ट्री देश को बड़े पैमाने पर जीएसटी भी देती है। लग्जरी कारों में 28 फीसदी जीएसटी लगता है जिससे सरकार की खूब कमाई होती है। भारत में जिस तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है, वह उल्लेखनीय है।
पूरे देश में सडक़ों का जाल तैयार हो गया है। 2023-24 में देश के अंदर में हर दिन 33 किलोमीटर से अधिक नेशनल हाइवे का निर्माण हुआ है। केंद्रीय सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 में कुल 12349 किलोमीटर नेशनल हाइवे बने हैं। सडक़ परिवहन मंत्रालय की महत्वाकांक्षी योजना है कि वह हर दिन 100 किलोमीटर हाइवे बनाए। इससे भारत अमेरिका को टक्कर देने की स्थिति में पहुंच जाएगा। देश में सडक़ें तेजी से बन रही हैं और इस कारण से वाहनों की बिक्री भी बढ़ रही है। अब कहीं भी सडक़ मार्ग से जाना आसान होता जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली से यहां की वित्तीय राजधानी मुंबई तक पहले कारों से लोग नहीं जाया करते थे। उसमें 24 घंटे तक की थका देने वाली यात्रा करनी होती थी, लेकिन अब यह 1350 किलोमीटर की दूरी महज 12 घंटे में की जा सकती है। इस तरह की कई सडक़ें बन गई हैं जिनसे अपने गंतव्य पर पहुंचने में अब आधा समय लगता है और कम ईंधन फुंकता है। इससे सडक़ परिवहन को बढ़ावा मिला है और वाहनों की बिक्री भी बढ़ी है। देश में इलेक्ट्रिक कारों का उत्पादन भी बढ़ रहा है। विदेशी कंपनियों के अलावा भारतीय कंपनियां टाटा और महिंद्रा के अलावा दो पहिया बनाने वाली कई कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहन बनाने लगी हैं। भारत में बनी कारें चीनी कार बावायडी या फिर इलोन मस्क की टेस्ला से काफी सस्ती हैं। इस वजह से इनकी बिक्री भी खूब बढ़ रही है। भारत में काम कर रही अन्य कार निर्माता कंपनियां जैसे मारुति, हुंडई, एमजी वगैरह भी इलेक्ट्रिक कारें बना रही हैं। इससे इसके बाजार में विस्तार हुआ है और लोगों में दिलचस्पी बढ़ी है। फिलहाल परंपरागत कारों के साथ-साथ इन कारों की बिक्री भी बढ़ रही है। सबसे बड़ी बात है कि इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। खेती से दोपहिया वाहनों की भी बिक्री बढ़ी है।
मधुरेंद्र सिन्हा
स्वतंत्र लेखक
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