टॉयलट का शिलान्यास: निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक

By: निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक Nov 23rd, 2020 12:06 am

मंत्रिमंडल की बैठक में अनेक मुद्दे निपट गए, लेकिन इस पर मतैक्य नहीं था कि मुख्यमंत्री को टॉयलट का शिलान्यास करना चाहिए या सीधे इसके उद्घाटन पर ही मंच को संबोधित करें। वैसे मुख्यमंत्री सरल स्वभाव के हैं, कहीं भी शिलान्यास कर देते हैं। अब तक उन्होंने ऐसे कई शिलान्यास कर दिए, जिनके लिए न बजट है और न कभी होगा, लेकिन जनता इनमें भी अपना नसीब देख रही है। वैसे भारतीय जनता के लिए नसीब की बात भी यही है कि उसके आसपास शिलान्यासों के अधिकतम पत्थर पहरेदारी करें। पहले इसी तरह एक लंबी चरागाह को देखते हुए शिलान्यास करने का ख्याल पिछली सरकार को आया तो वहां गोशाला, फिर गो सेंचुअरी के शिलान्यास हुए, लेकिन सरकार बदलते ही इलाके के खेल मंत्री ने इसे बड़े स्टेडियम के आकार में देखते हुए पुनः नया शिलान्यास करवा डाला।

 मंत्रिमंडल के फेरबदल में विभाग बदल गया, लिहाजा अब वन मंत्री के रूप में वह इसी मैदान पर अद्भुत जंगल लगाने के लिए मुख्यमंत्री को बुला रहे हैं। सुना है पहले इसकी बाड़बंदी का वह स्वयं तथा बाद में पूरी परियोजना का मुख्यमंत्री से शिलान्यास कराएंगे। मंत्रिमंडल की बैठक में सभी मंत्रियों की अभिलाषा के रूप में कई शिलान्यासों पर चर्चा हो रही थी। किसी ने कहा कि पिछली सरकार ने दस हजार एक सौ शिलान्यास किए, तो वर्तमान सत्ता को कम से कम इक्कीस हजार शिलान्यास कराने चाहिएं। इस पर भी गौर हुआ कि पत्थर चुनने, खुदवाने और लगवाने का ठेका किसे दिया जाए।

 यहां मंत्रियों के बीच प्रतिस्पर्धा थी और इसलिए सभी ने हजार-हजार शिलान्यास का लक्ष्य लिया और बाकी मुख्यमंत्री को छोड़ दिए। इस तरह कई परियोजनाओं के साथ मुख्यमंत्री के हिस्से में टॉयलटों के शिलान्यास भी आ गए। टॉयलट अब वर्तमान सरकार की छवि से जुड़ गया, लेकिन राजनीति में ऐसे अवसर भी बड़े हो जाते हैं। कितना बड़ा काम शिलान्यास का पत्थर कर सकता है, इस पर सत्ता को भरोसा था और इसलिए टॉयलट को ब्रांड मानकर बड़ी योजना बनाई गई। प्रचार के लिए पूरा विभाग लगा और सारे प्रदेश में पोस्टर चस्पां कर दिए। तब से मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश का चक्कर लगा रहे हैं। हर दिन दर्जनों टॉयलटों की बुनियाद पर खड़ी जनता नेताओं का आवभगत करती है। टॉयलट के शिलान्यास से गांव की आर्थिकी को बल मिल रहा है। हर शिलान्यास पट्टिका के लिए मारबल, ईंट, सीमेंट और रेत के साथ-साथ मजदूर-मिस्त्री की दिहाड़ी चल रही है। हर शिलान्यास के बहाने गांव की दुकानें, शामियाने का काम, फूलमालाओं की बिक्री और साउंड सिस्टम की दरें उफान पर हैं।

 टॉयलट शिलान्यास के बहाने आर्थिकी के साथ-साथ नए कार्यकर्ता तथा पुरानों को नेता बनने का अवसर उपलब्ध हो रहा है। विपक्ष हैरान है कि बिना टॉयलट बनाए सरकार अपना काम कर गई, जबकि उसके पास आलोचना करने की भी शक्ति नहीं। अब टॉयलट शिलान्यास की कार्यकारिणी भी बन गई है। प्रचार समिति यह ध्यान रखती है कि मीडिया खुश रहे और मीडिया वाकई इस बहाने सरकार के एक जैसे प्रेस नोट छापकर वफादारी पर उतर आया है, क्योंकि अब मात्र टॉयलट का शिलान्यास नहीं, अखबार का विज्ञापन व टीवी का पेड मैसेज भी तो है। जिस तरह टॉयलट शिलान्यासों की संख्या बढ़ रही है, हर दिन कोई न कोई राष्ट्रीय सम्मान प्रदेश को मिलने लगा है। मुख्यमंत्री टॉयलट के कारण क्रांतिकारी हो गए, लेकिन स्वच्छता अभियान की वजह खत्म हो गई। हर जगह शिलान्यासों से टॉयलट का पता चलता है, जबकि जनता के सामने अब भी सपनों की सड़ांध पैदा हो रही है।


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