आत्मनिर्भरता को चाहिए गुणवत्ता: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार Dec 4th, 2020 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान के महान अनुभव से सबक लेने की जरूरत है, जब इसने पुनर्निर्माण शुरू किया। आकियो मोरिता ने महान नाम सोनी स्थापित किया, जबकि मतशुशिता ने नेशनल की नींव रखी। जापानी तकनीशियनों के एक समूह ने जब अमरीका की यात्रा की तो उनसे पूछा गया कि आपको किस तरह की प्रौद्योगिकी चाहिए? जवाब यह था : ‘जो हमारे राष्ट्रीय हितों को पूरा कर सके।’ 70 के दशक के मध्य में जापानी राष्ट्र का पुनर्निर्माण कर रहे थे और उन्होंने अनुभव किया कि उनके उत्पादों की क्वालिटी निम्न है। पुराने समय में जब हम बाजार में कुछ खरीदने जाते थे तथा उत्पाद पर अगर ‘मेड इन जापान’ लिखा होता था तो हम इसे रद कर देते थे क्योंकि इसकी गुणवत्ता निम्न हुआ करती थी…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिमाग नवाचार से भरपूर है और वह समय-समय पर नई परियोजनाओं और विचारों के साथ सामने आते हैं। जब कोरोना वायरस ने भारत को बुरी तरह प्रभावित किया तो उन्होंने ‘घर पर रहें, सुरक्षित रहें की पैरवी की। इसका स्थानीय भाषा में अनुवाद इस तरह किया गया : जान है तो जहान है। अर्थात अगर हमारा अस्तित्व बचा रहता है तो ही संसार है। उन्होंने कई ऐसे प्वाइंटर्स और प्रोजेक्ट्स दिए हैं। इस प्रक्रिया में दो प्रोजेक्ट महत्त्वपूर्ण हैं। एक उत्पादन से संबंधित है तथा दूसरा आत्मनिर्भरता से जुड़ा है। ये दोनों एक ही सिक्के को दो पहलू हैं। कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय बाजार में ‘क्वालिटी मैन्युफैक्चरिंग के प्रोडक्शन तथा प्रयोग के बिना सफल नहीं हो सकता है। भारत को क्वालिटी आइटम उत्पादित करनी हैं तथा ऐसी उच्च विश्वसनीय सेवाएं उपलब्ध करवानी हैं जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्पर्धा कर सकें।

मैं देश में निम्न क्वालिटी के कई ऐसे उत्पादों से परिचित हूं जो कि हमें स्पर्धा में लाभ की स्थिति दिलाने में सक्षम नहीं हैं। भारत में क्वालिटी कंट्रोल अपरिहार्य स्तर का नहीं है। मैं यहां निजी अनुभव बताना चाहता हूं। मैंने दो साल पहले हिमाचल में एक परचून व्यापारी से हॉट-कोल्ड एयर कंडीशनर खरीदा। तीन माह में ही इसने काम करना बंद कर दिया तथा मैंने इस संबंध में शिकायत दर्ज करवा दी। मेरी शिकायत सुनी गई, किंतु तकनीशियन ने मुझे बताया कि एक पैनल को बदलना पड़ेगा। मैंने उसे बताया कि चूंकि प्रोडक्ट गारंटी पीरियड में है, इसलिए उन्हें इसे बदलना चाहिए। तकनीशियन ने मुझे बताया कि कंपनी किसी टुकड़े को बदलती नहीं है, किंतु किसी हिस्से को रिपेयर करती है, जब पैनल उपलब्ध होगा। मुझे बताया गया था कि यह नया मॉडल है तथा पैनल भी संभवतः शीघ्र ही आ जाएगा क्योंकि स्पेयर पार्ट्स का निर्माण हो रहा है। यह चलता रहा और मैंने दोबारा शिकायत दर्ज करवा दी।

मैं इतना परेशान हुआ कि मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक ट्वीट भेजा। वहां से मुझे जवाब आया, कोई मेरे पास आ गया, किंतु उन्होंने मुझे बताया कि यह उत्पाद पुराना है तथा गारंटी की योजना के तहत नहीं आता है। मैंने उन्हें बताया कि उत्पाद जब गारंटी के तहत था, तभी मैंने इसकी शिकायत कर दी थी। इस संबंध में अब तक कुछ भी नहीं किया गया है, सिवाय इसके कि मुझे एक कॉल आई जिसमें मुझे कहा गया कि अगर मैं एक नया उत्पाद खरीदता हूं तो मुझे 20 फीसदी डिस्काउंट दिया जाएगा। मैंने उनसे पूछा कि वे क्या सेल कर रहे हैं अथवा एक डिफेक्टिव उत्पाद की सर्विस कर रहे हैं? फिर भी कुछ नहीं हुआ। इस तरह के उत्पाद और सेवाएं कोरिया अथवा चीन से स्पर्धा नहीं कर सकती हैं। भारत में फिर क्या बचता है? मैंने तीन साल के भीतर ही दूसरा एसी खरीद लिया है तथा वह ठीक ढंग से काम कर रहा है। यह अलग ब्रांड का है तथा इसे राजस्थान में निर्मित किया गया है। एक एसी जबकि शर्मनाक सेवा व निर्माण का उदाहरण है तथा दूसरा उत्कृष्टता का नमूना है। ‘मेक इन इंडिया’ को सफल बनाने का मार्ग यही है कि हम ऐसे उत्पाद और सेवाएं एजाद करें कि वे आधुनिक विश्व की शेष आइटम्स से स्पर्धा कर सकें। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान के महान अनुभव से सबक लेने की जरूरत है, जब इसने पुनर्निर्माण शुरू किया। आकियो मोरिता ने महान नाम सोनी स्थापित किया, जबकि मतशुशिता ने नेशनल की नींव रखी। जापानी तकनीशियनों के एक समूह ने जब अमरीका की यात्रा की तो उनसे पूछा गया कि आपको किस तरह की प्रौद्योगिकी चाहिए?

जवाब यह था ः ‘जो हमारे राष्ट्रीय हितों को पूरा कर सके।’ 70 के दशक के मध्य में जापानी राष्ट्र का पुनर्निर्माण कर रहे थे और उन्होंने अनुभव किया कि उनके उत्पादों की क्वालिटी निम्न है। पुराने समय में जब हम बाजार में कुछ खरीदने जाते थे तथा उत्पाद पर अगर ‘मेड इन जापान’ लिखा होता था तो हम इसे रद कर देते थे क्योंकि इसकी गुणवत्ता निम्न हुआ करती थी। आज हमें भी उत्पादों और सेवाओं की निम्न गुणवत्ता के चरण से गुजरना पड़ रहा है। जापान ने राष्ट्रीय संकल्प लिया कि वे विश्व में उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुएं ही उत्पादित करेंगे। उन्होंने अमरीका से ‘जुरान एंड डेमिंग’ विशेषज्ञों द्वारा दी गई सलाह व प्रशिक्षण का इस्तेमाल किया। इन विशेषज्ञों ने क्वालिटी सर्कल्स तथा क्वालिटी बदलने की पूरी प्रक्रिया में इन्वेस्ट किया था। दस साल के भीतर, जब मैंने ओगीशिमा स्टील प्लांट तथा अन्य प्रोडक्शन यूनिट की यात्रा की तो मैंने पाया कि वे विश्व के सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले उत्पाद बना रहे थे। जापान ने निर्माण क्षेत्र में व्यापक बदलाव किए और अब उच्च गुणवत्ता उसकी पहचान बन गई है। इस तरह वह समय भी जल्द ही आ गया जब हम जापानी उत्पादों की ओर देखने लगे जो कि विश्व में उच्च गुणवत्ता के उत्पाद हैं।

जापान निर्माण और सेवाओं के क्षेत्र में निम्न गुणवत्ता से विश्व की उच्च गुणवत्ता के स्तर पर कैसे आया, यह विषय मेरे द्वारा दिल्ली में स्थापित ‘फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट’ के एमबीए के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम में भी शामिल रहा है। मैंने इसके विषय में छात्रों को खूब ज्ञान दिया। मैं कामना करता हूं कि प्रधानमंत्री आकियो मोरिता द्वारा पराक्रमित ‘मेड इन जापान’ पढ़ें, जो सोनी के रूप में उभरा है। हो सकता है वह इसे पढ़े चुके हों। प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भरता अभियान को अगर सफल करना है, तो इसी तरह का काम हमें भी करना होगा। जापान के इस कार्य से हमें यही सीख मिलती है। भारतीय उत्पादों व सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने की सख्त जरूरत है। उच्च गुणवत्ता के जरिए ही भारतीय उत्पाद विश्व बाजार में स्पर्धा कर पाएंगे। भारतीय उत्पादों को विश्वभर में आगे रखने का यही मंत्र है। उत्पादों और सेवाओं के क्षेत्र में आजकल कड़ी प्रतिस्पर्धा है। विश्वभर की अनेक कंपनियां सेवा प्रदाता की भूमिका में हैं। कोई भी ऐसी कंपनी नहीं है जो बिना गुणवत्ता के बाजार में टिकी हो। इसलिए हर कंपनी बेहतर से बेहतर गुणवत्ता के उत्पाद और सेवाएं देने की कोशिश करती है। दूसरी ओर भूमंडलीकरण के कारण आज हर क्षेत्र में स्पर्धा कड़ी हो गई है। लिहाजा क्वालिटी कंट्रोल जरूरी है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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