बिना जमीन के खेती बदलेगी किस्मत
क्या मिट्टी के बिना खेती की कल्पना की जा सकती है। जी हां, ऐसा अब संभव हो गया है। इस तकनीक का नाम है हाइड्रोपोनिक्स। आने वाले दिनों में यह बेहद लोकप्रिय हो सकती है । पेश है यह खबर…
नई तकनीक में पानी की खपत भी कम
हम अकसर यह सुनते हैं कि खेती की जमीन का दायरा कम हो रहा है, साथ ही भू जल स्तर भी घट रहा है। यही चलता रहा, तो आने वाले दिनों में खेती कैसे होगी। तो इस सवाल का जवाब है खेती की नई तकनीक, जिसका नाम है हाइड्रोपोनिक्स। देशभर में यह तकनीक किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है। हाइड्रोपोनिक्स यानी जलीय कृषि।
इस तकनीक से खेती करने में जमीन की जरूरत नहीं होती है। खास बात यह कि इसमें पानी भी बेहद कम लगता है। इसके बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए हमारे सीनियर जर्नलिस्ट जयदीप रिहान ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा. प्रदीप से बात की। उन्होंने बताया कि जमीन में एक किलो सब्जी उगाने में 1800 से तीन हजार लीटर तक पानी लगता है, लेकिन नई तकनीक से यह काम महज 15 लीटर पानी से हो जाता है। इसमें सिर्फ पानी के अलावा पोषक तत्व और सूरज की रोशनी आवश्यक है। इस तकनीक से सारा साल पैदावार की जा सकती है। खासकर सब्जी के लिए यह बहुत ही कारगर है।
बुरांस से महके बाजार
पहाड़ों पर आय का है बड़ा साधन, दूर-दूर से आते हैं ग्राहक
गर्मियों में हिमाचल के बाजारों में बुरांस खूब महकता है। पहाड़ों पर पाए जाने वाले इस फूल में कई औषधीय गुण हैं। पढि़ए जोंिगंद्रनगर से यह खास खबर…
बुरांस की चटनी का नाम सुनते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है। गर्मी की आहट के साथ ही हिमाचल के बाजारों में इस फूल ने दस्तक दे दी है। चंबा, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू और सोलन आदि के बाजारों में यह फूल खूब बिक रहा है। जोगिंद्रनगर से हमारे संवाददाता दीपक चौहान ने बताया कि सड़क किनारे कई लोग इन फूलों को बेच रहे हैं। इस दौरान 77 वर्षीय गौमती देवी ने बताया कि उ्रन्हें बेसब्री से इस सीजन का इंतजार रहता है।
वह सड़क किनारे बैठकर इन फूलों को बेचती हैं। दिन में 250 रुपए तक के फूल बिक जाते हैं। ग्राहक इन फूलों से चटनी के अलावा चूर्ण भी बनाते हैं। ये फूल लिवर के अलावा अस्थि रोग के लिए भी रामबाण माने जाते हैं। इसका रस मधुमेह के लिए भी उपयोगी है। बहरहाल गोमती जैसे कई किसान किसान बुरांस को अपनी आर्थिकी का बड़ा सहारा मानते हैं। गौर रहे कि बुरांस के पत्तियों का चूर्ण हृदय, लीवर व हड्डी रोग के लिए रामबाण है वहीं बुरांस के फलों का रस मधुमेह के लिए सबसे उचित बताया गया है।
युसूफ ने इस तकनीक से उगाया आलू
ऊना। अब मिट्टी ही नहीं पानी में भी उग सकता है आलू। ऊना के प्रगतिशील किसान युसूफ ने हाइड्रोपोनिक्स विधि से आलू तैयार किया है। युसूफ पहले भी हाइड्रोपोनिक से कई सब्जियों का उत्पादन कर चुके हैं। गौर रहे कि लॉकडाउन के बीच युसूफ ने हाइड्रोपोनिक तकनीक के जरिए ही फूल गोभी और ब्रॉकली की सफल पैदावार की थी, वहीं अब युसूफ खान ने इस विधि से आलू के उत्पादन का भी परीक्षण किया है। युसूफ खान का यह प्रयोग काफी हद तक सफल रहा है।
पहाड़ों पर अंबर की बेरुखी से डरे बागबान
इन दिनों नए बागीचे लगाने का दौर है,लेकिन बागबानों को नए डर ने घेर लिया है। उन्हें आशंका है कि मौसम उनका खेल न बिगाड़ दे। पढि़ए, बागबानों की आशंकाओं पर यह खास खबर हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों में इन दिनों नए बूटे लगाए जाते हैं। शिमला-सिरमौर से चंबा तक बागबान नए पौधे लगा रहे हैं, लेकिन बागबानों में एक नई तरह का डर पनप गया है। बागबानों को लग रहा है कि अब तक बारिश और हिमपात उम्मीद के मुताबिक नहीं हुए हैं। ऐसे में प्रोडक्शन पर बुरा असर पड़ सकता है।
बर्फ का इंतजार कर रहे बागबानों का हाल जानने के लिए अपनी माटी टीम ने सिरमौर जिला के नौहराधार एरिया का दौरा किया। हमारे सहयोगी संजीव ठाकुर ने कुछ बागबानों से बात की। रजनीश का कहना था कि इस बार हिमपात बहुत कम हुआ है। इससे पैदावार पर बुरा असर हो सकता है। वहीं गुमान सिंह का कहना था कि करीब 20 साल बाद ऐसा रूखा मौसम देखने को मिला है। उन्हें डर है कि कहीं चिलिंग आवर्ज में ही कमी न रह जाए। बहरहाल पूरे प्रदेश के किसानों और बागबानों की निगाहें अभी अंबर पर हैं। उम्मीद है आने वाले दिनों में हालात बेहतर होंगे। रिपोर्टः निजी संवाददाता, नौहराधार
सेब के लिए मार्च तक पूरे होंगे चिलिंग आवर्स
ठियोग — ताजा बारिश के बाद ऊंचाई वाले इलाकों में बागबानों को अब कुछ बारिश की उम्मीद जगी है। बागबानी विशेषज्ञों का मानना है कि मार्च तक चिलिंग ओवर्स पूरे होने की उम्मीद है। प्रदेश में तापमान बढ़ जाने से पौधों में फूल खिलने का क्रम शुरू हो जाता है। इसका सीधा प्रभाव फलों की सेटिंग में भी पड़ता है फलों को पैदावार भी घटती है। बागबानी विशेषज्ञों का कहना है सेब और अन्य फलों को 1600 चिलिंग आवर्स की जरूरत रहती है। सेब की कई किस्में ऐसे भी विकसित की गई हैं, जिनको नौ सौ चिलिंग आवर्स की जरूरत रहती है। प्रदेश में तापमान एक डिग्री से 7.2 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, तो पौधों की जरूरत पूरी हो जाता है।
इतने चिलिंग आवर्स जरूरी
चिलिंग ऑवर्स सेब के लिए 900 से 1600 घंटे, प्लम को 400 से 700 घंटे, नाशपाती को 400 से 900 घंटे, खुमानी को 200 से 500 घंटे, आडू को 200 से 800 घंटे, चरी को 400 से 700 घंटे चाहिए होते हैं।
लेवेंडर की तरफ मुड़े प्रदेश के बागबान
भुंतर — स्पेन-फ्रांस और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में सबसे ज्यादा पैदा होने वाला हर्बल पौधा लेवेंडर अब कुल्लू सहित प्रदेश के अन्य जिलों में भी बड़े पैमाने पर उगेगा। इस विदेशी हर्बल पौधे की बड़े स्तर पर खेती करने के लिए चंबा के बाद कुल्लू और अन्य जिलों के किसानों ने भी बड़़े स्तर पर की है। लिहाजा, आने वाले सालों में लेवेंडर प्रदेश के किसानों की काया पलट सकता है। चंबा में लेवेंडर की खेती कुछ स्थानों पर हो रही है और अन्य जिलों में इसकी फिलहाल शुरुआत हो रही है। लेवेंडर पुदीना परिवार का एक पौधा है, जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की दवाइयों और अन्य उत्पादों में किया जाता है। लेवेंडर के पौधे का तेल खाने के साथ साबुन, इत्र और सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयोग होता है तो कई तरह की बीमारियों की रोकथाम में भी किया जाता है। बहरहाल लेवेंडर की तरफ बागबानों का रुझान बढ़ा है।
प्लम की नई किस्में उगाना अब बेहद आसान
हिमाचल में अब प्लम की आधुनिक किस्मों की खेती करना आसान होगा। इसके लिए बागबानों को हर जानकारी समय पर मिल जाएगी। सिरमौर जिला के राजगढ़ से नई पहल हुई है। पढि़ए यह खबर
सिरमौर जिला के राजगढ़ में अन्य पहाड़ी इलाकों की तरह प्लम की बेहतर उपज होती है। इसमें बागबानों को कई तरह की मुश्किलें होती हैं। मसलन नई किस्में व समय पर उसकी देखभाल व मार्केटिंग की जानकारी न होने से प्रोडक्शन पर कहीं न कहीं बुरा असर पड़ता है। बागबानों की इन्हीं मुश्किलों को कम करने के लिए राजगढ़ में प्लम उत्पादक संघ का गठन हुआ है। यह संघ कैंप लगाकर बागबानों को जागरूक कर रहा है।
संघ के फाउंडर सदस्य दीपक सिंघा व् नौणी विश्वविद्यालय से रिटायर्ड डा. जेएस चंदेल लोगों को जागरूक रहे हैं। हाल ही में यहां लगे कैंप में दोनों विशेषज्ञ विशेष रूप से उपस्थित हुए । उन्होंने बागबानों के हर सवाल का आसान जवाब दिया। इस दौरान राजगढ़ यूनिट के अध्यक्ष सनम चोपड़ा ने बताया कि नई किस्मों के अलावा बागबानों को नई तकनीक व रूट स्टॉक के प्रति प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संघ ने मार्केटिंग के लिए भी स्पेशल प्लान बनाया है,ताकि बागबानों को उनकी मेहनत का पूरा फल मिल सके। रिपोर्टः नितिन भारद्वाज, राजगढ़
प्लम-खुमानी पर न करें छिड़काव
भुंतर — फलों की घाटी कुल्लू में ऋतु परिवर्तन के बाद वसंत ने दस्तक दे दी है। प्रदेश के निचले व कम ऊंचाई वाले इलाकों में गुठलीदार फलों ने बाग-बागीचों को प्राकृतिक रंगों से सराबोर कर डाला है। सफेद व लाल रंग के फूल सैलानियों को आकर्षित करने लगे हैं, वहीं फ्लावरिंग प्रक्रिया में तेजी आने के साथ बागबानों ने बागानों में डेरा डालने की तैयारी कर ली है। दूसरी ओर बागबानी विशेषज्ञों ने बागबानों को फूलों पर किसी प्रकार का छिड़काव न करने की सलाह देते हुए इनके परागण की व्यवस्था करने को कह दिया है। वसंत का असर जिला के निचले इलाकों भुंतर, बजौरा, नौहराधार, रामपुर व राजगढ़ आदि में खूब है। प्लम, आड़ू और खुमानी जैसे गुठलीदार फलों में फ्लावरिंग की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। वैज्ञानिक डा. भूपिंद्र ठाकुर ने सलाह देते हुए कहा है कि वे फूलों पर किसी भी प्रकार की स्प्रे न करें। उनका कहना है कि फूलों पर स्प्रे करने से परागण प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने वाले कीट मर जाते हैं और परागण प्रक्रिया प्रभावित होने से उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है।
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