इजरायल के नक्शे-कदम पर चले भारत

हमारे हुक्मरानों को इजरायल के नक्शेकदम पर चलकर पाक परस्त आतंक को खल्लास करने का हलफ उठाना होगा। आतंक के आकाओं के खिलाफ बेबीलोन के शासक ‘हम्मुराबी’ के कानून ‘आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत’ को अमल में लाना होगा…

आलेख के शुरुआत में एक बार फिर ‘सआदत हसन मंटो’ की तहरीर को दोहराना पड़ेगा कि जब ‘मजहब दिल से निकल कर दिमाग को चढ़ जाता है तो जहर बन जाता है।’ 16 अप्रैल 2025 को इस्लामाबाद में आयोजित पाकिस्तानी आप्रवासी इजलास में पाक जनरल आसिम मुनीर ने भारत तथा हिंदुओं के खिलाफ हिकारत भरी बयानबाजी करके अपना असली चेहरा पेश किया। मुनीर ने कहा कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते। मुनीर की उस जिहादी तकरीर से आतंकी आकाओं को काफी हद तक ऑक्सीजन मिली। नतीजतन 19 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान के सिंध में हिंदू सांसद ‘खीलदास कोहिस्तानी’ पर कट्टरपंथियों ने हमला कर दिया। 22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने 26 बेगुनाह पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया। दौराने तकरीर में आसिम मुनीर ने ‘कलमा-ए-तौहीद’ का जिक्र किया था। पहलगाम में पर्यटकों को हलाक करने से पहले आतंकियों ने कलमा पढऩे को कहा। जो नहीं पढ़ सके उन्हें गोली मार दी गई। विडंबना है कि मजहब की बुनियाद पर हिंदोस्तान का बटवारा हुआ, मगर हिंदुओं के प्रति पाकिस्तान की नफरती सोच में बदलाव नहीं हुआ। पाकिस्तान के मजहबी रहनुमाओं ने हिंदुओं को हमेशा एक कमजोर कौम के तौर पर पेश किया है, जबकि उनके पूर्वज हिंदू ही थे। असीम मुनीर की तरह पाक जरनैलों ने सन् 1965 में पाक सेना को ये कहकर उकसाया था कि पाकिस्तानी एक ‘लडाक़ू नस्ल’ है, जो भारत के हिंदुओं को आसानी से हरा देंगे।

इसी गलतफहमी में अमेरिकी पैटन टैंको से लैस पाक सेना की ‘प्रथम टैंक डिवीजन’ ने अमृतसर के खेमकरण सेक्टर पर हमला कर दिया। लेकिन भारतीय सेना ने पलटवार करके पाक टैंकों को खेमकरण की सरहद पर ही कब्रिस्तान में तब्दील करके पाक टैंक डिवीजन के कमांडर मेजर जनरल ‘नासिर अहमद खान’ को भी हलाक करके मैदाने जंग में ही सुपुर्दे खाक कर दिया था। इस बात का खुलासा पाकिस्तानी लेखक ‘रसूल बक्स रईस’ ने अपनी किताब में किया था कि पाक जरनैलों की धारणा कि उनकी ‘लड़ाकू नस्ल’ की सेना युद्ध में ‘हिंदू भारत’ को हरा देगी, गलत साबित हुई। तीन बड़े युद्धों में भारतीय सेना द्वारा शर्मनाक शिकस्त के बाद कश्मीर हथियाने में नाकाम पाक हुक्मरानों ने 1980 के दशक में पाकिस्तान को आतंक की दारुल हुकूमत बनाकर भारत के खिलाफ आतंक का रास्ता चुना। जिहाद के नाम पर पाक परस्त दहशतगर्दों ने सन् 1990 में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार करके उन्हें घाटी छोडऩे के लिए मजबूर किया। कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बन चुके हैं। पाक मजहबी रहनुमाओं ने आतंकियों को जन्नत में 72 हूरों का ख्वाब दिखाकर घाटी को जहन्नुम बना डाला। घाटी में आतंकियों को स्थानीय आबादी की पूरी हिमायत हासिल है। मार्च 2000 में अनंतनाग के ‘छत्तीसिंहपोरा’ में आतंकियों ने 36 सिखों का कत्ल कर दिया था। अगस्त 2000 में अमरनाथ यात्रा के दौरान 32 तीर्थयात्रियों तथा जुलाई 2001 में 13 अमरनाथ यात्रियों को मौत के घाट उतारा गया था। सन् 2002 में चंदनवाड़ी बेस कैंप पर आतंकी हमले में ग्यारह अमरनाथ यात्री मारे गए थे। 23 मार्च 2003 को पुलवामा के ‘नंदीमार्ग’ में 24 कश्मीरी पंडित आतंकियों की टारगेट किलिंग का शिकार बने थे। फरवरी 2019 में पुलवामा के आतंकी हमले में 40 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे। पुलवामा हमले के वक्त आसिम मुनीर ‘आईएसआई’ का चीफ था। पहलगाम का आतंकी हमला ऐसे वक्त में हुआ है, जब 26 नवंबर 2011 के मुंबई हमले का गुनाहगार पाक सैन्य अधिकारी ‘तहब्बुर राणा’ भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की हिरासत में कई राज उगल रहा है।

जिन विदेशी ताकतों ने सन् 1971 की जंग में पाकिस्तान की सैन्य व वित्तीय मदद की थी, भारत में हो रहे आतंकी हमलों में उन देशों की खूफिया एजेंसियों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अन्यथा ‘ग्लोबल फायर पावर’ 2025 के अनुसार 12वें पायदान पर काबिज पाक सेना में इतना दम नहीं कि विश्व की चौथी ताकतवर भारतीय सेना को ललकार सके। देश में आतंकी हमला होने के बाद सर्वदलीय बैठकों का दौर शुरू हो जाता है, जबकि आतंक से सेना निपट रही है। युद्ध के मोर्चे पर हमारे शूरवीर सैनिक लड़ेंगे। अत: देश के शीर्ष नेतृत्व को सामरिक मुद्दों पर गुफ्तगू केवल सैन्य कमांडरों से करनी चाहिए। जब पड़ोस में आतंक का मरकज पाकिस्तान, बांग्लादेश व चीन जैसे मुल्क मौजूद हैं तो सैन्य पलटवार के लिए ‘लक्ष्य’ पहले से ही सुनिश्चित होने चाहिएं। खूफिया तंत्र मुस्तैद होना चाहिए। पिछले वर्ष हमास के कई टॉप कमांडर पाकिस्तान के बहावलपुर में तशरीफ लाए थे। पाक सेना की ‘31वीं कोर’, ‘35 इंफैंट्री डिव.’ व ‘26 मैकेनाइज डिवीजन’ तथा आतंकी जमात जैश-ए-मुहम्मद के मुख्यालय भी बहावलपुर में मौजूद हैं। पाक सेना की यही बहावलपुर फॉर्मेशन एलओसी पर तैनात है। मुनीर की हालिया तकरीर से काफी कुछ स्पष्ट हो गया था। ‘हमास’ के आतंकियों ने सात अक्तूबर 2023 को इजरायल में हमला करके कई इजरायली नागरिकों को हलाक किया तथा कई लोगों को हिरासत में ले लिया था।

22 अप्रैल को पहलगाम का हमला भी हमास की तर्ज पर ही किया गया है। लेकिन अपने दुश्मनों को बेरहमी से हलाक करने में विख्यात ‘मोसाद’ ने हमास के आतंकियों व उनके आकाओं को जहन्नुम की परवाज पर भेजकर पूरी दुनिया को पैगाम नसर कर दिया कि इजरायल के दुश्मन कहीं भी महफूज नहीं हैं। लिहाजा हमारे हुक्मरानों को इजरायल के नक्शेकदम पर चलकर पाक परस्त आतंक को खल्लास करने का हलफ उठाना होगा। आतंक के आकाओं के खिलाफ बेबीलोन के शासक ‘हम्मुराबी’ के कानून ‘आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत’ को अमल में लाना होगा। दहशतगर्दी को प्रोत्साहित करने वाली जिहादी सोच तथा आतंक की तखलीक करने वाली कोख पर माकूल प्रहार करने की जरूरत है, अन्यथा कश्मीर घाटी बेगुनाहों के खून से रक्तरंजित होती रहेगी, सियासत संवेदनाएं प्रकट करती रहेगी। यह पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक युद्ध का समय है।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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