केदारनाथ सिंह : हिंदी कविता को दी नई पहचान

By: Mar 25th, 2018 12:05 am

स्मृति विशेष

केदारनाथ सिंह (जन्म : 7 जुलाई 1934 – मृत्यु 19 मार्च 2018) हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे। वे अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन्हें वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने का निर्णय किया गया। वे यह पुरस्कार पाने वाले हिंदी के 10वें लेखक थे।

जीवन परिचय

केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई 1934 ई. को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में हुआ था। उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय से 1956 ई. में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनका निधन 19 मार्च 2018 को दिल्ली में उपचार के दौरान हुआ। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र में बतौर आचार्य और अध्यक्ष काम किया था।

योगदान

केदारनाथ सिंह की प्रमुख काव्य कृतियां ‘जमीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘उत्तर कबीर’, ‘टालस्टॉय और साइकिल’ तथा ‘बाघ’ हैं। उनकी प्रमुख गद्य कृतियां ‘कल्पना और छायावाद’, ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान’ और ‘मेरे समय के शब्द’ हैं।

मुख्य कृतियां कविता संग्रह

अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है. यहां से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं, टालस्टॉय और साइकिल, सृष्टि पर पहरा आदि।

आलोचना

कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्द, मेरे साक्षात्कार

संपादन

ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएं, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)

पुरस्कार

उन्हें वर्ष 1989 में उनकी कृति ‘अकाल में सारस’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। इसके अलावा उन्हें व्यास सम्मान, मध्य प्रदेश का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, उत्तर प्रदेश का भारत-भारती सम्मान, बिहार का दिनकर सम्मान तथा केरल का कुमार आशान सम्मान मिला था। उनको वर्ष 2013 में प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वे हिंदी के 10वें लेखक थे।


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