लंबी लड़ाई को खत्म करने की कोशिश

भारत ने पाकिस्तान को जो उत्तर दिया है, उसके व्यापक अर्थ हैं। यह एटीएम की मानसिकता और अंग्रेजों के षड्यंत्रों को समाप्त करने की शुरुआत है…
मैं अपनी बात अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की उस टिप्पणी से करूंगा जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत में यह लड़ाई एक हजार से भी ज्यादा समय से चल रही है। अब अगली बात। इस बार पाकिस्तानी सेना पहलगाम पर अपने जिहादियों से हमला करवा कर सचमुच धोखा खा गई। वैसे तो नियम है कि जब कोई सेना दूसरे देश पर हमला करती है तो वह उस देश की क्षमता, इतिहास और स्वभाव का पहले आकलन कर लेती है। पाक सेना स्वयं या अपने प्रशिक्षित जिहादियों द्वारा भारत में कहीं न कहीं हमला करती रहती है। उस हमले का रूप चाहे कोई भी क्यों न हो। ‘हजार जख्म देकर लहूलुहान करना’, यह युद्ध का नया सिद्धांत है। इसमें खर्चा कम होता है और मनोवैज्ञानिक लाभ ज्यादा मिलता है। पाकिस्तानी सेना पिछले कई दशकों से यही कर रही है। इस लम्बे अरसे में उसने भारत की प्रतिक्रिया का आकलन भी कर लिया है। मुम्बई हमले के बाद पाक सेना को अंदेशा था या नहीं, लेकिन भारत के लोगों को आशा थी कि सरकार इस हमले का सही उत्तर देगी। लेकिन देसी-विदेशी दबावों के चलते उसने वह उत्तर नहीं दिया। उसके बाद पाक सेना के थिंक टैंकों ने भारतीय प्रतिक्रिया को लेकर शायद अंतिम निष्कर्ष भी निकाल लिए कि भारत ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी शक्तियों के आगे गुहार लगाएगा। लेकिन पाक सेना को पुलवामा हमले के बाद की प्रतिक्रिया से सबक लेना चाहिए था या फिर कम से कम ऐसे मामलों में भारत की प्रतिक्रिया को लेकर निकाले गए निष्कर्षों को संशोधित कर लेना चाहिए था। लेकिन पाक सेना ने ऐसा नहीं किया।
वह पुराने जमाने के निष्कर्षों को लेकर ही वार-रूम में भारत के खिलाफ रणनीति बनाती रही। मुझे लगता है यदि पाक सेना के मुखिया जनरल बाजवा होते तो शायद आधुनिक युग में भारत की संभावित प्रतिक्रिया का नई सिरे से आकलन अवश्य करवाते। इसका कारण है। वे देसी मुसलमान थे। वे जाट थे जिनके पुरखे मुगल शासन में कभी मुसलमान बन गए थे। उनके गुण-अवगुण वही थे जो हमारे गुण-अवगुण हैं। लेकिन इस समय पाक सेना के मुखिया आसिम मुनीर एटीएम मूल के मुसलमान हैं। एटीएम मूल के मुसलमानों में भारत पर हमले करने वाले अरब, तुर्क और मुगल स्टाक के मुसलमान हैं जिनकी बची खुचा नस्लें भारत में ही रह गई हैं। यह वह स्टाक है जिसके बारे में कहा जाता है कि रस्सी जल गई लेकिन ऐंठन नहीं गई। एटीएम का भारत (जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है) से कुछ लेना-देना नहीं है। इनकी खोपड़ी में अभी भी यह कीड़ा घुसा हुआ है कि कि वे कभी भारत के शासक थे। वे अभी भूतकाल से बाहर नहीं आए हैं। मुनीर अरब मूल के हैं। एटीएम मानता है कि हिंदू-मुसलमान अलग-अलग राष्ट्र हैं। इतना ही नहीं वह यह भी मानता है कि इस्लामी राष्ट्र हिंदू राष्ट्र से श्रेष्ठ है। अंग्रेज एटीएम की इस बीमारी को समझ गए थे। इसीलिए वे जाते वक्त हिंदुस्तान का एक टुकड़ा तोड़ कर एटीएम के हाथ दे गए थे, ताकि वह निरंतर भारत से लड़ता रहे। जिन्ना आदि तो एटीएम के मोहरे थे। यही कारण है कि पाकिस्तान की पहचान स्थापित करने के लिए शुरू से ही एटीएम ने वहां की शिक्षा प्रणाली कर कब्जा कर लिया था। लेकिन इतने दशकों बाद भी पाकिस्तान में सिंधी, पश्तून, बलोच, जाट, राजपूत, गुज्जर, वाल्मीकि इत्यादि नई कृत्रिम पहचान को अपना न सके। वे अपने हजारों हजारों साल के पुराने इतिहास से अपना नाता न तोड़ सके। पाकिस्तान में सिन्धी, बलूच, पश्तून, बलती, दरद सभी इससे अलग होना चाहते हैं। पाक सेना के मुखिया जनरल मुनीर इसीलिए घबराहट में हैं। वे इस्लामाबाद में जोर-जोर से चिल्ला रहे हैं, गला फाड़ रहे हैं, कि मुसलमान हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते।
हम दोनों अलग अलग हैं। हमारा कुछ भी सांझा नहीं है। हम हिंदुओं से कहीं श्रेष्ठ हैं। लेकिन पश्तून, बलोच व सिन्धी चिल्ला रहे हैं कि मुनीर तुम झूठ बोल रहे हो। हमारा तुम से यानी एटीएम से कुछ सांझा नहीं है। मजहब सांझा होने से इतिहास व पहचान सांझा नहीं हो जाती। मुनीर जानता है कि एटीएम ने पहले भी सेना के बल पर ही भारत पर कब्जा किया था। अब भी मुनीर के पास सेना है, शायद वह अपने आप को आज का मोहम्मद बिन कासिम समझता है। वह अपनी आज की सेना के बल पर भारत को डराना चाहता है। सेना तो हिंदुस्तान में अंग्रेजों के पास भी थी। यह भी सच है कि उस सेना में कुछ अफसरों को छोडक़र बाकी सब हिंदुस्तानी ही थे। लेकिन 1857 में और फिर विश्व युद्धों में मोहन सिंह ने व सुभाष चंद्र बोस ने उसी सेना में विद्रोह करवा दिया था जिसके कारण अंग्रेजों को यहां से जाना पड़ा था। पाक की आज की सेना में भी एटीएम के लोग बड़े पदों पर कब्जा किए हैं, बाकी सेना तो देसी मुसलमानों की ही है। एटीएम के मुनीर को अपनी इस सेना पर भी अपनी धाक जमानी है। पाकिस्तान के सिविल प्रशासन को भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना है। पहलगाम का हमला इसी में से निकला है। लेकिन उसने यह अंदाजा नहीं लगाया कि अब भारत भी पहले वाला भारत नहीं रहा। पहलगाम के उत्तर में जो भारत ने किया, वह नए भारत का उत्तर है। उस भारत का जिसके बारे में गलवान की घटना के बाद किसी ने कहा था, अब भारत आंख में आंख डाल कर बात करता है। वह एटीएम द्वारा एक हजार साल पहले शुरू की गई लड़ाई को जीतना चाहता है। मैं हैरान हूं कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने कैसे समझ लिया कि यह लड़ाई एक हजार से भी ज्यादा समय ले चली आ रही है। भारत में किसी ने भी मुनीर के आज के हमले को इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में नहीं समझा। पहलगाम हिंसा के बाद भारत ने जनरल मुनीर को जो उत्तर दिया, वह इसी बात का संकेत है कि भारत एक हजार से चली आ रही इस लड़ाई को अब उसकी अंतिम परिणति तक पहुंचाना चाहता है। एक हजार साल पहले भारत पर हमला करने वाला मोहम्मद बिन कासिम भी अरब था और 2025 में हमला करने वाला जनरल मुनीर भी अरब मूल का है। लेकिन तब से लेकर अब तक सिंधु नदी में बहुत पानी बह चुका है। इस बार जो भारत ने उत्तर दिया है, उसका एक दूसरा पहलू भी है। अब तक यह समझा जाता था कि भारत और पाकिस्तान के बीच झगड़ा कश्मीर को लेकर है। मुनीर ने मजहब के आधार पर अपने द्विराष्ट्र सिद्धांत को प्रस्थापित करते हुए कहा भी कि कश्मीर हमारी दुखती रग है। भारत में भी कुछ लोग ऐसा ही मानते हैं। यही कारण है कि वे अब भी जी-जान से औरंगजेब जैसे लोगों की कब्रों को किसी भी तरह बचाने के काम में लगे हुए हैं। लेकिन मुनीर भी जानते हैं कि उनकी अपनी सोच में भी कश्मीर ही मसला नहीं है। एटीएम के लिए मसला भारत को किसी भी तरह इस्लामी देश बनाना है।
इसलिए आतंकवादियों की जो नस्लें तैयार की जा रही हैं, कश्मीर तो उसका पहला पड़ाव है। जिहादियों के लिए उनकी असली यात्रा तो उसके बाद शुरू होती है। यही कारण है कि अब तक तो भारत सरकार की क्रिया-प्रतिक्रिया भी अपने ही जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में ही होती थी, चाहे जम्मू कश्मीर का वह क्षेत्र नियंत्रण रेखा के इस पार हो या उस पार हो। लेकिन अब नए भारत को समझ आ गया है कि मसला कश्मीर नहीं है, मसला एटीएम की वह बीमार मानसिकता है जो अभी भी मोहम्मद बिन कासिम के जमाने में जी रही है। यही कारण है कि भारत ने बहावलपुर तक जाकर जिहादियों के प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट किया। बहावलपुर का जम्मू-कश्मीर से कोई ताल्लुक नहीं है, वह पश्चिमी पंजाब का हिस्सा है। भारत ने पाकिस्तान को जो उत्तर दिया है, उसके व्यापक अर्थ हैं। वह एटीएम की मानसिकता और अंग्रेजों द्वारा भारत के खिलाफ किए गए षड्यंत्रों को समाप्त करने की शुरुआत कही जा सकती है। यह उन लोगों को तो सुकून पहुंचाएगा ही जिनके प्रियजन पहलगाम हमले में मारे गए थे, लेकिन यह पश्तूनों, बलोचों और सिंधियों के लिए भी उत्सव पर्व है। यह पर्व कुछ और वर्गों को भी सुकून देगा, लेकिन हमें जयचंदों से सचेत रहने की जरूरत है।
कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com
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