पुष्पक विमान है बड़ा आध्यात्मिक आश्चर्य

By: Nov 18th, 2017 12:05 am

विमान पर अति-सुंदर मुख एवं पंख वाले अनेक विहंगम चित्र बने थे, जो एकदम कामदेव के सहायक जान पड़ते थे। यहां गजों की सज्जा मूंगे और स्वर्ण निर्मित फूलों से युक्त थी तथा उन्होंने अपने पंखों को समेट रखा था, जो देवी लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए से प्रतीत होते थे…

-गतांक से आगे…

पुष्पक उल्लेख

प्राचीन हिंदू साहित्य में देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए अनेक विमानों का वर्णन मिलता है। जैसे वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पाचार्य विश्वकर्मा द्वारा पितामह ब्रह्मा के प्रयोग हेतु पुष्पक विमान का निर्माण किया गया था। विश्वकर्मा की माता सती योगसिद्धा थीं। देवताओं के साथ ही आठ वसु भी बताए जाते हैं, जिनमें आठवें वसु प्रभास की पत्नी योगसिद्धा थीं। यही प्रभास थे जिन्हें महाभारत के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था कि उन्हें मृत्यु लोक में काफी समय व्यतीत करना होगा। तब गंगा ने उनकी माता बनना स्वीकार किया तथा गंगा-शांतनु के आठवें पुत्र के रूप में उन्होंने देवव्रत नाम से जन्म लिया था। कालांतर में अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण वह भीष्म कहलाए थे। इन्हीं प्रभास-योगसिद्धा संतति विश्वकर्मा द्वारा देवताओं के विमान, अस्त्र-शस्त्र तथा महल-प्रासादों का निर्माण किया जाता था। वाल्मीकि रामायण में इस विमान का विस्तार से वर्णन है। यह मेघों के समान उच्च, स्वर्ण समान कांतिमय, पुष्पक भूमि पर एकत्रित स्वर्ण के समान प्रतीत होता था। ढेरों रत्नों से विभूषित, अनेक प्रकार के पुष्पों से आच्छादित तथा पुष्प-पराग से भरे हुए पर्वत शिखर के समान शोभा पाता था। आकाश में विचरण करते हुए यह श्रेष्ठ हंसों द्वारा खींचा जाते हुए दिखाई देता था। इसका निर्माण अति सुंदर ढंग से किया गया था एवं अद्भुत शोभा से संपन्न दिखता था। इसके निर्माण में अनेक धातुओं का प्रयोग इस प्रकार से किया गया था कि यह पर्वत शिखर ग्रहों और चंद्रमा के कारण आकाश और अनेक वर्णों से युक्त विचित्र शोभासंपन्न दिखता था। उसका भूमि क्षेत्र स्वर्ण-मंडित कृत्रिम पर्वतमालाओं से परिपूर्ण था। वहां अनेक पर्वत वृक्षों की विस्तृत पंक्तियों से हरे-भरे रचे गए थे। इन वृक्षों पर पुष्पों का बाहुल्य था एवं ये पुष्प पंखुडि़यों से पूर्ण मंडित थे। उसके अंदर श्वेत वर्ण के भवन थे तथा उसे विचित्र वन और अद्भुत सरोवरों के चित्रों से सज्जित किया गया था। वह रत्नों की आभा से प्रकाशमान था एवं आवश्यकतानुसार कहीं भी भ्रमण करता था। इसकी शोभा अद्भुत थी जिसमें नाना प्रकार के रत्नों से अनेक रंगों के सर्पों का अंकन किया गया था तथा अच्छी प्रजाति के सुंदर अंग वाले अश्व भी बने थे। विमान पर अति-सुंदर मुख एवं पंख वाले अनेक विहंगम चित्र बने थे, जो एकदम कामदेव के सहायक जान पड़ते थे। यहां गजों की सज्जा मूंगे और स्वर्ण निर्मित फूलों से युक्त थी तथा उन्होंने अपने पंखों को समेट रखा था, जो देवी लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए से प्रतीत होते थे। उनके साथ ही वहां देवी लक्ष्मी की तेजोमय प्रतिमा भी स्थापित थी, जिनका उन गजों द्वारा अभिषेक हो रहा था। इस प्रकार सुंदर कंदराओं वाले पर्वत के समान तथा बसंत ऋतु में सुंदर कोटरों वाले परम सुगंध युक्त वृक्ष के समान वह विमान बड़ा मनोहारी था। हनुमान जी ने जब इस अद्भुत विमान को देखा तो वह भी आश्चर्यचकित हो गए थे। रावण के महल के निकट रखे हुए इस विमान का विस्तार एक योजन लंबा और आधे योजन चौड़ा था एवं सुंदर महल के समान प्रतीत होता था। इस दिव्य विमान को विभिन्न प्रकार के रत्नों से भूषित कर स्वर्ग में देवशिल्पी विश्वकर्मा ने ब्रह्मा के लिए निर्मित किया था जो कालांतर में रावण के अधिकार में आ गया। यह विमान पूरे विश्व के लिए उस समय किसी आश्चर्य से कम नहीं था, न ही अब है।

पौराणिक संदर्भ

विमान निर्माण, उसके प्रकार एवं संचालन का संपूर्ण विवरण महर्षि भारद्वाज विरचित वैमानिक शास्त्र में मिलता है। यह ग्रंथ उनके मूल प्रमुख ग्रंथ यंत्र-सर्वेश्वम् का एक भाग है। वैमानिक-शास्त्र में आठ अध्याय, एक सौ अधिकरण, पांच सौ सूत्र (सिद्धांत) और तीन हजार श्लोक हैं। यह ग्रंथ वैदिक संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस विमान में जो तकनीक प्रयोग हुई है, उसके पीछे आध्यात्मिक विज्ञान ही है। ग्रंथों के अनुसार आज किसी भी पदार्थ को जड़ माना जाता है, किंतु प्राचीन काल में सिद्धिप्राप्त लोगों के पास इन्हीं पदार्थों में चेतना उत्पन्न करने की क्षमता उपलब्ध थी, जिसके प्रयोग से ही वे विमान की भांति परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाले यंत्र का निर्माण कर पाते थे। वर्तमान काल में विज्ञान के पास ऐसे तकनीकी उत्कृष्ट समाधान उपलब्ध नहीं हैं, तभी ये बातें काल्पनिक एवं अतिशयोक्तिपूर्ण लगती हैं।


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