प्रतिबिम्ब

राजनीति का रावण अंधेरे में रोया – सुबका उजाले में भागा – दौड़ा ईमानदारी के जूते घिसे उसूलों का पहना सेहरा राजनीति का रावण मेरी मासूमियत को देख रहा था छुप-छुप पीछा मेरा ले गया मुझे वो धोखे में बना लिया मोहरा मेरा बहुत आंसू पोंछे मैंने तब कहीं जाकर साफ नजर आया मुझे सबेरा

भारत भूषण ‘शून्य’ स्वतंत्र लेखक जब जिद्द यह हो जाए कि हमें सब सिद्ध करना है जो हमारा मन कहता है तो जान लीजिए कि हम आंतरिक गुफाओं के वक्रजाल में फंस गए हैं। जीवन किसी खास आदर्श या विशेष आग्रह के आगे गुलामी करने के लिए अस्तित्व में नहीं आया। इसकी अपनी महक है।

कोटधारा री कलम बिलासपुर निवासी लेखक कर्नल जसवंत सिंह चंदेल का कहलूरी कविता संग्रह ‘कोटधारा री कलम’ पाठकों के समक्ष है। इस कविता संग्रह में 100 कविताएं 122 पृष्ठों में समेटी गई हैं। कहीं ग्रामीण परिवेश उमड़ आया है, तो कहीं सेना व उसके जवानों का गुणगान है। इसी तरह कई कविताएं सामाजिक विषयों को

शेर सिंह साहित्यकार -गतांक से आगे… नदी के जल को अपने दोनों हाथों में लेकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया। फिर वापस मंदिर में आया। मंदिर के प्रांगण में बिछे चौड़े, चिकने पत्थर इस समय तक मई माह की भयंकर गर्मी से तपने लगे थे। मन भरने तक समय बिता कर मैं मंदिर से बाहर

राजनीति से साहित्य कितना निकलता या व्यर्थ हो जाता है, लेकिन यह प्रमाणित है कि लेखक का राजनीति में होना संवेदना के पन्नों को छूने सरीखा प्रयास है। संप्रति, सियासत में सफलता से ऊंचाइयां छूने के साथ-साथ हिमाचल के कई नेताओं ने साहित्य व लेखन को भी नई दिशा दी। इनमें वीरभद्र सिंह, वाईएस परमार,

मुमकिन नहीं यह मुमकिन नहीं मैं थक हार जाऊं ध्वस्त, परास्त हो जाऊं तनी गर्दनों के आगे हाथ जोड़े खड़ा रहूं मौन की चादर ओढ़ लूं सांपों के बिलों में हाथ डालने की बजाय उन्हें नित दूध चढ़ाया करूं उनकी आरतियां उतारूं दुमछल्ला बनूं, पूंछ हिलाता रहूं हिंसा, नफरत, आतंक, अलगाव के विरुद्ध युद्ध नहीं

जयंती विशेष हिंदी जगत् के कवि, लेखक, पत्रकार माखन लाल चतुर्वेदी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पुष्प की अभिलाषा नामक कविता के रचयिता का राष्ट्रवादी व्यक्तित्व यत्र-तत्र देखने को मिल जाता है। चाहे साहित्य लेखन की बात हो, अथवा पत्रकारिता की, उन्होंने राष्ट्रवाद को प्रखर आवाज दी। यह उनके लिए स्वाभाविक भी था, क्योंकि

षोडशी ‘रामायण के रहस्य’ एक ऐसा अद्भुत ग्रंथ है, जिसका सुदृढ़ ताना-बाना दक्षिण भारत के महान कवि शेषेंद्र शर्मा ने बड़े जतन से बुना है। ग्रंथ में काव्यात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं का तुलनात्मक अध्ययन अद्वितीय है। शेषेंद्र शर्मा ने षोडशी के जरिए पाठक के सामने रामायण काल के समय के काव्य, काव्य रस और भावार्थों

लघु कथा संदीप एक गरीब परिवार का लड़का था। उसके पापा का नाम प्रवीण था। प्रवीण घरों को बनाने व उनकी मरम्मत करने का काम करता था। प्रवीण को उन दिनों बड़ी मुश्किल से दो सौ दस रुपए दिन की दिहाड़ी मिलती थी। घर में प्रवीण, उसकी पत्नी, संदीप (बेटा) और एक बेटी रहते थे।