आस्था

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव कबीर जो कुछ भी थे, कृष्ण, आदियोगी जो कुछ भी थे, हम सब में भी वह योग्यता है। पर क्या हमारी कविता लिखने की या नृत्य, संगीत, गणित के विषय में भी वही योग्यता है? शायद नहीं! लेकिन हम सब में वह योग्यता है कि हम उस विशिष्ट अनुभव को पा सकें

शोनकस्तु द्विवधा कृत्वा ददवेकां तु बभ्रवे। द्विवतीयां संहिता प्रादत्सैन्धवाय च संज्ञिने।। सैन्धवान्मुञ्जिकेशश्च द्वेधा भिन्नस्त्रिधा पुनः। नक्षत्र कल्पो वेदानां संहितानां तथैव च।। चतुर्थः स्यादांगिरसः शान्तिकल्पश्च पञ्चमः। श्रेष्ठार्स्त्क्वणामेथे संहितानां विकल्पकाः।। शौनक ने भी अपनी संहिता के दो विभाग किए। इनमें से एक बभ्र क ो और दूसरी सैन्धव को प्रदान की। सैन्धव से मुञ्जकेश ने उसका अध्ययन

श्रीश्री रवि शंकर सफलता और असफलता में उलझने के बजाय अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो। नकारात्मक विचारों को अपने मन में न आने दें। हमेशा सकारात्मक सोच पर फोकस रखें। नीरस विचारों को अपने जीवन से निकाल बाहर कर दो। फिर देखो आपके राह में आने वाली हर बाधा का आप दृढ़ता से सामना

सोलोमन व डालफिन मछली प्रजनन के समय अपने जन्म-स्थल पर पहुंचती है। इसके लिए उन्हें सैकड़ों मील की यात्रा करनी होती है। ईल नामक सर्पमीन बिना रडार या कुतुबनुमा के ही यूरोप की नदियों से सागर तट तक निश्चित स्थानों पर हजारों मील चलकर पहुंच जाती है। मादा ईल यूरोप की मीठे पानी वाली नदियों

दूसरा कारण यह था कि एक बार नारदजी को अपनी भक्ति पर अभिमान आ गया और वह हर लोक में जा-जाकर अपनी भक्ति और तपस्या का बखान करते थे। नारद ने अपने पिता ब्रह्मदेव को बतलाया, तब उन्होंने कहा कि नारद अपनी भक्ति का बखान मत करना, यह अच्छा नहीं है। नारद कैलाश में गए

बाबा हरदेव जब ब्रह्मज्ञानी की शरण मिल गई, जब ज्ञानी के साथ नाता जुड़ गया, तभी इस अज्ञान के अंधकार का विनाश हो गया। यह भ्रम दूर हो गया कि निराकार परमात्मा कहीं दूर है। यह सातवें आसमान पर है, कहीं गुफा-कंदराओं में है या फिर पर्वत ही परमात्मा है या फिर सूरज ही परमात्मा

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… किंतु सत्य क्या है? निर्णय नहीं कर पा रहा हूं। स्वामी जी अत्यंत स्नेहपूर्वक स्वर में कह रहे हैं, देखो बच्चा, मेरी भी एक दिन तुम्हारे जैसी अवस्था थी। फिर भय क्या? अच्छा भिन्न-भिन्न लोगों ने तुमसे क्या-क्या कहा था और तुमने क्या-क्या किया, बताओ तो सही। युवक कहने लगा

14 फरवरी रविवार, फाल्गुन, शुक्लपक्ष, तृतीया, गौरी तृतीया 15 फरवरी सोमवार, फाल्गुन, शुक्लपक्ष, चतुर्थी, गणेश तिल चतुर्थी 16 फरवरी मंगलवार, फाल्गुन, शुक्लपक्ष, पंचमी, पंचक समाप्त, बसंत पंचमी 17 फरवरी बुधवार, फाल्गुन, शुक्लपक्ष, षष्ठी 18 फरवरी बृहस्पतिवार, फाल्गुन, शुक्लपक्ष, षष्ठी 19 फरवरी शुक्रवार, फाल्गुन, शुक्लपक्ष, सप्तमी, नर्मदा जयंती 20 फरवरी शनिवार, फाल्गन, शुक्लपक्ष, अष्टमी, भीष्माष्टमी

किसी मंत्र का बड़ी संख्या में जप अथवा कोई तांत्रिक साधना करते समय रुद्रयामल कवच का पाठ आसन पर बैठते ही सबसे पहले किया जाता है और क्षमापन स्तोत्र का पाठ अंत में अर्थात आसन छोड़ने से ठीक पहले करना चाहिए। भगवान भैरवनाथ की साधना-सिद्धि अथवा मंत्र जप के समय साधकों से जाने-अनजाने गलतियां हो