पंजाब का ‘गज़ब गुरु’

By: Jul 23rd, 2021 12:05 am

गुरु! क्या गज़़ब पारी की शुरुआत की है? पंजाब कांग्रेस के 62 विधायकों, तीन मंत्रियों समेत, के साथ नए प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने अमृतसर के पावन स्वर्ण मंदिर में मत्था टेका, तो अपनी ताकत की नुमाइश की। ‘गुरुÓ अकेला नहीं है। ऐसे विश्लेषण गलत साबित हुए। ओहदे में भी ताकत होती है, लिहाजा दूसरे सामान्य चेहरे मक्खियों की तरह भिनभिनाने लगते हैं। स्वर्ण मंदिर के भीतर उमड़ी नेताओं की भीड़ भूल गई कि कोरोना का कहर पंजाब ने खूब झेला है। मौतें भी कंपा देने वाली हुई हैं। कोई मास्क नहीं, दो गज की दूरी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। नई सत्ता और सियासत गारंटी नहीं देती कि भीड़ को संक्रमण नहीं होगा। बहरहाल पंजाब कांग्रेस में सिद्धू ने ‘ठोकोÓ के अंदाज़ में अपनी नई पारी का आगाज़ किया है। पार्टी विधायकों और नेताओं को अपने अमृतसर आवास पर नाश्ते का न्योता दिया और लामबंदी की कोशिशें शुरू कीं। ढोल-नगाड़ों और भंगड़े से स्वागत किया गया, मानो कोई योद्धा युद्ध जीत कर लौटा हो! औपचारिक ताजपोशी आज है। उसी के साथ पंजाब कांग्रेस में दो शक्ति-केंद्रों का उदय होगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह फिलहाल मुख्यमंत्री हैं और सिद्धू को कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष बना कर नया नेतृत्व सौंपा है। यह संपादकीय लिखने तक कैप्टन ने ‘गुरुÓ को न तो बधाई दी थी और न ही मुलाकात का हाथ बढ़ाया था।

 सिद्धू ने भी माफी मांगने से इंकार कर दिया। टकराव और खिंचाव दोनों तरफ है। समन्वय सवालिया है। हालांकि कैप्टन ने आश्वस्त किया था कि वह आलाकमान सोनिया गांधी के निर्णय का सम्मान करेंगे, लेकिन अभी तक की मुद्रा से स्पष्ट है कि उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के निर्णय को चुनौती दी है, ठेंगा दिखा दिया है। ‘गुरु’ का स्वागत और शक्ति-प्रदर्शन स्वाभाविक हैं, क्योंकि अब वह पंजाब के कांग्रेसियों की नियति हैं, लेकिन इससे कैप्टन कमजोर होकर पराजित होने के कगार पर हैं, ऐसे राजनीतिक विश्लेषण अपरिपक्व होंगे। कैप्टन एक घाघ और अनुभवी नेता हैं, पांच दशक की सियासत देखी है, बल्कि पंजाब की राजनीति में वह अकाली दल पितामह प्रकाश सिंह बादल के बाद दूसरे महत्त्वपूर्ण युग के नायक माने जाते रहे हैं। वह अभी तक पंजाब में कांग्रेस के प्रतीक और प्रारब्ध रहे हैं। ऐसे नेता की नई राजनीतिक बाजी का इंतज़ार करना चाहिए। कैप्टन करीब 79 साल की उम्र के हैं और अपनी राजनीतिक सक्रियता के अवसान-बिंदु पर हैं। सिद्धू 57 साल के हैं, लिहाजा उनकी राजनीति का लंबा वक्त अभी शेष है। कांग्रेस आलाकमान ने नई पीढ़ी, नए नेतृत्व के तौर पर एक चंचल और अस्थिर शख्सियत को चुना है। भाजपा में रहते हुए भी सिद्धू डांवाडोल फितरत के शिकार हुए। अंततः उन्हें भाजपा ही छोड़नी पड़ी, जिसने उन्हें ‘नेता’ बनने का मंच दिया था। बहरहाल कांग्रेस की सोच साफ है कि वह किस तरह आगे बढ़ना चाहती है। ऐसे ही प्रयोग उसने कुछ और राज्यों में किए हैं। नतीजे सामने हैं कि आज कांग्रेस कहां खड़ी है? बहरहाल पंजाब में अभी तो ‘खेल’ शुरू हुआ है।

 बेशक कांग्रेस के भीतर गुटबाजी दिखाई देगी। सभी सांसद नए कांग्रेस अध्यक्ष से असंतुष्ट हैं। कैप्टन धड़ा ताकतवर और जनाधारी है। इधर भाजपा ने कैप्टन का गुणगान शुरू कर दिया है। पंजाब का 38 फीसदी से अधिक हिंदू वोट बैंक बहुत महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। पंजाब में दलित भी करीब 32 फीसदी हैं। भाजपा हिंदू-दलित गठबंधन का पत्ता खेलना चाहेगी। इस बार बसपा अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। विधानसभा चुनाव फरवरी, 2022 में होने हैं। बिजली संकट, नशीले पदार्थों की तस्करी, सरहदी सूबे की समस्याएं, कोरोना टीके की कालाबाज़ारी, किसानों के कर्ज़, भ्रष्टाचार, अस्थायी कर्मचारियों और शिक्षकों के आंदोलन और सबसे बढ़कर कांग्रेस सरकार के खिलाफ लहर आदि ऐसे मुद्दे हैं, जो सिद्धू की नेतृत्व-क्षमता को सत्यापित करेंगे। कांग्रेस आलाकमान का 18-सूत्रीय एजेंडा अलग है। क्या कैप्टन और गुरु के टकरावपूर्ण मतभेद 2022 में भी कांग्रेस की सत्ता को बरकरार रख सकेंगे? अकाली दल-बसपा गठबंधन और ‘आप’ की राजनीतिक ताकत चुनाव को तिकोना बना रही है। भाजपा पहली बार अकाली दल से अलग होने के बाद चुनाव लड़ेगी, लिहाजा उसकी ताकत को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। भाजपा कुछ गठबंधन बनाने की भी तलाश में है। सिद्धू अभी तक दूसरों के कंधों पर और चुटकुले-से बिखेरते हुए राजनीति करते रहे हैं। अब उनके नेतृत्व की अग्नि-परीक्षा होगी।


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