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बाबा हरदेव पवित्र गीता का फरमान है कि ‘समत्व योग है और समता का बोध श्रेष्ठतम योग है, जो अपनी सादृश्ता से संपूर्ण भूतों में सम देखता है, वह योगी श्रेष्ठतम माना गया है।’ अब आम अर्थों में एक समता तो यह है कि हम दो आदमियों को समान समझें, हमारी नजर में ‘अ’ और

अवधेशानंद गिरि  जाग्रत अवस्था में चिदात्मक सत्ता विभिन्न प्रकार के जीवों के रूप को ब्रह्य चेतना द्वारा अपनी अव्यक्त, महत्त एवं पंच महाभूत निर्मित स्थूल शरीर तथा पांच कर्मेंद्रिय, पांच ज्ञानेंद्रिय, पांच प्राण, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार आदि 19 स्थूल उपकरणों से अपनी वासना के अनुसार स्थूल भोग करता रहता है… मनुष्य जन्म अत्यंत

* अपनी स्वयं की क्षमता से काम करो, दूसरों पर निर्भर मत रहो * इनसान के अंदर ही शांति का निवास होता है, उसे बाहर न तलाशें * तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुपी रह सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य *स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन और विश्वास सबसे अच्छा संबंध

स्वामी रामस्वरूप वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि राम ने लक्ष्मण को मरा हुआ समझकर विलाप किया, परंतु सुषेण वैद्य के उपचार से लक्ष्मण जी स्वस्थ हो गए। भाव यह है कि जहां रावण पाप युक्त कर्म करता था, वहीं वह एक वीर योद्धा भी था, जिसकी प्रशंसा मुक्त स्वर से वाल्मीकि जी ने अपनी

दूसरा नरक अंध तामिस्त्र नाम का होकर नाम के समान ही गुण वाला है, यह नरक भी भयंकर अंधकार से युक्त है तथा जो जीवात्मा इस नरक में डाली जाती है, वह यहां यातनाओं को भोगकर उसकी पीड़ा से भयभीत तथा मूढ़ बन जाती है। जो जीव दूसरों के साथ विश्वासघात करते हैं अथवा ठगई

— गतांक से आगे… उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानग यः पुरातनः। शरीरभूतभृद्भोक्ता कपींद्रो भूरिदक्षिणः। 66। सोमपोऽमृतपः सोमः पुरुजित्पुरुसत्तमः। विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्वतां पतिः। 67। जीवो विनयिता साक्षी मुकुंदोऽमितविक्रमः। अ भोनिधिरनंतामा महोदधिशयोऽन्तकः। 68। अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः। आनंदो नंदनो नंदः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः। 69। महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः। त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाशृङ्गः कृतांतकृत । 70। महावराहो गोविंदः सुषेणः कनकाङ्गदी।

एक सामान्य महिला के ऐसे गंभीर, ज्ञानमय व रहस्यपूर्ण शब्द सुनकर आचार्य वहीं बैठ गए। समाधि लग गई और अंतः चक्षु में उन्होंने देखा कि सर्वत्र आद्याशक्ति महामाया लीला विलाप कर रही हैं। उनका हृदय अविवर्चनीय आनंद से भर गया। मुख से मातृ वंदना की शब्द धारा फूट चली… अद्वैत वेदांत के प्रणोता आद्य शंकराचार्य

जटाधाराम पांडुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम। सर्व रोग हरं देव, दत्तात्रेयमहं भज॥ मंत्र पूजा करने में फूल और नैवेद्य चढ़ाने के बाद आरती करनी चाहिए और आरती करने के समय यह स्तोत्र पढ़ना चाहिए ः जगदुत्पति कर्त्रै च स्थिति संहार हेतवे। भव पाश विमुक्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ जराजन्म विनाशाय देह शुद्धि कराय च। दिग बर दयामूर्ति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥

शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरुष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है। शिवलिंग में लिंग शब्द शिवत्व का प्रतीक है… भारतीय सभ्यता के प्राचीन अभिलेखों एवं