कौन है ट्रंप की बेबी डॉल?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर यह आरोप अक्सर लगता रहा है कि उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा कारोबार है, चाहे इसके लिए उन्हें किन्हीं भी देशों से हाथ मिलाना पड़े। फिर चाहे वे भारत के विरोधी ही क्यों न हों। ताजा घटनाक्रमों में यह बात एक बार फिर सामने आई है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मानो तो भारत के दुश्मनों को पुचकारने की कसम खा चुके हैं। पहले तो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उनकी भूमिका ने साबित कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ उनकी खाई कसमें झूठी हैं तो वहीं पाकिस्तान से बिजनेस करने में भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। भारत को यह कड़वा सच समझ में है। ट्रंप ने इस तरह के बयान भी दिए थे कि वे कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए तैयार हैं…
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल के दिनों में उन देशों के साथ प्रेम की पुचकारी बढ़ाई है, जिनके साथ भारत के अच्छे रिश्ते नहीं हैं। इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की शामिल हैं। यह भारत के लिए चिंता का विषय है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में ट्रंप की दिलचस्पी केवल क्रिप्टो करेंसी के कारोबार तक ही सीमित नहीं है। उनके सहयोगियों ने हाल ही में इस्लामाबाद के साथ उनके परिवार की कंपनी के लिए क्रिप्टो करेंसी का सौदा किया था। ट्रंप की आंखों में भारत के लिए पहले जैसा प्यार नहीं रह गया है। इसको जानने के लिए अतीत को टटोलने की कोशिश करते हैं। ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच पहले कार्यकाल (2017-2021) में गर्मजोशी भरे संबंध थे। जिन्हें हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे आयोजन याद होंगे, उन्हें पता होगा कि इन दोनों नेताओं की दोस्ती कैसे परवान चढ़ी थी। लेकिन 2025 में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत और मोदी के प्रति उनका रुख तल्ख होता जा रहा है। यह बदलाव कोई अचानक नहीं है। इसके पीछे देश और दुनिया से संबंधित कई कारण हैं, पर भारत-पाक युद्ध के बाद अचानक डोनाल्ड ट्रंप का रुख भारत के प्रति कुछ ज्यादा ही रूखा नजर आ रहा है। इसके ठीक उलट ट्रंप पाकिस्तान के प्रति अपेक्षाकृत नरम दिखाई देते हैं। सवाल उठता है कि कि क्या पाकिस्तान का मोह ट्रंप को भारत से दूर कर रहा है? क्योंकि पाकिस्तान अमेरिका का बरसों दुलारा रहा है, पर अब चीन और रूस की गोद में जाकर बैठ गया है। ट्रंप ने जिस तरह पाकिस्तान को आईएमएफ से 2.4 बिलियन डालर का बेलआउट पैकेज दिलाया, वो यूं ही नहीं हुआ है। भारत के विरोध में यह तर्क देने के बावजूद कि इसका दुरुपयोग आतंकवाद के लिए हो सकता है, ट्रंप प्रशासन ने इस बेलआउट का समर्थन किया, जिसे भारत ने पाकिस्तान के प्रति नरमी के रूप में देखा। इसके बाद एप्पल सीईओ टिम कुक को भी ट्रंप यह समझाते हुए नजर आए कि आईफोन की फैक्टरी का भारत में विस्तार करने की क्या जरूरत है?
चीन और रूस के खिलाफ भारत का अमेरिका का खुलकर साथ न देना ट्रंप को अखरता है। कहा जा रहा है कि अमेरिका के बार-बार खुलकर कहने के बावजूद भारत चीन और रूस के सामने खुलकर अमेरिका के साथ नहीं आ रहा है। अमेरिका और ट्रंप के भारत से चिढऩे का सबसे बड़ा कारण यह है। अमेरिका चाहता है कि एशिया में चीन और रूस से मुकाबले के लिए भारत उसके साथ आए। पर भारत ने रूस और चीन के साथ संबंधों को संतुलित रखा है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने तटस्थ रुख अपनाया और रूसी तेल (13 डालर/बैरल की छूट पर) खरीदना जारी रखा, जो वैश्विक तेल कीमतों को प्रभावित करता है। ट्रंप ने रूस के प्रति नरम नीति अपनाई, लेकिन भारत की स्वतंत्रता उन्हें अखरती है, क्योंकि यह अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को सीमित करती है। भारत का रूस के साथ रक्षा सौदों (जैसे ैएस-400) का इतिहास भी अमेरिका को चुभता है। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद भारत ने चीन के साथ डी-एस्केलेशन शुरू किया और 2025 तक एलएसी पर तनाव कम हुआ। भारत-चीन व्यापार 125 बिलियन डालर तक पहुंचा, जो ट्रंप की चीन-विरोधी नीति से टकराता है। पाकिस्तान कभी अमेरिका का लाडला होता था। पाकिस्तान को आतंकवादियों के रहमोकरम पर जिंदा रहने वाला एक देश बनाने के पीछे अमेरिका का ही हाथ रहा है। इस बात को वहां के इंटेलेक्चुअल्स मानते भी हैं। ट्विन टावर पर हमले के बाद बदली परिस्थितियों में पाकिस्तान और अमेरिका में दूरी आ गई थी। पर एक बार फिर विश्व के बदलते परिवेश में अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत है। पाकिस्तान में बैठकर अमेरिका ईरान और अफगानिस्तान को नियंत्रित करने के सपने देख रहा है। अमेरिका को यह भी लगता है कि चीन और रूस के पाले से पाकिस्तान को बाहर निकालना जरूरी है। यही कारण है कि डोनाल्ड ट्रंप का हालिया रुख भारत के प्रति तल्ख और पाकिस्तान के प्रति अपेक्षाकृत नरम दिखाई देता है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान का मोह ट्रंप को भारत से दूर कर रहा है।
ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को मजबूत करने के संकेत दिए हैं। 9 मई 2025 को आईएमएफ ने पाकिस्तान को 2.4 बिलियन डालर का बेलआउट दिया। 10 मई 2025 को भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में ट्रंप ने मध्यस्थता का दावा किया, जिसे भारत ने खारिज कर द्विपक्षीय बताया। पाकिस्तान ने इस दावे का स्वागत किया, जबकि भारत की ओर से पहले चुप्पी दिखाई गई, बाद में मध्यस्थता की बात को नकार दिया गया। डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में मध्यस्थता के दावे को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा खारिज करना ट्रंप की नाराजगी का एक प्रमुख कारण हो सकता है। ट्रंप खुद को दुनिया का चौधरी समझते हैं। इसके साथ ही उनके व्यक्तित्व में खुद को सबसे बड़ा डील करवाने वाला समझने का दंभ भी है। एक बार उन्होंने कहा था कि मोदी बहुत टफ नेगोशिएटर हैं। मतलब कि मोदी से उन्हें चैलेंज मिलता था। जिस तरह भारत-पाक युद्ध को खत्म कराने का श्रेय वो ले रहे थे, उससे जाहिर था कि वो चाहते थे कि पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ की तरह भारत भी उनकी तारीफ करे। पर तारीफ तो दूर, भारत जैसे खुद्दार देश ने यह मानने से ही इनकार कर दिया कि ट्रंप की मध्यस्थता की वजह से सीजफायर हुआ। जाहिर है कि इससे ट्रंप अपसेट हुए होंगे। दबाव के चलते हालांकि उन्होंने यह बयान भी दिया कि सीजफायर कराने में उनकी भूमिका नहीं थी।
जाहिर है कि ट्रंप को यह सब दबाव में करना पड़ा। ताकतवर लोग अकसर इस तरह की बातों को दिल पर ले लेते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर यह आरोप अक्सर लगता रहा है कि उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा कारोबार है, चाहे इसके लिए उन्हें किन्हीं भी देशों से हाथ मिलाना पड़े। फिर चाहे वे भारत के विरोधी ही क्यों न हों। ताजा घटनाक्रमों में यह बात एक बार फिर सामने आई है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मानो तो भारत के दुश्मनों को पुचकारने की कसम खा चुके हैं। पहले तो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उनकी भूमिका ने साबित कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ उनकी खाई कसमें झूठी हैं तो वहीं पाकिस्तान से बिजनेस करने में भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। भारत को यह कड़वा सच समझ में है। ट्रंप ने इस तरह के बयान भी दिए थे कि वे कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए तैयार हैं। पर पीएम मोदी ने जनता के नाम संदेश में जो बातें की, निश्चित तौर पर अमेरिका को अच्छी नहीं लगी होंगी। पीएम मोदी ने कहा था कि अब पाकिस्तान से बात केवल पीओके और आतंकवाद पर ही होगी। यह बात ट्रंप और उनकी बेबी डॉल को कभी भी पसंद नहीं आ सकती है। भारत को सोच-समझकर रणनीति बनानी होगी।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com
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