हां… मैं सूद हूं
सूद शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा से हुई तथा अमर कोश के मुताबिक इसका अर्थ है ‘साहसी, बहादुर और अपने शत्रुओं का विजेता’। इसका शाब्दिक अर्थ यह भी है कि मददगार प्रवृत्ति का ऐसा व्यक्ति जो बड़ी सुगमता से प्रगति कर सकता है। समुदाय की उपलब्धियों पर प्रकाश डाल रहे हैं राजीव सूद…
वेदों का वृहद अध्ययन करने वाले नामी शोधकर्ता द्वारा रचित ‘सूद योग’ के मुताबिक वेदों में सूद शब्द का प्रयोग 23 बार हुआ है, जिसमें ऋग्वेद में 15 बार, यजुर्वेद में छह बार तथा अथर्ववेद में दो बार उल्लेख शामिल है। इससे पुष्ट होता है कि सूद वैदिक काल से चली आ रही उत्कृष्ट गुणों से समर्थ एक सनातन बिरादरी है। स्वतंत्रता संग्राम, राष्ट्रीय संप्रभुता तथा राजशाही के दौरान अपने पराक्रम और बलिदान की कई गाथाएं बिरादरी के नाम दर्ज हैं। यह वर्णित है कि एक दौर में देश की विभिन्न 101 रियासतों पर सूद राजाओं ने शासन किया है। अकबर ने 1568 में चित्तौड़ पर हमला किया तो चित्तौड़ की रक्षा के लिए अमरकोट के दीवान हरि सिंह सूद ने अपनी सेना के साथ चित्तौड़ के राजा का सहयोग किया। अलवर के राजा मंगल राव सूद ने ईरानियों को झेलम से खदेड़ा तो अलेक्जेंडर और पोरस के युद्ध में सूद सेनानियों की भूमिका अतुलनीय रही। यही वजह है कि अलेक्जेंडर के साथ युद्ध के बाद तत्कालीन लेखक ने अपनी पुस्तक ‘तावकत-ए-सिकंदरी’ में सूद सेना की जमकर प्रशंसा की। विशेषकर मुख्य योद्धा केदार सूद की।
एमएल सूद का आजादी में अहम योगदान
स्वतंत्रता संग्राम में बिरादरी की भूमिका सराहनीय रही है। 1931 का कांग्रेस अधिवेशन शिमला में संपन्न हुआ तो 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की नींव भी शिमला में सूद परिवारों के बीच रखी गई। संग्राम में अप्रत्यक्ष भूमिका में रहे राय बहादुर मोहन लाल सूद के शिमला स्थित घर पर महात्मा गांधी सारी गतिविधियों को नियंत्रित करते रहे। इसके अलावा आजादी के आंदोलनों भी शिमला सूद बिरादरी का सहयोग चिर स्मरीय रहा। पालमपुर से कन्हैया लाल बुटेल का नाम भी स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार हैं।
राष्ट्र एवं समाज निर्माण में अहम योगदान
सूद बिरादरी का इतिहास रहा है कि वे जहां भी रहे अपने साथ सामुदायिक विकास की गंगा भी बहाते रहे। उन्होंने न केवल अपनी बिरादरी बल्कि समूचे समाज को अपने परिवार का हिस्सा मानकर क्षेत्र के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कभी मंदिर नहीं बनाए, लेकिन समाज को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हों, इसके लिए सरकार की पहल की प्रतीक्षा न करते हुए स्वयं अस्पताल, स्कूल, व्यापारिक प्रतिष्ठान, सड़कें, धर्मशालाएं तथा कई अन्य विकास की योजनाएं अपने बूते आरंभ कर अपने सामाजिक दायित्वों को भी बखूबी निभाया। जिन दुर्गम तथा अति पिछड़े क्षेत्रों में विकास की लौ नहीं पहुंची थी, उन क्षेत्रों में पहुंचकर न केवल अपना कारोबार जमाया, बल्कि लोगों को रोजगार से जोड़ कर अपनी संस्कृति, ज्ञान व शिक्षा का प्रसार कर एक कनेक्टिविटी भी प्रदान की। समाज के निर्माण और विकास में अपने खर्चे से संपत्तियां निर्मित कर उन्हें जनहित में लोकार्पित करना बिरादरी की पहचान रही है। पालमपुर में केएलवी कालेज, टांडा में टीवी सेनेटोरियम की स्थापना हो या पालमपुर में नेत्र अस्पताल का निर्माण,राय बहादुर जोधा मल तथा मेला राम सूद का नाम सम्मानपूर्वक लिया जाता है। इतना ही नहीं, प्रदेश व देश के विभिन्न हिस्सों में सूद सभाओं के माध्यम से स्थापित उपक्रम आज भी लोक सेवा में समर्पित हैं।
लोकोपकारी, अपराध वृत्ति से दूर
सूद लोकोपकारी तथा दूसरों की मदद के लिए समर्पित माने जाते हैं। साथ ही अपने कर्त्तव्यों तथा दायित्वों, आत्म सम्मान और नीति के प्रति उत्तरदायी भी। असामाजिक दुर्व्यवहार, विश्वासघात, फरेब तथा भ्रष्टाचार का काला टीका बिरादरी ने कभी अपने मस्तक पर नहीं लगने दिया। हिंसा, ठगी, डकैती, दहेज हिंसा, दुराचार, जालसाजी आदि आपराधिक गतिविधियों की पंक्ति में सूद बिरादरी कहीं भी मौजूद नहीं।
मुजारा एक्ट ने तोड़ी रीढ़
एक समय में सूद बिरादरी के पास संपत्ति के रूप में भूमि पर अपना आधिपत्य था, लेकिन समुदाय को बड़ा झटका उस समय लगा जब मुजारा एक्ट तथा भू-सीमा अधिनियम के तहत बड़ी मात्रा में भू-संपत्ति से हाथ धोना पड़ा।
कांगड़ा चाय को दिलाई पहचान
1857 में बंदला टी एस्टेट की स्थापना के बाद पालमपुर के बुटेल परिवार ने कांगड़ा चाय को पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई । मौजूदा समय में गोकुल बुटेल को ऐतिहासिक कांगड़ा चाय का बड़ा उत्पादक तथा उद्यमी माना जाता है । 1993 में कांगड़ा चाय को सर्वश्रेष्ठ चाय का दर्जा मिला । बुटेल परिवार ने कांगड़ा के चाय उद्योग को मुख्य धारा में लाने तथा सहकारी चाय उद्योग को व्यावहारिकता दिलाने में सहयोग किया तथा कांगड़ा सहकारी चाय उद्योग का अध्यक्ष पद भी संभाला । इसी के चलते 2012 में केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने पालमपुर में टी बोर्ड ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय कार्यालय की आधारशिला रख कर कांगड़ा चाय मुख्य बाजार से जोड़ने में मदद मिली । आज कई घराने चाय उद्योग से जुड़कर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ कर रहे हैं, जबकि विभिन्न ब्रांडों की कांगड़ा चाय आज 110 देशों में धूम मचा रही है।
शिमला नगर निगम का पहला मेयर
सूद बिरादरी के लिए गर्व का विषय यह भी है कि नगर निगम शिमला के पहले मेयर के रूप में आदर्श सूद ने उक्त पद को सुशोभित किया। वह शिमला विस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले और एकमात्र सूद हैं। इतना ही नहीं, निगम की पहली महिला मेयर होने का गौरव भी सूद महिला मधु सूद ने हासिल किया। इसके अतिरिक्त नगर निगम शिमला में जसवंत राय, राजेंद्र प्रसाद, अशोक सूद, ओम सूद, संजय सूद, नवीन सूद, मनोज सूद, सुलक्षणा आर्य, विमला कश्यप, मंजु सूद का प्रतिनिधित्व भी गौरवमय रहा है।
नेहरू के चिकित्सक
तत्कालीन स्नोडन तथा वर्तमान में आईजीएमसी शिमला में डा. देवी चंद एवं डा. निर्मला देवी चंद का एक विशेष स्थान रहा है। एकमात्र राज्य स्तरीय संस्थान में ‘बॉस’ के नाम से जाना जाता था, जो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तिगत चिकित्सक भी रहे। डा. मुकुंद लाल, डा. जगत राय, डा. किरपा राम आदि की चिकित्सा जगत में सेवाएं अविस्मरणीय हैं।
सूदों के गढ़
आजादी के बाद भले ही प्रदेश के सभी हिस्सों में सूद बिरादरी रोजगार अथवा व्यवसाय के लिए विस्थापित हुई, लेकिन एक दौर में प्रदेश के अंब, अंबोटा, देहरा गोपीपुर, गरली, परागपुर, हरोली, ज्वालामुखी, कोहला, पालमपुर, भवारना, रक्कड़ आदि बिरादरी के गढ़ रहे हैं।
आजादी से लेकर आज तक बुटेल परिवार
प्रदेश की राजनीति में पुनर्गठन के बाद से ही पालमपुर के बुटेल परिवार ने अपनी विरासत को आज तक जारी रखा है। गांधीवादी तथा स्वतंत्रता सेनानी कन्हैया लाल बुटेल के परिवार से संबंधित जहां बृज बिहारी लाल बुटेल पालमपुर विधानसभा क्षेत्र से पांचवीं बार विधानसभा पहुंच कर नौ जनवरी, 2013 को प्रदेश विधानसभा के 12वें अध्यक्ष बने, वहीं 150 करोड़ की संपत्ति वाले सबसे अमीर विधायक भी कहलाए। वह जनवरी, 2005 से दिसंबर, 2007 तक मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार रहे, वहीं मार्च, 2003 से जुलाई, 2005 तक राजस्व मंत्री के पद को भी सुशोभित कर चुके हैं। वह 1995 से 1998 तक मुख्य संसदीय सचिव के पद पर भी आसीन रहे हैं। वह पहली बार 1985 में तथा इसके बाद 1993-1998-2003 तथा 2012 में विधानसभा के लिए चुने गए।
सूद सभा के सराहनीय प्रयास
एक समय में सूद-सरकार-शिमला को एक-दूसरे का पर्याय माना जाता रहा है। आज भी न केवल प्रदेश, बल्कि देश के सभी बड़े शहरों में सूद सभा के नाम से संगठित बिरादरी समाज निर्माण के कार्यों में अग्रणी भूमिका में है। शिमला में सूद सभा अपने प्रतिष्ठानों के माध्यम से जहां लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा रही है, वहीं बिरादरी के ट्रस्ट समाज में चिकित्सा, शिक्षा, जागरूकता तथा आवास में बेहतर सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। मौजूदा समय में सभा के अध्यक्ष संजय कुमार सूद बताते हैं कि सूद सभा शिमला आज भी अपने स्रोतों से करीब दो लाख की राशि केवल कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर रही है।
गोकुल बुटेल ने बढ़ाया मान
मौजूदा समय में पालमपुर से ही बुटेल परिवार के युवा व्यक्तित्व गोकुल बुटेल मुख्यमंत्री के आईटी सलाहकार बनकर राजनीति में प्रवेश पाए हुए हैं। इनसे पहले 1966 से 1980 तक कुंज बिहारी लाल बुटेल तीन बार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, जो पंडित नेहरू, महात्मा गांधी तथा इंदिरा गांधी के खासमखास में शुमार रहे। स्वतंत्रता के बाद प्रदेश की राजनीति में हेमराज सूद, पृथी चंद सूद, मेला राम सूद मिठू, आदर्श कुमार आदि विशेष रहे।
साक्षरता में अव्वल
बिरादरी की साक्षरता दर शत-प्रतिशत है, जबकि 98 प्रतिशत बिरादरी उच्च शिक्षा प्राप्त है।
भारतीय सेना में बिरादरी की पैठ
कै. यतिंद्र सूद वीर चक्र
स्क्वाडर्न लीडर घनश्याम दास
मेजर जनरल शुभ चिंतक दास
ब्रिगेडियर जितेंद्र सूद
ब्रिगेडियर कुलदीप सूद
ले. कर्नल संदीप सूद
विंग कमांडर अशोक सूद
कर्नल भूपेंद्र सूद
कर्नल ललित सूद
कर्नल सुरेश बंटा
कर्नल श्याम लाल सूद
ले. कर्नल सुमित सूद
ले. कर्नल सुरभि सूद
ले. कर्नल अतुल सूद
मेजर संसार सूद
मेजर कर्ण सूद
कै. वेद प्रकाश सूद
कै. विनोद सूद
कै. गोपाल कृष्ण सूद
सूदों ने बसाया धरोहर गांव गरली
अपने खर्चे पर बना दी थी पेयजल योजना, इंग्लैंड से मंगवाया गया था सामान
तत्कालीन एमएलसी तथा सूबे के प्रसिद्ध कारोबारी राय बहादुर मोहन लाल सूद द्वारा बसाए गए गरली धरोहर गांव को अंतराल बाद न केवल भारत सरकार ने धरोहर गांव का दर्जा दिया , बल्कि उनके द्वारा जनकल्याण के कार्यों को भी सुनहरी अक्षरों में दर्ज किया। उस समय पेयजल समस्या से अपने गांववासियों को निजात दिलाने के लिए उन्होंने सरकारी पहल का इंतजार नहीं किया, बल्कि अपने खजाने से करोड़ों रुपए की पेयजल योजना तैयार करके लोकार्पित कर दी। उक्त योजना निर्माण के लिए न केवल सामग्री ही इंग्लैंड से मंगवाई गई थी, बल्कि परियोजना के उद्घाटन के लिए स्वयं वायसराय गरली पहुंचे थे। यही वह स्थान था जहां बिनोवा भावे आदि संत महापुरुष भी अपनी महत्त्वपूर्ण गोष्ठियों के लिए सूद परिवार की मेजबानी स्वीकार करने में गर्व अनुभव करते थे। मात्र चंद सूद परिवारों द्वारा स्थापित गरली गांव के लोग आज भी उन महापुरुषों के सेवा भाव को बड़े अदब से याद करते हैं।
वास्तुकला में लाजवाब योगदान
गरली को धरोहर गांव का दर्जा दिलाने के पीछे यहां के निर्माण में देखने को मिलने वाली वास्तुकला की बड़ी भूमिका है । गांव में स्थापित स्लेटपोश हवेलियां, पत्थरों में नक्काशी, लकड़ी पर हस्तशिल्प का अनूठा नमूना प्रस्तुत किया गया है तथा इसी वास्तुकला को प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों तक भी पहुंचाया गया । राजस्थान की तर्ज पर वास्तुकला का उदाहरण सबसे पहले यहीं देखने को मिला, जिसका बाद में विस्तार भी हुआ।
एमएलए मेला राम सावर
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य मेला राम सावर 1972 से 1977 तक ज्वालामुखी से विधायक रहे । हालांकि उन्होंने यह चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीता था, लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हुए । उन्होंने जहां पंजाब इंटक के बड़े ओहदों को सुशोभित किया। वहीं राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे । आज 95 वर्ष की आयु में भी वह फेडरेशन ऑफ लेजिस्लेचर ऑफ इंडिया के अग्रणी सदस्य हैं।
व्यापारिक सितारे तथा प्रमुख हस्तियां
- लाला पूर्ण मल सूद राय साहब
- लाला हाकम मल सूद
- गज्जन मल सूद
- राय बहादुर जोधा मल कुठियाल
- राय बहादुर मोहन लाल सूद
- राय बहादुर ठाकुर दास
- जस्टिस जय लाल
- लाला अमर चंद सूद
- लाला आत्मा राम
- लाला रघुनाथ कठियाला
- चंदू लाल
- कैलाश चंद
- 13. छबील चंद
- बूटा शाह
- रैसमल
- मेला राम
- देवी सरण कड़ोल
18.किशोरी लाल भागड़ा
न्यायिक सेवाओं में बिरादरी की चमक व्यापारिक सितारे तथा प्रमुख हस्तियां
- लाला पूर्ण मल सूद राय साहब
- लाला हाकम मल सूद
- गज्जन मल सूद
- राय बहादुर जोधा मल कुठियाल
- राय बहादुर मोहन लाल सूद
- राय बहादुर ठाकुर दास
- जस्टिस जय लाल
- लाला अमर चंद सूद
- लाला आत्मा राम
- लाला रघुनाथ कठियाला
- चंदू लाल
- कैलाश चंद
ृ13. छबील चंद
- बूटा शाह
- रैसमल
- मेला राम
- देवी सरण कड़ोल
18.किशोरी लाल भागड़ा
ये हैं प्रमुख उपजातियां
- कड़ोल
- बंटा
- महदूदिया
- चीमड़ा
- कुठियाला
- डोगर
- गोयल
- वाघला
- बुटेल
- मसंद
- भारिया
12.भागड़ा
- विसोलिया
- जायसवाल
- बजवाडिया
- मेहता
कुशल प्रशासक
कुशल उद्यमियों के रूप में जहां करीब पांच सौ साल तक सूद बिरादरी का आधिपत्य रहा, वहीं प्रशासनिक सेवाओं के उच्च पदों पर रह कर भी समुदाय को गौरवान्वित किया।
एसके सूद सचिव प्रदेश सरकार
महेंद्र लाल सूद आईएएस
कै. नरपेंद्र सूद आईएएस
इंजीनियर डीआर सूद विद्युत बोर्ड
इंजीनियर पीके सूद विद्युत बोर्ड
इंजीनियर आरएल सूद आईपीएस
आरके सूद आईएफएस
संजय सूद आईएफएस
व्यावसायिक गतिविधियों में रुझान
स्वतंत्रता प्राप्ति तक उद्यमों में विशेष स्थान रखने वाला सूद समुदाय वर्तमान में व्यावसायिक गतिविधियों से विमुख हुआ है। शैक्षणिक स्तर बढ़ने से अन्य क्षेत्रों तथा सार्वजनिक सेवाओं में नई पीढ़ी का रुझान बढ़ा है।
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