अंधेरे बंद कमरे

By: May 8th, 2025 12:05 am

सहज संन्यास मिशन की मान्यता है कि हम सरल हो जाएं, सच्चे हो जाएं, निस्वार्थ हो जाएं और प्रेममय हो जाएं तो हम संन्यासी हो गए। उसके लिए घर, परिवार, समाज, मित्र, रिश्तेदार, व्यवसाय या नौकरी छोडऩे की आवश्यकता नहीं है, किसी खास तरह के कपड़े पहनने की आवश्यकता नहीं है। गेरुए वस्त्र पहन कर हम लोगों को बताते हैं कि हम संन्यासी हैं, गृहस्थ संन्यास में रहकर हमें कुछ भी बताने, समझाने या घोषणा करने की भी आवश्यकता नहीं है। यहां तो सिर्फ खुद को समझाने और फिर खुद को समझने की आवश्यकता है। संन्यास इसी में पूरा हो जाता है। परमात्मा तक पहुंचने के कई रास्ते हैं। कोई भक्ति से परमात्मा तक जाता है, कोई सेवा से परमात्मा तक जाता है, कोई ज्ञान से परमात्मा तक जाता है, कोई योग से परमात्मा तक जाता है…

सात्विक जीवन बहुत सरल जीवन है। सात्विक होना बहुत सरल है। मजे की बात यह है कि इसके लिए किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ अपना नजरिया बदला, सोचने का ढंग बदला, माइंडसेट बदला और दुनिया बदल गई। कोई पूजा-पाठ नहीं, कोई हवन नहीं, कोई उपवास नहीं, कोई दान-दक्षिणा नहीं। सिर्फ इतना किया कि हमारे कारण किसी को दुख न पहुंचे, हमारे कारण किसी का नुकसान न हो, हम किसी को धोखा न दें, हम किसी भी हालत में झूठ न बोलें, किसी का अपमान न करें, किसी का मजाक न उड़ाएं, किसी को छोटा न समझें, सबसे प्रेम करें, निश्छल प्रेम करें, बिना कारण प्रेम करें, बिना किसी लाभ की आशा के प्रेम करें, निस्वार्थ प्रेम करें। दूसरों के प्रति हमारे व्यवहार में जब यह परिवर्तन आ जाए तो अपने प्रति भी हम अपने नजरिये में दयालुता लायें। अपनी कमियों के लिए, भूलों के लिए, गलतियों के लिए, गुस्ताखियों के लिए खुद को माफ करना सीखें। दूसरों के प्रति और अपने प्रति प्रेम से भर जाएं, यह सात्विकता का पहला चरण है। कर के देखिए, आसान हो जाएगा।

डरते रहेंगे, नुकसान का सोच कर, अनिष्ट का सोच कर, तो डरते ही रह जाएंगे, कभी बदल नहीं पाएंगे, शुरुआत करेंगे तो कभी न कभी मंजिल पर पहुंच ही जाएंगे। पर अभी यह सात्विकता का पहला चरण है। सात्विकता का दूसरा चरण है अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा। शारीरिक स्वास्थ्य को तो हम सभी समझते ही हैं। ताजा शुद्ध भोजन लेना, चबा-चबाकर खाना, खाना खाने से चालीस मिनट पहले या डेढ़ घंटे बाद पानी पीना, पानी को बैठकर और घूंट-घूंट करके पीना, भोजन के तुरंत बाद आइसक्रीम या कोई ठंडी चीज न खाना, खाने के तुरंत पहले या तुरंत बाद फल-फ्रूट न खाना, दिन भर में कम से कम दो फ्रूट अवश्य खाना, दिन भर में कम से कम तीन लीटर पानी पीना, रेफ्रिजेरेटर का ठंडा किया हुआ पानी पीने से बचना, मीठा, नमकीन, तीखा आदि संतुलित मात्रा में ही खाना, शराब, सिगरेट, बीड़ी, सुर्ती और अन्य नशीले पदार्थों के प्रयोग से बचना और नियमित रूप से व्यायाम करना आदि शरीर के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। क्रोध न करना, उदास न होना, अपनी कमियों और गलतियों के लिए पछताते ही न रहना, अकेलेपन में भी खुश रहना, रिश्ते बनाना और निभाना, शिकायती स्वभाव का न होना, लालची न होना, धोखेबाज न होना, झूठ न बोलना, मन, वचन और कर्म से ही नहीं बल्कि सोच से भी अहिंसक होना आदि मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। यह लिस्ट देखने में जितनी लंबी लगती है वास्तव में उतनी है नहीं। करने लग जाएं तो कठिन भी नहीं है, बस पहला कदम लेने की जरूरत है, थोड़े से दृढ़ निश्चय की जरूरत है। अगर हमने यह कर लिया तो हम संन्यासी हैं। आदि शंकराचार्य ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘भज गोविंदम्’ में इसी का खुलासा किया है। वे तो यहां तक कहते हैं कि संसार छोडक़र, सारे सुख छोडक़र, ठंड में कांपते हुए किसी पेड़ के नीचे सोने वाला, संसार के सारे सुखों का त्याग करके और भगवा पहनकर संन्यासी हो जाने वाला व्यक्ति भी परमात्मा को नहीं पा सकता यदि उसके मन में अब भी कोई इच्छा बाकी है। संसार को छोडऩा संन्यास नहीं है, संसार से मुक्ति संन्यास है, इच्छाओं से मुक्ति इसकी राह है।

इच्छाओं से मुक्ति में ही संसार से मुक्ति है और यही संन्यास है। आदि शंकराचार्य कहते हैं कि ज्ञान के बिना सिर्फ रूटीन के रूप में उपवास करना, कर्मकांड करना हमें संन्यासी नहीं बनाता। कोई एक व्यक्ति किसी अंधेरे कमरे में बंद हो और वह उस कमरे में इधर-उधर घूमते हुए बार-बार ठोकरें खाए, कमरे में पड़ी वस्तुओं से टकराता रहे, वह हालत उस संन्यासी की है जो सिर्फ वेशभूषा बदल कर या हुलिया बदल कर संन्यासी होने का दम भरता है। सब कुछ छोड़ देने के बावजूद यदि उसके मन में कोई इच्छा बाकी है तो वह संन्यासी होते हुए भी अज्ञानी है और अंधेरे बंद कमरे में कैद है। इच्छाओं पर नियंत्रण की कला हमें संन्यासी बना सकती है। सच्चाई तो यह है कि पादरियों, मुल्लाओं और संन्यासियों के कठिन कर्मकांड और वेशभूषा ने लोगों में संन्यास के प्रति भ्रम पैदा किया है और बहुत से लोग जो गृहस्थ में रहते हुए ही संन्यासी का-सा जीवन बिता सकते थे, संन्यास की कठिनाइयों के कारण संन्यासी नहीं हो पाए, सात्विक नहीं हो पाए। संन्यासियों के कारण, उनकी संन्यास की प्यास अधूरी रह गई। ‘सहज संन्यास मिशन’ ने बदलते जमाने की आवश्यकताओं के मद्देनजर, और गृहस्थ लोगों में संन्यास के प्रति जागरूकता लाने के लिए गृहस्थ संन्यास की परंपरा को पुनर्जीवित किया है। सहज संन्यास मिशन की मान्यता है कि हम सरल हो जाएं, सच्चे हो जाएं, निस्वार्थ हो जाएं और प्रेममय हो जाएं तो हम संन्यासी हो गए। उसके लिए घर, परिवार, समाज, मित्र, रिश्तेदार, व्यवसाय या नौकरी छोडऩे की आवश्यकता नहीं है, किसी खास तरह के कपड़े पहनने की आवश्यकता नहीं है। गेरुए वस्त्र पहन कर हम लोगों को बताते हैं कि हम संन्यासी हैं, गृहस्थ संन्यास में रहकर हमें कुछ भी बताने, समझाने या घोषणा करने की भी आवश्यकता नहीं है। यहां तो सिर्फ खुद को समझाने और फिर खुद को समझने की आवश्यकता है। संन्यास इसी में पूरा हो जाता है। परमात्मा तक पहुंचने के कई रास्ते हैं। कोई भक्ति से परमात्मा तक जाता है, कोई सेवा से परमात्मा तक जाता है, कोई ज्ञान से परमात्मा तक जाता है, कोई योग से परमात्मा तक जाता है। सभी रास्ते परमात्मा के रास्ते हैं और सभी सही हैं। हमें अपनी स्थिति, अपनी क्षमता और अपनी पसंद के मुताबिक इनमें से कोई एक रास्ता या सभी का मिश्रण चुनकर अपनी यात्रा आरंभ करनी है और यह ध्यान रखना है कि हम किसी दूसरे रास्ते को नीचा न समझें, गलत न समझें, उसकी आलोचना न करें।

सहज संन्यास मिशन में हमें यह स्पष्ट किया जाता है कि गेरुए वस्त्र पहनने की परंपरा उस प्रतीक को दर्शाती है कि व्यक्ति ने अपने शरीर का हवन कर दिया। सिर मुंडाने की प्रथा उस प्रतीक को दर्शाती है कि व्यक्ति ने अपनी इच्छाएं काट डालीं। जटा बढ़ाने की प्रथा इस प्रतीक को दर्शाती है कि हमें किसी फैशन, किसी मेकअप की आवश्यकता नहीं रह गई। इन प्रतीकों को समझकर, इनसे प्रेरणा लेकर इन्हें अपनाना गलत नहीं है, पर इन्हें जाने बिना, इनका महत्व समझे बिना एक रूटीन के रूप में इन्हें अपना लेने से कोई लाभ नहीं होगा। संन्यास लेना एक सार्थक कदम है, पर उसके लिए समझ का होना आवश्यक है, ज्ञान की रोशनी का होना आवश्यक है, वरना हम अंधेरे बंद कमरे के कैदी की तरह हैं जो सिर्फ ठोकरें खा रहा है। सहज संन्यास मिशन न कोई धर्म है, न संप्रदाय, बस अध्यात्म की व्याख्या मात्र है, जो हमें अंधेरे बंद कमरे की ठोकरों से छुटकारा दिलाने का छोटा-सा प्रयास है।

स्पिरिचुअल हीलर

सिद्ध गुरु प्रमोद निर्वाण, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता लेखक

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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